“मैं उसके बिना नहीं रह सकती चाचू। मैं उसे बहुत प्यार करती हूं। आप प्लीज़ मुझे उससे दूर मत करिये। चाचू आप मुझे ज़हर लाकर दे दो। मैं मर जाऊंगी मगर उसके बिना नहीं रह पाऊंगी। प्लीज़ चाचू प्लीज़” कहकर वह मेरे गले में बाहें डालकर रोने लगी थी। दरअसल मैं ही उसका चाचा हूं और मैं ही उसकी मां और पिता भी। अपने बच्चों की तरह ही पाला है उसे और उसी लाड़ प्यार से रखा जिस तरह उसका पिता उसे रखता। वह मेरे भाई की बेटी है, उसके मां-बाप के न रहने पर मैंने ही उसे अपने पास रखा और अपनी बेटी से ज़्यादा प्यार भी किया है। इसी प्यार का यह परिमाण है कि वह मुझसे अपनी हर अच्छी-बुरी बात एक साथी, एक मित्र या आज की भाषा में कहें तो बॉय फ्रेंड की तरह बता देती है। उसे किसी लड़के से प्यार हो गया है और उसी के प्यार में वह इतनी आसक्त है कि अपने पिता समान चाचा की भी कोई शर्म न करके दीवानों की तरह अपने प्यार का बताए जा रही है। “सुनो बेटा! पहले तो यह रोना चीखना बंद करो और मेरी बात ध्यान से सुनो” मैंने उसे प्यार से सहलाते हुए कहा था। “कोई भी बात करो चाचू लेकिन मुझे उससे दूर रहने के लिए नहीं कहना तुम चाहो तो मुझे जान से मार दो, मेरे मम्मी-पापा के बाद तुम्हीं तो हो जो मेरे लिए सब कुछ हो। मैं कुछ नहीं कहूंगी लेकिन प्लीज़ चाचू मुझे उससे अलग नहीं करना। मैं रह नहीं पाऊंगी।” वह अब भी रोये जा रही थी। “प्यार का मतलब जानती हो आप” मैं अब अपने बाप होने के दायरे से बाहर आ गया था और उसे समझाने का प्रयत्न करने लगा था। “हां चाचू जानती हूं मैं, आपने ही समझाया था पहले और फिर आपने भी तो मेरी चाची मां से पहले किसी को प्यार किया था। आपने मुझे एक बार बताया था।” वह अब तर्क पर उतर आई थी।
“उस प्यार के बारे में तुम जानोगी तो प्यार का अर्थ ही बदल जाएगा। सुनना चाहती हो। सुन सकोगी, है हिम्मत तुममें।” मैं अब लगभग खिसिया आया था। रत्ती भर की लड़की मुझे मुंह चिढ़ाने लगी थी। उसकी ग़लती नहीं थी। मैंने उसे इतना स्नेह दिया था कि वह ज़िद्दी हो गई थी। दरअसल उसके मां-बाप दोनों की पूर्ति मुझे ही करनी थी।
“सुनाओ चाचू, सुनाओ मैं सुनने को तैयार हूं पर चाचू मेरी बात तो मान लोगे मुझे उससे दूर तो नहीं करोगे” वह फिर गिड़गिड़ाने लगी थी। अब मैं उसे स्नेह नहीं कर रहा था।
“तब मैं बहुत छोटा था जब मेरे बड़े भईया की शादी हुई थी” मैंने बताना शुरू किया था। “मैं उनकी शादी में नहीं गया था। मेरे भईया बहुत सुन्दर थे, और भाभी देखने में बिलकुल सुन्दर नहीं लगती थी।”
