-गोपाल शर्मा फ़िरोजपुरी

मां जैसा पवित्र शब्द मुखरित और ध्वनित होते ही लाखों करोड़ों खुशियों का अम्बार हृदय, दिल और आंखों की पुतलियों में नाचकर आनन्दित करने लगता है। मां का स्वरूप, दिव्य, वसुंधरा और अलौकिक धरती जैसा है। जिस प्रकार पूरे विश्व का भरण-पोषण धरती करती है ठीक उसी प्रकार मां के बिना किसी नर या नारी की उपस्थिति सम्भव ही नहीं है। जिस प्रकार सम्पूर्ण जीव-जन्तुओं और पशु पक्षियों का सहारा यह स्नेही और मधुर भूमि है ठीक इसी तरह ही मां का दूध पीकर जो बच्चे को तृप्ति मिलती है, उसकी लोरियों से जिस सुहानी नींद का आनन्द और मज़ा आता है वह स्वर्ग से भी ज़्यादा सुखमयी है। मां का प्रथम रूप कन्या से होता हुआ- युवती, किसी की बहन फिर पत्नी और तत्पश्चात् मां की भूमिका एक बहुरंगी-प्रतिभा है, जिससे समाज का निर्माण होता है। नारी के बिना नर तो क्या-नारायण भी पैदा नहीं हो सकता है। नारी प्रकृति है, प्रकृति परमेश्वर है- यदि भगवान् का कोई भी अस्तित्त्व है तो वह भगवती के कारण ही है भगवती-भगवान् से किसी रूप में भी कम नहीं दूसरे शब्दों में यदि यह कहा जाए कि मां का रुतबा भगवान् से भी बड़ा है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। नारी एक प्रबल ज्योति है- प्रकाश का पुंज है। नारी जगदम्बा है, दुर्गा है, पार्वती है, परमेश्वरी है, वैष्णवी और कालिका है, चंडी है, शारदा है, सावित्री है। नारी जिसने राम-कृष्ण, नानक, बुद्ध-महावीर तथा ऋषियों-मुनियों-योगियों, युद्ध-पुरुषों तथा देवताओं को जन्म दिया है तथा जिसने समय-समय पर असुरी शक्तियों का विनाश किया है, आधुनिक युग में स्वयं उसका जीवन ख़तरे में दिखाई दे रहा है। कुछ राक्षस, दैत्य और हैवान लोग उसके पीछे पड़े हुये हैं। कुछ अक्ल के अंधे और सिरफिरे लोग उसके अस्तित्त्व को मिटाने पर तुले हुए हैं। नारी के स्वरूप को समाप्त करके सुख भोग की कामना करने वाले बेशक-तबाही और बर्बादी को न्यौता दे रहे हों- मगर कन्या भ्रूण हत्या का सिलसिला दिनों दिन गंभीर होता जा रहा है। कारण दहेज़ हो या कोई बलात्कार या अन्य प्रकार की बेइज़्ज़ती का हो। भ्रूण हत्या विशेषकर कन्या भ्रूण हत्या निरन्तर जारी है और इसमें अनपढ़ कम ज़्यादातर पढ़े लिखे लोग संलिप्त है। चोरी छिपे स्कैनिंग डॉक्टरों की मिलीभगत से पैसों के लालच में इस प्रकार की घटनाओं, दुर्घटनाओं में अभी न्यूनता नहीं आई है। नारी असुरक्षा पुरानी परिपाटी से चली आ रही है किसी भी सुन्दर बाला का अपहरण या ज़बरदस्ती उठा कर राजमहलों में ले आना ज़ुल्म की ओर इंगित करता है।

आजकल किसी सुन्दर बाला का गुण्डों द्वारा अपहरण बलात्कार और बाद में उसकी हत्या के डर के कारण भी लोग कन्या सन्तान पैदा करने से कतराते हैं।

हमारी सदियों से चली आ रही रूढ़िवादी परिपाटी में सदैव पुत्र सन्तान को ही श्रेष्ठ माना है। किसी ऋषि, मुनि, योगी, सन्यासी या देवता ने जब भी किसी स्त्री को वरदान दिया तो यही कहा पुत्रवती भव, सप्त पुत्रवती भव। किसी ने यह नहीं कहा कि पुत्रीवत भव या कन्यावती भव। ऐसी मान्यताओं को किसी ने नहीं तोड़ा। स्त्री को तुच्छ और पुरुष को महान् बतलाने वाली इस प्रथा का आधुनिक युग में कोई स्थान नहीं है। शायद गुरु नानक देव जी ने इसी अंधविश्वास को नकारते हुए कहा था, “सो क्यों मन्दा आखिये जित जन्मे राजान” अर्थात् राजाओं तक को जन्म देने वाली नारी बुरी कैसे हो गई।

