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-मीनू अग्रवाल

लेस्बियन! मुझे तो लड़कियों के साथ रहना पसन्द है। मैं अपना सारा जीवन उनके साथ व्यतीत कर सकती हूँ। काश!  हमारे देश में भी ऐसे एक साथ रहने की कानूनन इजाज़त होती। यह कहना है जालंधर की कल्पना का। कल्पना एक लड़की है – लेस्बियन, अर्थात् एक लड़की होकर उसे लड़की के साथ रहना, प्रेम करना और अपनी शारीरिक उत्तेजनाओं की तृप्‍ती करना अच्छा लगता है। और इन्हें हम लेस्बियन कहते हैं। मनोचिकित्सक ‘लेस्बियन’ को एक मानसिक बीमारी का दर्जा देते हैं। उन लड़कियों में यह ज़्यादा पाया गया है जो अपनी भावनाओं को व्यक्‍त करने में असमर्थ रहती हैं।

किसी भी परिवार में रहकर ‘लेस्बियन’ का इलाज (फ़ैमिली थैरेपी) एक जटिल और मुश्किल काम है। रिसर्च के अनुसार दो लड़कियां (होमोसेक्सुअल) ठीक उसी प्रकार रहते हैं जैसे शादी के बाद एक पती-पत्‍नी। मतलब, उनमें प्रेम, रिलेशनशिप क्वालिटी और सेक्स की भावना एक समान होती है। इसीलिए लेस्बियन का एक साथ रहना केवल एक-दूसरे के कपड़े शेयर करने तक ही सीमित नहीं रहता।

कैसे बन जाती है लेस्बियन

लेस्बियन बनने की संभावना उनमें ज़्यादा रहती है जो अपनी किशोरावस्था को ठीक से जी नहीं पाती। किन्हीं कारणों से उन लड़कियों के माता-पिता उन पर पूरी तरह से केंद्रित नहीं हो पाते। इस मानसिक बीमारी से ग्रस्त होने का कोई एक कारण नहीं बताया जा सकता।

इसको यूं कहा जा सकता है कि अगर प्रकृति से छेड़छाड़ की जाए तो उसका परिणाम ‘असफल’ ही होगा। ठीक इसी प्रकार परिवार में बच्चे की परवरिश में ज़रूरत से ज़्यादा डांट-फटकार या फिर उतना ही लाड़-प्यार बच्चे (लड़की) के मानसिक संतुलन को असंतुलित करता है।

लड़कियों को ज़रूरत से ज़्यादा शर्मीला बना के रखना, उन्हें लड़कों की तरह कपड़े पहनाना भी कुछ एक कारण हैं लड़कियों का अपनी ही सेक्स की तरफ़ रुझान होने का।

सच यह भी है

एक लेस्बियन दूसरी लेस्बियन की ओर कभी आकर्षित नहीं होगी। वह हमेशा एक साधारण और सुन्दर दिखने वाली लड़की को अपनी ओर खींचने की चेष्‍टा करती है।

साइकॉलोजिस्ट के अनुसार ‘थीओरी ऑफ फ़ीमेल कपल्स्’ की छह श्रेणियां हैं।

ब्लेंडिंग:- परिवारजनों से आपके विचारों का मेल न खाना।

नेस्टिंग:- मन ही मन में कुछ पकते रहना। अपने आप को अकेला महसूस करना (यह क़रीब नौ वर्ष की आयु से शुरू होता है)

मेंटेनिंग:- न चाहते हुए भी परिवारजनों के बीच रहने की कोशिश करना।

बिल्डिंग:- अपने ही सेक्स के साथ रहने का मन बना लेना।

रीलिज़िंग:- स्वयं को अपने परिवार से अलग कर लेना। उनका कहना न सुनना।

रीन्यूइंग:- सारे बंधनों, लोक-लाज को छोड़कर लेस्बियन का जीवन व्यतीत करने को तैयार होना।

चूज़िंग वेल (देखकर चयन करना):- इस पड़ाव में लड़कियां किशोरावस्था से लेकर वृद्धावस्था तक किसी भी क्षण क़दम रख सकती हैं। जैसे ही वे इस अवस्था (लेस्बियन) में पहुँचते हैं उनमें सेक्सुअल एनर्जी का प्रवाह तेज़ हो जाता है।

आख़िर कमी कहाँ?