“चाचू एक मिनट रुको। आप ये भईया-भाभी की कौन-सी कहानी सुना रहे हो। आप अपने प्यार वाली कहानी सुनाओ न। लगता है यह तो आप मेरे मम्मी-पापा की कहानी सुना रहे हो।” उसने मुझे बीच में रोककर पूछा था। “हां बेटा सुनो और बीच में बार-बार टोकना मत” मैंने उसे डांटते हुए अपनी बात आगे बढ़ाई थी, “भाभी, अर्थात् तुम्हारी मम्मी, अब समझ रही हो न। मेरे घर में दुलहन बनकर आ गई थी। भईया बहुत पढ़े लिखे थे बहुत जगह अच्छी नौकरी लगी लेकिन वह न कर सके। दरअसल होता यह था कि वह जहां भी नौकरी करते और जैसे ही उन्हें भाभी की याद आती नौकरी से बिना छुट्टी लिए घर भाग आते और सप्ताह भर से पहले अपनी नौकरी पर नहीं जाते थे। परिणाम यह होता कि उन्हें नौकरी से निकाल दिया जाता था। भाभी उन्हें लाख समझाती वे नहीं मानते। हमेशा यही कहते मैं तेरे बिना रह नहीं सकता। तेरे साथ ही रहना है। एक रोटी के दो हिस्से करके खाएंगे लेकिन तुझसे दूर नहीं रहेंगे समझ गई तू। भाभी हंस देती और वे दोनों साथ-साथ ही रहते। उनकी नौकरी छूट गई। वे मज़दूरी करने जाने लगे थे। जो भी कमा कर लाते भाभी उसी से घर का पूरा ख़र्च चलाती थी। कई बार ऐसा भी हुआ कि भाभी को ख़ाली पेट भी सोना पड़ा। परिवार में सभी लोग थे लेकिन कोई नहीं जान पाता कि भाभी ख़ाली पेट सो गई। मैं अब बड़ा होने लगा था। बड़ा क्या तुम समझ लो जवान होने लगा था। एक बार मैं बहुत बीमार पड़ गया। हड्डी-हड्डी दिखाई देने लगी। मां मेरी देखभाल करती थी लेकिन मां से ज़्यादा भाभी मेरी देखभाल करती। मुझे नहलाना-धुलाना, कपड़े बदलना, हगाना, शौचाना सब कुछ भाभी ही करती। मैं उनकी आंखों में ही देखता रहता निश्छल भाव से। न कोई लालसा, न कोई चाहत। धीरे-धीरे मैं ठीक होने लगा था। भाभी खुश थी। कुछ दिनों घर पर रहने के बाद मैं शहर में पढ़ने चला गया। खूब मेहनत से पढ़ाई करता और जब भी घर आता अपने जेब ख़र्च के पैसे बचाकर उनके लिए साड़ी लाता, वे पहनती और खुश होती। मैं यह मानने लगा था कि यह ज़िन्दगी उन्हीं की अमानत है। यदि वो मेरी देखभाल न करती तो मैं तो मर ही गया था लेकिन मैंने ऐसा उन्हें कभी महसूस नहीं होने दिया।
मैं अब नौकरी के लिए भाग दौड़ करने लगा था। पूरी मेहनत से पढ़ता। रात-रात भर किताबों से लड़ता रहता। भाभी रात-दिन मेरी देखभाल करती, दूध-पानी का इंतज़ाम करती, मेरे कपड़े धुलती, मैं जब भी परीक्षा देने जाता तो रात में उठकर खाना बनाती। मैं दिनों-दिन उनका भक्त होता गया। जब भी परीक्षा देने बाहर जाता, सबसे पहले उनके पैर छूता और आशीर्वाद लेता। उसके बाद अम्मा-पिता जी और बड़े भाइयों के पैर छूकर आशीर्वाद लेता। भाभी के साथ मेरा इस तरह का बर्ताव