नारी का जीवन शूलों और तलवारों के बीच घिरा हुआ है उसके जीवन की रक्षा और उसके शोषण की समाप्ति अनिवार्य हो गई है। पूरे भारत वर्ष के आंकड़े बोलते हैं कि पुरुषों के मुक़ाबले स्त्रियों की संख्या दिन-प्रतिदिन घटती जा रही है। इन परिस्थितियों में पुरुष वर्ग और नारी वर्ग में अनुपातिक सामंजस्य अति आवश्यक है नहीं तो विवाह सम्बंधी गंभीर समस्याएं आ सकती हैं। कन्या भ्रूण हत्या को कैसे रोका जाए? इसका समाधान कैसे हो? क्या सरकार ठोस क़दम उठाए? क्या कोई सामाजिक संस्था आगे आए? इन प्रश्नों का केवल एक ही उत्तर है कि नारी पहले स्वयं जागरूक हो, अपने अस्तित्त्व और मर्यादा को पहचाने। किसी दबदबे या किसी प्रकार की मजबूरी में कन्या भ्रूण हत्या के लिए स्वीकृति न दे उठकर विरोध में खड़ी हो जाए। इस अन्याय के विरुद्ध चीखे, आवाज़ बुलन्द करे यदि फिर भी घी सीधी उंगली से न निकले तो उंगली को टेढ़ी करे। कानून का सहारा ले। कहते हैं परमात्मा उनकी मदद ज़रूर करता है जो अपनी मदद स्वयं करते हैं। कोई भी पुरुष या स्त्री सफ़र अकेला शुरू करता है या करती है। मुसाफ़िर मिलते जाते हैं और काफ़िला बनता जाता है। जिस प्रकार नारी ने घूंघट, पर्दा, सती जैसी विकराल विसंगतियों को दूर भगाया है कन्या भ्रूण हत्या को नकारना भी कोई असम्भव नहीं है। इसके लिए ज़रूरी है नारी की स्थिति मज़बूत हो। नारी को खुद भी नारी का सम्मान रखना होगा। यह नहीं कि घर में पुत्री से तो फ़र्श पर पोछे लगवाये जाएं, झाड़ू बर्तन करवाया जाए और पुत्र को आवारागर्दी करने पर भी न रोका जाए। लड़की के पहरावे पर आपत्ति की जाए और लड़का सिगरेट के धुएं के छल्ले बना-बना कर हवा में बिखेरता रहे।

समाज में नर तथा नारी लड़का-लड़की शिक्षित होने का हक़ रखते हैं। संस्थाओं के संचालकों को लड़की पर बुरी नज़र रखने वालों पर लगाम लगानी होगी। उनके साथ कहीं कोई दुर्घटना न घट जाए ऐसी शंका, ऐसा भ्रम उनके मन से निकालना होगा।

बस, रेलगाड़ी में ऐसे प्रबन्ध हों कि उनकी यात्रा सुगम हो सके। रात में काम करने वाली महिलाओं का विशेषकर ध्यान रखना होगा। व्यावसायिक क्षेत्रों से जुड़े कर्मचारियों की व्यवहार नीति पर कुछ नियम ऐसे हों कि कोई दुर्व्यवहार करने का साहस न करे। सावधानियां क्षणिक लाभप्रद हो सकती हैं परन्तु इतना कुछ होने के बावजूद कोई दिन ऐसा नहीं जाता जब किसी मासूम युवती का बलात्कार न हुआ हो या उसकी हत्या न कर दी गई हो। गुण्डे दनदनाते आते हैं और कार में बिठाकर ले जाते हैं- बस फिर…. लुट जाती है किसी की आबरू।

समाज को पुलिस से होने वाली परेशानियों से डरना नहीं चाहिए बल्कि दृढ़ संकल्प होकर नारी का पक्ष लेना चाहिए। नारी जो सबकी मां है, जो बहन है, सखा है, पत्नी है क्या उसकी अस्मत को बचाना नहीं चाहिए। जो इन्सान अपनी मां, धरती मां और अपनी मां बोली को नहीं बचाता असल में वह ही पाप का अधिकारी है। कन्या भ्रूण हत्या करना तो पाप ही नहीं महापाप है- नारी ही नहीं रही तो न नर रहेगा न यह सृष्टि ही विकास कर सकेगी। सामाजिक रिश्तों के मिठास भरे सम्बंध केवल नारी के ही कारण हैं।

नारी का सम्मान ही देश, जाति और धर्म का सम्मान है। कन्या भ्रूण हत्या के अतिरिक्त उसकी अस्मत को बचाने हेतु उसे सेक्स रैक्टों, कन्या तस्करी, जिस्मफरोशी की दलदल से बाहर निकालना होगा। उसे बेख़ौफ़, अंधेरे उजाले में विचरने की गारंटी देनी होगी। यदि हम नारी को नहीं बचायेंगे तो खुशहाल भारत की कल्पना नहीं कर सकते। इस धरती का आकर्षण नारी के साथ जुड़ा हुआ है। कन्या भ्रूण हत्या के ख़िलाफ़ संसद से सड़क तक शोर उठाना चाहिए। एक जन आन्दोलन की चेतना उभर कर सामने आनी चाहिए।

 

One comment

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