vashiyavriti kalank

– शैलेन्द्र सहगल

औरत ने जन्म दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाज़ार दिया। अबला नारी तेरी अजब कहानी, आंचल में है दूध और आंखों में पानी। वक्‍़त बदल गया दुनिया बदल गई। नहीं बदली तो औरत के वजूद से जुड़ी यह स्थितियां नहीं बदली। वो देवदासी भी बनी तो भी देह उसे परोसनी पड़ी, देह व्यापार का कलंक मानव सभ्यता के माथे से इश्तिहार की तरह चिपका हुआ है। भारतीय भूमि को योग की भूमि भले ही कहा जाता है मगर भोग-विलास की वृत्ति सदियों से इस तपो भूमि पर भी निरन्तर जारी है। हमारे देश के सांस्कृतिक आईने में वासना के लिए भले कभी कोई जगह न रही हो मगर अजंता और एलोरा की गुफाओं में प्रतिष्ठापित स्त्री-मर्द की मूर्तियां आज भी सजीव मालूम होती हैं। औरत को एय्याशी का सामान समझने वाले भी प्रकटत:यही नारा लगाते सुनाई देते हैं कि, ‘ नारी का सम्मान जहां, खुद बसते हैं भगवान वहां।’उनसे कोई समाज कोई सरकार ये सवाल नहीं करती कि ‘ नारी देह का होता हो व्यापार जहां, क्या होते नहीं भगवान वहां?’ दुनिया भी गोल है और उसके आचरण का पहिया भी गोल जो उजाले में आचरण के ग्राफ को ऊंचा रखता है और अंधेरे में उसे नीचे तक ले जाता है। औरत का इंसान होना इंसान को ही मंज़ूर नहीं है वह उसे देह से अधिक कुछ नहीं मानता। वासनाओं की हिलोर में औरत पाने के लिए सामर्थ जहां दौलत की टनकार करता है वहीं सामर्थ्‍यहीन अपनी ताकत से बलात्कार करता है। दुनिया बाज़ार बनी हुई है जहां वक्‍़त और हालात के मुताबिक़ औरत की कीमत आंकी जाती है। आज पर्यटन के नए दौर में देह व्यापार के बिना न होटल का धंधा जमता है और न ही पर्यटन का। एशिया के विकासशील देशों से लेकर पश्‍चिम के विकसित देशों तक में  vvvvऔरतों को देह व्यापार में झोंका जाता है। इंग्लैंड जैसे देश में देह व्यापार में दौलत कमाना जारी है। 20 पौंड से लेकर 500 पौंड तक का भुगतान करके दुनिया के किसी भी देश की लड़की एक रात के लिए बुलाई जा सकती है। वहां पर भले ही मान्यता प्राप्‍त अड्डों का अभाव है मगर मॉडलिंग की आड़ में देह व्यापार का धंधा धड़ल्ले से किया जा रहा है। लंदन के चाइना टाउन के समीप तीन मंज़िला भवन के बाहर भले ही मॉडल्स का बोर्ड टंगा है मगर वास्तव में वो जिस्म फरोशी का ही एक ठिकाना है। उस भवन की पहली मंज़िल के कक्ष का द्वार खटखटाने पर एक अर्द्धनग्न मॉडल द्वार खोल कर आपके सामने उजागर होगी जो आपकी मनोकामना की क़ीमत तय करेगी। 26 पौंड जेब में डाल कर कोई भी वो द्वार खटखटा सकता है। नाईट क्लबों का इस्तेमाल भी देह व्यापार को बढ़ाने के लिए किया जाता है। डांस करते हुए ही लड़की पटा ली जाती है। कीमत तय होते ही वह डांस फलोर से निकल कर किसी कमरे में जाकर बंद हो जाते हैं। एड्स जैसी भयानक बीमारी के आतंक के बावजूद देह व्यापार को प्रफुल्लित होने से किसी देश का कोई कानून रोक नहीं सका। इंग्लैंड के देह बाज़ार में अधिकांश रशियन महिलाएं सोवियत संघ के टूटने के बाद कूद पड़ी हैं। इनके अलावा कज़ाकिस्तान के अतिरिक्‍त लेटिन अमरीका के देशों कोलम्बिया, मैक्सिको, इक्काडोर की लड़कियां भी उपलब्ध करवाई जाती हैं। एशियन देशों में थाइलैंड एय्याशों के लिए स्वर्ग बना हुआ है। इण्डोनेशिया और कम्बोडियन लड़कियां भी देह व्यापार में देह दलालों द्वारा झोंकी गई हैं। सेक्स सुरक्षा के लिए यहां निरोध के बिना संभोग करने की पूर्णता मनाही है। अमरीका दुनिया का सर्वाधिक विकसित देश है मगर महिलाओं से बलात्कार जैसे अपराधों से लेकर सेक्स की दुकानों तक  देह व्यापार के लिए अमरीकन लड़कियां बाध्य हैं। न्यूयार्क, सैन्ट्रल न्यूजर्सी और मैनहट्टन में सैंकड़ों सेक्स शॉप्स हैं जहां दुनिया भर कें कामान्ध सैलानी अपनी कामपिपासा शान्त करने जाते हैं। दुनिया की सबसे ताकतवर और धनाढ्य देश की औरतों के साथ भी देह व्यापार का कलंक जुड़ा है। तेज़ भागती ज़िन्दगी में भोग विलास ही आदमी के साथ-साथ भाग रहा है। रिश्ते और अहसास बहुत पीछे छूट चुके हैं। दौलत के लिए लगी तीव्र गामी दौड़ में तेज़ भागते हुए जिसे जहां भी फुर्सत के कुछ क़ीमती पल नसीब होते हैं वे उन्हें मौजमस्ती में गुज़ार डालते हैं। पर्यटकों के आकर्षण के लिए अनगिनत नज़ारों के साथ लाल बत्ती क्षेत्र कामुक पर्यटकों को भी खुला आमंत्रण देता है। हॉलैंड भी अय्याशों का जन्नत बना हुआ है। एमस्टर्डम हॉलैंड की राजधानी है जो उत्‍रैक्ट से 60 किलो मीटर दूर है। एमस्टर्डम का लाल बत्ती क्षेत्र भी कामुक पर्यटकों का पूरा-पूरा आर्थिक दोहन करता है।