मेरे घर में कुछ लोगों को अच्छा नहीं लगता था। मां मुझे अकेले में समझाती “ज़्यादा मत घुसाकर इसमें, ये कल्लो बहुत जादूगरनी है इससे बचकर रहा कर। तू तो पढ़ने लिखने वाला लड़का है। पढ़कर बड़ा आदमी बन।” मैं मां की बातों पर ध्यान नहीं देता। रात-दिन मेहनत करता और परीक्षाएं देता। किसी परीक्षा में पास तो किसी में फेल। इस तरह क्रम चलता रहा।
एक दिन डाकिए ने आकर एक लिफ़ाफ़ा दिया। लिफ़ाफ़ा लेकर भाभी मेरे पास आई थी। वे बिलकुल पढ़ी लिखी नहीं थी “लो अभय, तुम्हारी नौकरी का काग़ज़ है।” कहते हुए उन्होंने वह लिफ़ाफ़ा मुझे थमा दिया था। “कैसे जाना आपने यह मेरी नौकरी का काग़ज़ है। आपने पढ़ लिया था क्या लेकिन आप तो पढ़ना जानती ही नहीं है फिर?” मैंने पूछा था।
“मेरा मन कहता है।” वे बोली थी “मन कहता है। यह तो कोई बात नहीं हुई। आपका मन कुछ भी कहेगा और वह हो जाएगा। क्या भाभी आप भी न बड़ी वो हो” मैंने उन्हें खिसियाना चाहा था। “कौन हूं मैं”
“वही”
“कौन वही”
“मेरी अम्मा” मैंने उनका गुस्सा देखकर उन्हें मना लिया था और लिफ़ाफ़ा खोला सचमुच मेरी पोस्टिंग के काग़ज़ात थे मेरी पोस्टिंग दिल्ली में हो गई थी। दो दिन बाद नौकरी ज्वाइन करनी थी। मुझे तो स्वर्ग मिल गया था। मैंने आगे बढ़कर भाभी के हाथ चूम लिए थे फिर बाद में पैर छुए और उन्हें घुमा दिया था चक्कर घिन्नी की तरह तब तक घर के सब लोग इक्ट्ठे हो गए थे। अम्मा, पिता जी, बड़े भईया, छोटी भाभी तथा बच्चे। मैं सबसे एक ही बात दोहरा रहा था “मेरी नौकरी तो सिर्फ़ मेरी भाभी की दुआओं का असर है। देखा न वे ही लाई हैं मेरा नौकरी का लैटर तो वही तो हुई नौकरी देने वाली।”
अम्मा को बहुत अच्छा नहीं लग रहा था छोटे भईया भी बहुत खुश नहीं हो रहे थे और छोटी भाभी भी खुश नहीं थी जो छोटे भईया की दूसरी पत्नी है। पहली पत्नी के मरने के बाद उन्होंने दूसरी शादी कर ली थी। हालांकि उनकी पहली पत्नी से पांच बच्चे हैं फिर भी उन्होंने दूसरी शादी कर ली थी। तर्क यह था कि बच्चों को कौन पालेगा जबकि घर के सभी लोगों ने उनके बच्चों को पालने में मदद की थी लेकिन वे नहीं माने और उन्होंने दूसरी शादी कर ली। ख़ैर।
अगले दिन मैंने अपना बोरिया बिस्तर बांधा और दिल्ली के लिए चल दिया था। भाभी खुश थी और परेशान भी। सबसे आशीर्वाद लेने के बाद मैं भाभी के पास पहुंचा तो वह रोने लगी “क्या बात है? क्यों रो रही हो? मैं नौकरी पर ही जा रहा हूं। मरने तो नहीं जा रहा।” उन्होंने मेरे मुंह पर हाथ रखते हुए कहा था, “ऐसे नहीं बोलते।” “तुम दिल्ली जा रहे हो बड़े आदमी बन गए, अफ़सर बन जाओगे