लेस्बियन बनी लड़कियों की किशोर अवस्था अधिकतर असाधारण तौर पर बीती होती है। यही कारण है कि लेस्बियन जब अपने पारिवारिक दायरे से बाहर निकलती हैं तो सेक्सुअली वे एक साथ कई लड़कियों से संबंध बना लेती हैं। अपने परिवार से अलग होने का एक अन्य कारण यह भी हो जाता है कि वे एक-दूसरे से बहुत जल्दी-जल्दी मिलना शुरू कर देती हैं।

संबंध कब तक?

एक अध्ययन के अनुसार लेस्बियन में सेक्स की चाह समय के साथ धीमी होती जाती है। यह जोड़ा ओपन सेक्स में विश्‍वास रखता है। इन्हें इसलिए दुनियां की परवाह नहीं होती। क्लोज़्ड व ओपन रिलेशनशिप में, दूसरे क़िस्म का जोड़ा एक-दूसरे से जल्दी ऊबता नहीं है। ये अपने रिश्ते को ज़्यादा लंबे समय तक खींच के ले जाता है।

इन्हीं पर निर्धारित कुछ आंकड़े सामने आए हैं

लेस्बियन में ‘सेक्स क्वालिटी’ प्रतिमाह

एक्सीलेंट-54%

गुड-24%

सैटिस्फैक्ट्ररी-16%

अनसैटिस्फैक्ट्री-07%

संबंध की सीमा

न्यूनतम(वर्ष) 4.9

अधिकतम(वर्ष) 6.9

कौन बन सकता है लेस्बियन?

अविवाहित-73%

विवाहित(एक बार)-25%

विवाहित(दो बार)-4%

विवाहित(दो से ज़्यादा बार) <1%

(एक प्रतिशत से भी कम)

कब आती है समस्या

वैज्ञानिक बर्जर(1990 बी) ने पाया कि एक तिहाई लेस्बियन को परिवारों का सहयोग होता है और वहीं 20 प्रतिशत लेस्बियन का कहना है कि उनका परिवार उन्हें सहयोग नहीं करता या फिर उनके परिवार को इस सच्चाई का पता नहीं होता। समस्या उस वक़्त बढ़ जाती है जब ऐसे जोड़े के माता-पिता उन्हें दूसरे सेक्स के साथ शादी करने को मजबूर करते हैं।

कैसा वातावरण

गे के मुक़ाबले लेस्बियन की ज़िन्दगी ज़्यादा चुनौतियों भरी है। परिवार के सहयोग व डॉक्टर की सलाह से ऐसी लड़कियों को एक नई ज़िन्दगी की शुरूआत कराई जा सकती है। इनको मानसिक रोग से उबारने के लिए हमें खुले विचार एक आदरणीय और क्रिएटिव अप्रोच की आवश्यकता पड़ेगी, जिससे वे एक आम ज़िन्दगी में वापिस क़दम रख सके।

हिन्दू एक्ट व लेस्बियन क्लब

नीदरलैंड विश्‍व का पहला राष्‍ट्र बना जिसने एक ही सेक्स के जोड़ों की शादी करने का प्रस्ताव रखा। यह तारीख़ थी, 1 अप्रैल 2003 आज भी कई देशों में इस पर बहस जारी है।

भारत में ‘हिन्दू एक्ट’ के तहत स्त्री को केवल पुरुष से व पुरुष को स्त्री से ही शादी करने की इजाज़त है। हमारा कानून मुस्लिम एक्ट पर आधारित है। यहां ऐसी कोई मान्यता नहीं जबकि विदेशों में ऐसी श्रेणी (लेस्बियन) को साथ रहने की इजाज़त है। उनके लिए बाक़ायदा लेस्बियन क्लब बनाए गए हैं। जहां जाकर वह खुलकर जी सकें व अपनी उत्तेजनाओं की तृप्‍ती कर सकें।

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