दुनिया के हर देश की लड़की वहां उपलब्ध है। एक अच्छी क़ीमत का भुगतान करके यहां भी रशियन, कॉलबियन हौलेंडियन, जर्मन और थाई लड़की प्राप्‍त की जा सकती है। एड्स मुक्‍त यौन सुख के लिए, सेक्स कर्मियों का नियमित मेडिकल चैकअप होता है। बियर बारों में भी अर्द्ध नग्न लड़कियां साक़ी बनी ग्राहकों को आकर्षित करती हैं। शराब जब शबाब द्वारा परोसी जाए तो पियक्कड़ को ज्‍़यादा ख़राब करती है और पीने वाले का सरूर मापना भी कठिन हो जाता है। उत्‍रैक्ट के लाल बत्ती क्षेत्र में नहर किनारा भी यौन भोगियों का तीर्थ स्थल बना हुआ है? वहां हाऊस बोट में तैरता शबाब अपने ग्राहकों का स्वागत करता है। यू शेप मार्ग पर कारें घुमाते हुए यौन भोगी अपने साथी का चुनाव करके कार में ही अपनी कामना पूरी कर सकते हैं। 16 से लेकर 50 वर्ष तक की आयु के यौन भोग के इच्छुक अपनी कामना बेझिझक, निश्‍चिंत पूरी कर सकते हैं। यौन व्यापार भी यहां क़ायदे के मुताबिक़ होता है। खुली लूट की कोई शिकायत किसी को कभी नहीं होती। दुनिया के मानचित्र पर किसी भी ऐसे देश का नाम नहीं जो देह व्यापार में लिप्‍त न हो। नेपाल में भी नेपाली औरतों की तिजारत होती है। पाकिस्तान जैसे इस्लामी देश में ऐसी मण्डियां मौजूद हैं जहां औरतों की बिक्री होती है। आधुनिकता और विकास की डींगे मारने वाले देश व उनकी ताकतवर सरकारें यौन व्यापार को उद्योग का दर्जा देने की सोच पर केन्द्रित होने को बाध्य हो रही हैं, वहीं भारतीय संस्कृति के परचम पर वन्दे मातरम् का नारा चिपकाने वालों की सरकार के चलते भी किसी नेता-राजनेता ने कभी देह व्यापार बन्द करवाने के बारे में अपनी प्रतिबद्धता का ज़िक्र भी नहीं किया। भारतीय संस्कृति पर कलंक बनी वेश्यावृत्ति के धंधे को जब राजनीतिक संरक्षण मिलेगा तो नारी जाति को इस कोढ़ से मुक्‍त कौन करवायेगा? राम मंदिर की बुनियाद पर देश की सरकार पर काबिज़ होने वाले भगवा रंगी भी देश की सीताओं के दुख़ड़ों से जान बूझ कर अनजान बने बैठे हैं। वेश्यावृत्ति लखनऊ और बनारस के कोठों से उतर कर गंगा किनारे चलते देश भर में फैल गई है। देहली के जी.बी.रोड पर सैंकड़ों ऐसे नरक द्वार है जहां देश के कोने-कोने से उठा कर लाई गईं ललनाओं को कामाग्रि की भट्ठी में नित्य झोंका जाता है। मगर देश उन लुटती नुचती बेटियों का हृदय विदारक रुदन किसी भी संतरी मंत्री को कभी सुनाई नहीं देता। धर्म की ओट लेकर चलने वाले अनेक बाबाओं के धार्मिक डेरे तक अनाचार के अड्डे बने हुए हैं मगर शासन और प्रशासन कानों में तेल डाले लम्बी तान कर सो रहा है। पहले देश की नारी सदियों सती प्रथा ढोती रही। सती प्रथा से छुटकारा मिला तो वेश्यावृत्ति का कलंक उसके वजूद से चिपकने की साज़िश चल निकली जिसके चलते किसी बेटी, बहू को नित्य वासना की आग में अपनी अस्मत से सती होना पड़ता है। यह कोढ़ निरंतर नारी जाति के वजूद पर कलंक बन