लेकिन कभी अपनी भाभी को मत भुला देना। देखो अभय तुम्हारे भईया कुछ ज़्यादा नहीं कमाते हैं। तुमसे कुछ छिपा नहीं है। मैं उनकी कमाई में गुज़ारा कर लूंगी। लेकिन, फिर भी ………. तुम समझदार हो। कल को परिवार बढ़ेगा। वैसे तो पिछले दस बारह साल से मेरे कोई बच्चा नहीं हुआ। अम्मा हमेशा मुझे बांझ बंजर कहती रहती है। तुम ही तो हो जो मेरा साथ देते हो। अब तुम चले जाओगे तो अम्मा ……।” “कुछ नहीं होगा। तुम चिंता मत करो। मैं करूंगा। आपकी और भईया की देखभाल आप बेफ़िक्र रहो और हां अभी उस दिन आप कह रही थी कि कोई खुशी की बात है वह क्या थी बताओ न” मैंने ज़िद्द की तो वे शरमाते हुए बोली थी “अभय तुम जल्दी ही चाचा बन जाओगे।”
“क्या मतलब। मैं अभी भी तो चाचा हूं। पांच-पांच बच्चों का।” मैंने जानबूझकर चुहल की थी।
“अब अपनी बड़ी भाभी के बच्चे के चाचा बस अब तो समझ गए न अब जाओ देर हो जाएगी” वे कहते हुए मुझे धकेलने लगी थी। मैं बहुत खुश था। एक तो नौकरी की खुशी दूसरी अपनी भाभी के मां बनने की खुशी और हां भाभी के पेट में जो बच्चा था जानती हो कौन था। मैंने उससे पूछा तो वो तपाक से बोली, “मैं” और फिर बड़े एकांत और शांत निश्छल भाव से कहने लगी “आगे बताओ”
मैं दिल्ली के लिए चल दिया था। यहां आकर नौकरी करने लगा। पहले महीने की तनख्वाह मिली थी। ऑफ़िस वाले ज़िद्द करने लगे कि पार्टी दो। सो 3 मई को पार्टी करना तय हो गया था। तभी एक व्यक्ति दूसरे सेक्शन से मेरे पास आया और मेरे बॉस से कहने लगा “शर्मा जी आपके यहां कोई अभय निगम है उनका भाई मर गया है।”
“क्या बकते हैं आप। ये कौन-सा ढंग है बात करने का” शर्मा जी ने उसे डांटते हुए कहा था। मैं वहीं खड़ा था। मुझे जैसे बिजली का शॉक लग गया हो। शर्मा जी ने मुझे हिम्मत बंधाई और मैं अपने घर के लिए रवाना हो गया था। आठ घंटे का सफ़र करके जब मैं बस स्टैंड पर उतरा तो मेरे परिजन मुझे लेने को खड़े थे। मेरे बड़े भईया नहीं थे उनमें। सभी को देखकर मैं पूरी ताक़त से चिल्लाकर रोया। सभी ने मुझे चुप कराया। पूछने पर पता चला कि मेरे भईया किसी बिल्डिंग में मज़दूरी करने गए थे और वह बिल्डिंग ढह गई जिसमें मेरे भईया के साथ-साथ और भी कई लोग भगवान् को प्यारे हो गए।”
“चाचू प्लीज़ अब नहीं। अब नहीं सुनाओ आगे। मैं नहीं सुन पाऊंगी।” इतना कहकर वह रोने लगी थी। तभी मैंने उसे अपने सीने से लगा लिया था। दरअसल बताते-बताते मेरे भी आंसू बहने लगे थे। मैंने उसे ढाढ़स बंधाया और कहा “बेटा अभी तुम्हारे सवाल का जवाब तो शेष है।” तब फिर वह मेरे मुंह की तरफ़ देखने लगी। मानों इंतज़ार कर रही हो?
