-अरविंद

कौन नायक बनना नहीं चाहता? यह दबी-सी इच्छा तो सब की होती है। ऐसी इच्छा मुझ में भी जागी थी जब मुझे शुरू-शुरू में नायक की परिभाषा का पता चला था।

“श्रीमान नायक”

मैं अभी सातवीं–आठवीं का ही छात्र था। पंकज और प्रताप दोनों मेरे दोस्त थे। हम तीनों साथ घूमते–फिरते और एक बैंच पर ही बैठते। हम में अनेक प्रकार की बातें भी होती, बातों – बातों में एक दिन प्रताप ने पूछा, “यार, तुम्हारी नायिका कौन है?”

“नायिका, यह क्या चीज़ होती है?” मैंने सवाल पर सवाल दाग़ दिया। प्रताप ने कहा, “तुमने कभी फ़िल्में नहीं देखी उस में एक नायक होता है, जिस पर सारी फ़िल्म केन्द्रित होती है और उसी नायक के साथ एक सुन्दर-सी नायिका होती है। इसी प्रकार कोई भी व्यक्ति उस स्थिति में ही अपने जीवन का नायक बन सकता है जब उसके पास एक नायिका हो।” मैंने भी फ़िल्में तो अनेकों देखी थी, लेकिन फ़िल्मों के इस महत्वपूर्ण तथ्य पर ध्यान नहीं दिया था। अब मेरे दोस्त, दोस्त न बनकर मेरे ही गुरू बन गए थे। उन्होंने मुझे जीवन के सत्य का ज्ञान करा दिया था। मुझे साधारण मानव से नायक बनाने की ठान ली थी। मैं नायक बनने के लिए तैयार हो गया। आख़िर कौन नहीं चाहता कि वह नायक की भूमिका निभाये और ये था भी आसान। नायक बनने के लिए आपको चाहिए सुन्दर-सी लड़की जो नायिका के रूप में पूरी उतरती हो। गुरू लोगों ने मुझ अज्ञानी को आज्ञा दी कि मैं शीघ्र ही किसी लड़की को ढूंढूं और उनको बताऊँ ताकि उस लड़की को नायिका का रूप दिया जा सके। ऐसी लड़की का चयन करना बड़ा मुश्किल काम था। क्योंकि मेरे गुरू कहते हैं कि नायिका बनने के काबिल लड़की देखने में सुन्दर और सुशील होती है। उसके पीछे कितने ही लड़के पड़े होते हैं। परन्तु अंत में वह नायक को ही पसंद करती है। कुछ दिनों की छानबीन के बाद मुझे नायिका के गुणों जैसी मिलती–जुलती लड़की मिल गई वह हमारे घर से कुछ दूर रहती थी परन्तु हम साथ ही स्कूल बस से आते–जाते थे। वह देखने में थोड़ी-सी मोटी थी। वैसे भी गुरू लोगों ने शारीरिक चौड़ाई–मोटाई पर मुझे कोई ज्ञान नहीं दिया था। चेहरे से वह सुन्दर और सुशील दिखाई देती थी और कुछ लड़के उसके पीछे पड़े हुए थे। वो मुझसे दो–तीन क्लास आगे पढ़ती थी, पर थी हमारे स्कूल में ही। मैंने अपने गुरुओं को अपनी खोज की ख़बर दी। गुरुओं ने मेरी इस खोज को स्वीकार कर लिया मुझे आगे क्या करना है उन्होंने सब बता दिया। अब तो मुझे स्वयं ही क़दम उठाने थे पर मैं गुरुओं की मदद के बिना कुछ नहीं कर सकता था। गुरुओं का सहयोग मुझे स्कूल के समय में ही मिल सकता था। परन्तु जब से मैंने उसे पंकज और प्रताप से मिलाया था। उसके बाद वह न जाने कहां गायब हो गई थी। अब वह सिर्फ़ स्कूल बस में ही नज़र आती थी, स्कूल में कभी नहीं। अब मुझे अपना नायक बनने का अवसर भंग होता नज़र आ रहा था। परन्तु मेरे गुरुओं ने महत्वपूर्ण निर्णय लिया। उन्होंने मुझे अपनी कक्षा में से ही दो लड़कियों को छोड़ अन्य किसी भी लड़की को चुनने का निर्देश दिया ताकि रोज़–रोज़ की दौड़–धूप कर के दूसरी कक्षा की लड़की के पीछे समय नष्‍ट करने से बचा जा सके। मुझे जल्दी ही नायक का ख़िताब मिल सके, इसलिए अब तो मैं सिर्फ़ अपनी कक्षा की एक लड़की के पीछे रहता।

एक दिन जब एक दूसरा लड़का उस लड़की को तंग कर रहा था तो पंकज और प्रताप ने कहा कि यही मौक़ा है नायक बनने का। अच्छी क़िस्मत से ही तुम्हें यह सुनहरी मौक़ा इतनी जल्दी मिल रहा है, जिसे तुम्हें गंवाना नहीं चाहिए। मैं भी यह मौक़ा हाथ से नहीं जाने देना चाहता था। लेकिन इसके साथ ही अपने हाथ पैर भी गंवाना नहीं चाहता था। लेकिन मेरे महान गुरुओं ने मुझे धक्के मार–मार कर मैदान में भेज दिया। वह लड़का मुझे पीटता रहा और मैं उसे पीटता रहा, अच्छी ख़ासी पिटाई के बाद मुझे हिन्दी के अध्यापक दिखाई दिए। मैंने प्राण बचाने के लिए सर को आवाज़ लगाई। उन के आते ही वह लड़का भाग गया पर मुझे ज़िन्दा छोड़ गया। मैंने अपनी बची हुई जान को इकट्ठा करके सर को बताया कि वो हमारी कक्षा की लड़की को छेड़ रहा था। सर ने मुझे शाबाशी दी। मैं अब नायकों की श्रेणी में बस समझो कि शामिल हो ही गया था। अब मुझे सिर्फ़ अपने गुरु महाराज के कहे एक–दो कार्य ही करने थे जिसके लिए उन्होंने मेरी बुद्धि में ज्ञान कूट–कूट कर भर दिया था। मैं अगले दिन के लिए तैयार हो कर आ गया। हिन्दी के पीरियड में सर ने मेरी बहादुरी के बारे में सारी कक्षा को बताना था जिससे मुझे नायक बनने के लिए सहयोग मिलना था। परन्तु सर ने इस मौक़े पर ऐसा भाषण दिया कि मेरा नायक बनने का सपना चकनाचूर हो गया। आज तक ऐसी स्थिति से कोई फ़िल्मी नायक नहीं गुज़रा होगा और न ही गुज़रेगा। इसलिये मैं और मेरे अज्ञानी गुरू कक्षा में चुप–चाप बैठे रहे। क्योंकि श्रीमान ने मेरी तारीफ़ कुछ इस तरह से की, “इस लड़के ने कल बहादुरी और हिम्मत दिखाते हुए हमारी कक्षा की लड़की शैरी की मदद की और एक बदमाश लड़के की पिटाई की। अगर इसी तरह हमारी कक्षा के लड़के सभी लड़कियों को बहनें समझ कर उनकी मदद करें तो स्कूल का माहौल जल्दी ही ठीक हो जाएगा। जिस प्रकार इसने शैरी को बहन समझ कर उसकी मदद की, यह बधाई का पात्र है सभी इसके लिये तालियाँ बजाएं।”

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