कर फूटा है जिसके ख़िलाफ़ समाज के किसी वर्ग की ओर से कोई आवाज़ नहीं उठती। भागते समय और बदलते दौर के साथ मिलेनियम में घुसते हुए अगर बदलाव आया है तो वेश्यावृत्ति में आधुनिकता का मोबाइल फ़ोन से बदलाव आया है। नारी जाति को इस कलंक से मुक्‍त करने का बीड़ा किसी समाज सेवक, किसी नेता, किसी राजनीतिक दल ने भी कभी नहीं उठाया। राजनीति महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने के एजेंडे को अपने चुनाव घोषणा पत्रों में शामिल करने वालों ने भी वेश्यावृत्ति के उन्मूलन के बारे में कभी कोई ब्यान भी जारी नहीं किया। आश्‍चर्य तो तब होता है जब देश की मुखर स्वरों वाली तेज़ तर्रार राजनीतिक महिलाएं भी इस मसले पर अपना मौन तोड़ती नज़र नहीं आती। कुल मिला कर महिलाओं की इस आधी दुनिया में आए सकारात्मक परिवर्तनों का लेखा-जोखा किया जाए तो यही तथ्य उभर आयेगा कि उन परिवर्तनों के दायरे सामूहिक नारी जाति के लिए काफ़ी तंग हैं। उनका लाभ भी अभी सीमित संख्या में ही नारियों तक पहुंच पाया है। नारी अभी तक शोषण और भय से मुक्‍त नहीं हो पाई है। कुछ उन्मुक्‍त होकर विचरने वाली नारियों को भीrr1 असुरक्षा के घेरे में ही घिरे पाया है। नए परिवर्तनों की उन्मुक्‍त हवाओं में खुली सांस लेने योग्य स्वयं को 2-3 फ़ीसदी महिलाएं ही बना सकी हैं। 90 फ़ीसदी कामकाज़ी महिलाएं नई किस्म की परेशानियों में घिरी स्वयं को पाती हैं। केवल दो फ़ीसदी महिलाएं ही खुद को असुरक्षा के भाव से मुक्‍त करवाने में क़ामयाब हो सकी हैं। वो भी ऐसा करने में इसलिए क़ामयाब हो पाई हैं क्योंकि उन्होंने पुरुष वर्ग को शोषित करने की क्षमता हासिल करने में क़ामयाबी हासिल की। इनमें ऊंचे ओहदों पर पहुंचने वाली वे महिलाएं भी शामिल हैं, पुरुषों को भी जिनके अधीन काम करना पड़ता है। उनके लिए भी ऐसा करना इस लिए संभव हो सका क्योंकि उन्होंने अपनी योग्यता के बल पर स्वयं को सक्षम बनाया है। शिक्षा ही वो एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा वे पुरुष पर भारी पड़ने लगी हैं। इस सार्थक परिवर्तन के लिए दृढ़ इच्छा शक्‍ति के साथ-साथ आत्म-संयम, सौभाग्यशाली होना भी ज़रूरी है। दृढ़ इच्छा शक्‍ति से ही नारी पुरुषों की पाश्‍विकता पर अंकुश लगा सकती है और अपने अधिकारों का भली भान्ति प्रयोग करते हुए असुरक्षा के भय से बाहर आ सकती है।

हर ज्योति को ज्वाला बनना होगा। शमां की तरह जल जाना स्वीकार कर लेने की अपेक्षा ज्वाला बन कर आतताई के अस्तित्व को जला देने की क्षमता हासिल करनी होगी। ऐसा केवल दृर्ढ इच्छा शक्‍ति अपने भीतर जुटाने से ही संभव है। अबला होने के अहसासों से अपनी मानसिकता को मुक्‍त बनाना होगा। मानसिक रूप से बलवान महिला अपनी दृढ़ इच्छा शक्‍ति से हर स्थिति को अपने अनुकूल बनाने की क्षमता हासिल कर सकती है।

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