“भाभी, मेरी भाभी विधवा हो गई थी। तुम उनके पेट में थी। मैं बड़ी हिम्मत करके उनके पास पहुंचा था। उनके पांव पर सिर रख कर खूब रोया वो नहीं रोई। मुझे देखती रही एकटक। मैं लगभग बीस दिन घर पर रहा। भाभी अकेले में खूब रोती। कोई नहीं जान पाता घर वाले सोचते उसे दुःख नहीं है। मैं उनके पास पहुंचता तो वो आंसू पोंछ लेती। “ऐसे अकेले में क्यों रोती हो तुम। मुझे अच्छा नहीं लगता।” एक दिन मैंने उनसे कहा था “क्या अच्छा नहीं लगता तुम्हें,” वो बोली थी।
“यही तुम्हारा घुट-घुटकर रोना” मैंने अपनी वेदना उन पर उड़ेल दी थी। “और जिसका पूरा जीवन ही घुट-घुटकर जीने के लिए बन गया हो वह क्या करे।”
“नहीं भाभी मैं हूं तुम्हारी देखभाल के लिए मैं तुम्हें सभी कुछ दूंगा। तुमने मुझे इस जगह पहुंचाया है। तुमने मुझे बेटे की तरह पाला है। मैं रखूंगा तुम्हारा ध्यान मेरी ज़िम्मेदारी हो तुम।” मैं भावनाओं में बहता चला गया था।
“और क्या-क्या तुम्हारी ज़िम्मेदारी है। भगवान् के पास से अपने भईया को ला दोगे। आज के बाद समाज मेरे उठने-बैठने पर प्रतिबंध लगाएगा। रोक सकोगे उस समाज को। आज तो मेरे पास आ गए अकेले में। कभी मेरे पास मत आना। तुम्हारे भईया जब जीवित थे न मैं तब सुखी थी। हां इतना सुख था कि वह मेरे साथ हंस लेते थे, रो लेते थे। मैं जानती हूं पति की छाया हो तो औरत हर ग़म को सहन कर लेती है लेकिन पति के न रहने पर यही समाज उसे खा जाना चाहता है। तुम्हें नहीं पता कल यही लोग तुम्हें मेरे पास आने से रोकेंगे” वे समझाने लगी थी “और मैं रुक जाऊंगा” मैंने वाक्य पूरा करते हुए कहा था। “तुम नहीं रुकोगे, मुझे पता है। लेकिन तुम्हें रुकना ही होगा। और वायदा करो कभी मेरे पास अकेले में नहीं आओगे,” वे मुझ से वायदा लेने लगी थी। “मैं कोई वायदा नहीं करता तुमसे। तुम मेरी भाभी हो। मैं कभी-भी तुम्हारे पास आऊंगा और रोक सको तो रोक लेना तुम और घर वाले।” मैंने भाभी से अपनी बात कह दी थी और वापिस अपने कमरे में चला आया था। मैं रात भर न जाने क्या सोचता रहा पूरी रात मुझे नींद नहीं आई। मुझे बार-बार भाभी का दुःख दर्द किसी कीड़े की तरह काटता रहा। क्या मैं उनकी कोई मदद नहीं कर सकता? जिसने बेटे की तरह पाला। भाभी का मीठा-सा स्नेह दिया और आज मैं कुछ नहीं कर सकता रात भर यही सोचता रहा। सुबह हुई घर के सभी लोग अपने-अपने कामों में लग गए। मैं मौक़ा देखकर भाभी के पास पहुंच गया। वो अकेली अपने कमरे में औंधी लेटी रो रही थी। मैंने उन्हें सीधा किया और अपने हाथों से उनके आंसू पोंछे।
“तुम्हें मैंने मना किया था। मेरे पास अकेले आने के लिए फिर क्यों आए तुम” उन्होंने मुझे प्यार से धमकाया था।
“एक बात कहनी थी आपसे” मैंने रहस्यमय ढंग से पत्ते खोलने चाहे थे।
“क्या”
“मेरे साथ रहोगी। शादी करोगी मुझसे।”
