70 वें दशक में महान शो मैन स्व: राजकपूर की एक फ़िल्म आई थी ‘मेरा नाम जोकर’। जिस में बाल नायक (ऋषि कपूर) अपने स्कूल की अध्यापिका ‘सिम्मी ग्रेवाल’ की ओर आकर्षित होकर उसका पीछा करता है। यह बात उस समय के कई बुद्घिजीवी एवं प्रौढ़ दर्शकों को नागवार गुज़री थी लेकिन स्व: राजकपूर अपनी इस फ़िल्म में समय से पहले बहुत सी बातें कह गये थे जो आज के मोबाइल व नेट के युग में स्पष्ट रूप में दिखाई देने लगी हैं।
बच्चे बड़ों की नक़ल करते हैं। जब हम उन्हें अपने जैसा करने से रोकते हैं, टोकते हैं तो एक प्रश्न उनके मन में उठता है कि जो काम बड़े लोग करते हैं वह तो ठीक है जब वे करते हैं तो ग़लत कैसे हो गया। उन पर एतराज़ क्यों ? कई बार यह एतराज़ उम्र से पहले वह काम करने पर होता है।
पैदा होते ही हाथों में मोबाइल, रिमोट से खेलने वाले तथा प्राइमरी कक्षा में ही कम्प्यूटर शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चे अब मासूम तथा अन्जान नहीं रहे। बच्चों ने प्रेम के अर्थ सिर्फ़ दैहिक आकर्षण, चैटिंग, चुम्बन तथा आलिंगन को ही समझा है। उन्हें दोस्ती और प्रेम में अन्तर नहीं मालूम। मोबाइल पर अश्लील चुटकले, अश्लील शे’र, एस.एम.एस, नेट पर आसानी से उपलब्ध ‘पोर्नसाइट’ ने उन्हें छोटे-छोटे चलते-फिरते ‘सेक्स’ बम बना कर रख दिया है।
इन छोटे-छोटे बच्चों के वार्तालाप का विषय फ़िल्मी हीरो-हीरोइन के प्रेम-प्रसंग तथा चुम्बन दृश्य होते हैं। छोटी उम्र में ही बच्चे अॅपोज़िट सेक्स से फ्रेन्डशिप तथा लव अफ़ेयर के चक्कर में पड़ कर तनाव ग्रस्त व कुंठित होने लगे हैं। कई तो नशों का शिकार भी होने लगे हैं।
पश्चिमी सभ्यता की अंधी नक़ल कर छोटे-छोटे बच्चों द्वारा ‘वेलेन्टाइन डे’ पर एक दूसरे को प्रपोज़ करना आम हो गया है। जो काम पहले समय में इशारों व ख़तों से होता था वह आज बच्चे झटपट आसानी से मोबाइल पर करने लगे हैं। इस इलैक्ट्रॉनिक तकनीक से जहां सूचना प्रौद्योगिकी का विकास हुआ है वहीं नैतिकता में गिरावट व रिश्तों में टूटन-फूटन भी बहुत बढ़ी है। हमारे घरेलू माहौल में भी बदलाव आया है जिस का प्रभाव इन बच्चों ने क़बूला है। दूसरे शब्दों में अब ये छोटे-छोटे भोले-भाले से लगने वाले बच्चे हम से बहुत आगे निकल चुके हैं इतना आगे कि हमारी सोच से भी परे। पाकिस्तानी प्रसिद्घ शायरा स्व: परवीन शाकिर के ये शब्द उन पर पूरी तरह सही उतरते हैं-
‘‘लहरा रही है बर्फ़ की चादर हटा के घास
सूरज की शह पे तिनके बेबाक हो गये
जुगनू को दिन के वक़्त परखने की ज़िद्द करें
बच्चे हमारे अहद के चालाक हो गये’’
साहिल जी नमस्कार। आपने बहुत कमाल की मिसाल दी। राज कपूर भारत के एकमात्र शोमैन हुए जिन्होंने सबसे पहले युवा मन को महसूस किया। मेरा नाम जोकर के बाद बाबी जैसी फिल्म बनाने का यदि कोई दुस्साहस कर पाया तो निसंदेह वे राज कपूर ही थे। इस विचार को देने के लिए आपका शुक्रिया और इस वैबसाईट को बना कर लंबी खामोशी को तोड़ने के लिए सिमरन जी को बहुत बहुत बहुत बधाई