रास्ते मंज़िल का निशां होते हैं। आमतौर पर हमें अपनी ज़िन्दगी के रास्ते वैसे नहीं मिलते जिन पर हम चलना चाहते हैं। बहुत कुछ करना है, बहुत कुछ सीखना है, इसी ख़्याल से हम उन्हीं रास्तों पर सफ़र शुरू कर देते हैं जो भी रास्ते हमारा नसीब होते हैं।
ज़िन्दगी एक ऐसे रास्ते की तरह है जिसमें जगह-जगह मोड़ हैं, रुकावटें हैं। इस रास्ते में बहुत बार गहरी खाइयां और ऊंचे पर्वत भी आ जाते हैं जिन्हें पार करना होता है, क्योंकि चलते रहना ही तो ज़िन्दगी है। इन रुकावटों से डर कर जो बैठ गया वो जी नहीं पाता। उसे दूसरों के सहारे ज़िन्दगी बसर करनी होती है। लेकिन ज़िन्दगी बसर करने में और ज़िन्दगी जीने में अंतर होता है।
ऐसा नहीं है कि रुकावटों से बच निकलने के रास्ते नहीं होते लेकिन यदि सभी हिफ़ाज़त भरे रास्तों पर ही चल पड़ें तो इन रुकावटों को हटाएगा कौन? आख़िर किसी न किसी को तो नए रास्तों की तलाश करनी ही होगी।
ज़िन्दगी जीना इतना आसान नहीं होता पर इसे हंस कर जीना ही ज़िन्दगी है और इस तरह जीने वाले मर कर भी नहीं मरते। ऐसे लोग सदा ही कुछ कर गुज़रने के लिए तत्पर रहते हैं। इनके साथ हादसे हुआ नहीं करते बल्कि ये खुद उनकी दहलीज़ लांघ कर उनको अपने साथ गुज़र जाने देते हैं। इनको यह मालूम होता है कि दूसरों के लिए रास्ता बनाने के लिए इनको खुद कांटों से गुज़रना होगा। कांटों पर चलते हुए भी ये दूसरों के लिए फूलों-सी खुशबू बिखेर जाते हैं। दूसरों के दु:खों को अपनाते हुए ये चलते जाते हैं लेकिन कोई शिकवा नहीं करते। लोगों की मुहब्बत इनकी ताक़त होती है।
जब पांव कठिन पगडंडी पर रख ही दिए तो शिकवा कैसा ? गिले-शिकवों का त्याग करके ही ऐसे रास्तों पर बढ़ा जा सकता है। किसी-किसी को तंग पगडंडियां और ऊबड़-खाबड़ रास्ते भी सुहाने सफ़र से लगते हैं तो किसी को सीधे साफ़ रास्ते भी उबाऊ और लंबे लगते हैं। फ़र्क़ तो केवल सोच का है। यदि आप की सोच खूबसूरत है तो ये सारी कायनात ही सुन्दर नज़र आएगी। हर नज़ारा खूबसूरत दिखाई देगा और आप कठिन रास्ते भी हंसते-हंसते पार कर जाएंगे।
जब हम चलते हैं तो मंज़िल को अपने सामने रख कर ही चलते हैं लेकिन मंज़िल हर किसी का मुक़द्दर कहां होती है। हर किसी से वक़्त वफ़ा कहां करता है। कइयों का सफ़र रास्ते में ही समाप्त हो जाता है लेकिन कम से कम मंज़िल के इंतज़ार का सुखद एहसास तो उन्होंने किया ही होता है। जो घर से चले ही नहीं वो तो कोई ख़्वाब भी नहीं सजा पाते, वो इन खूबसूरत एहसासों से दूर ही रह जाते हैं।
मंज़िल मिले न मिले, ख़्वाब ज़रूर सजाना। जिस दिन तुमने सपने देखना छोड़ दिया, ज़िन्दगी सज़ा हो जाएगी।
तुम ख़्वाब सजाते हुए चलते जाओ, गर मंज़िल पर न भी पहुंच पाए तो दूसरों के लिए रास्ते तो बना ही दोगे। ये हासिल भी कोई कम तो नहीं।
-सिमरन