“ठीक तो हो तुम, पागल हो गए हो क्या? मति मारी गई है तुम्हारी। मैं तुम्हारी कौन हूं? एक तरफ़ भाभी कहते हो प्यार जताते हो और दूसरी तरफ़ ऐसी बातें करते हो। शर्म नहीं आती तुम्हें।” वे बिफर गई थी। “हां नहीं लगती शर्म मुझे। पागल हो गया हूं मैं। मति मारी गई है मेरी। नहीं देख सकता तुम्हें रोते। इस तरह अकेले में घुट-घुटकर मरते।” मैं स्वयं को न रोक सका था “और पूरी ज़िंदगी भर घुट-घुटकर मरना है उसका क्या।” वे अब कुछ नर्म पड़ी थी। “ज़बरदस्ती। लूट पड़ रही है। तुम्हें मेरे साथ रहना होगा मतलब रहना होगा। तुमने मुझे इतना स्नेह दिया है। अपनापन दिया है। मैं मर रहा था तब तुम्हीं ने रात-रात भर जाग-जागकर मेरी देखभाल की तो सही तरह से देखा जाए तो यह ज़िंदगी तुम्हारी ही तो हुई। अब जैसे चाहो ले लो।” मैंने उन्हें गणित पढ़ाते हुए कहा था। “मैंने तुम पर कोई एहसान नहीं किया अभय। तुमने मेरी पीड़ा, मेरा दर्द समझा और फिर हर स्त्री का दायित्व होता है अपने देवर, जेठों, सास, ससुर का ध्यान रखे मैंने इसमें क्या नया किया।” उन्होंने भी गणित के प्रश्नों को हल करते हुए उत्तर खोज लिया था। “और देवर का दायित्व भी बताओ। अब तो तुम बहुत पढ़ गई हो। मुझे शिक्षा दोगी। मुझे समझाओगी तुम। मुझ से ज़्यादा पढ़ी लिखी हो न।” मैं खिसियाने लगा था फिर नर्म पड़ते हुए बोला था “अच्छा भाभी हम तुम साथ रहेंगे। ठीक है। बच्चा कोई नहीं करेंगे। भईया की इस अमानत को हम मिलकर पालेंगे। अब तो मानोगी मेरी बात इसमें तो कोई बुराई नहीं है न, भाभी प्लीज़ मान जाओ न।”
“देखो मेरी बात सुनो ज़िद्द मत करो जो संभव नहीं है उसके लिए ज़िद्द नहीं करते। तुम्हारी हर ज़िद्द मानती रही मैं अब ऐसी बात मत करो जिसे मैं न मान सकूं।” वे प्यार से मुझे समझाने लगी थी। “तो मैं मर जाऊंगा। मेरी बात नहीं मानोगी। मेरे साथ नहीं रहोगी तो मैं आत्महत्या कर लूंगा।” मैं पागल-सा होने लगा था। एक थप्पड़ मेरे गाल पर पड़ा। मैं सिहर गया। मुझे याद है एक बार अम्मा ने भी मेरे ज़िद्द करने पर ऐसे ही मारा था। और फिर क्या था भाभी अपने उसी हाथ को दीवार में मारने लगी थी बिलकुल पागलों की तरह। मैंने उन्हें पकड़ा फिर वे मेरे गाल पर उसी जगह जहां उन्होंने थप्पड़ मारा था सैंकड़ों बार चूमती रही। गोद में लिटा लिया मुझे। प्यार करती रही। जब उनके प्यार से छूट मिली तो मैंने फिर ज़िद्द ठान दी “और मार लो लेकिन मेरी बात मान लो।” “देखो अभय तुम बच्चे हो दुनियादारी तुमने नहीं देखी। तुम बहुत सुन्दर हो। सैंकड़ों लड़कियां तुम्हें चाहती हैं अच्छी-सी पत्नी लाओ। मैं तुमसे पन्द्रह साल बड़ी हूं। तुम मेरे पैर छूते हो।” वो समझाने लगी थी। “तो क्या हुआ तुम्हारे साथ रहने के बाद भी रोज़ तुम्हारे पैर छुआ करूंगा और तुम हर रोज़ मुझे इसी तरह मारा करना मैं उलाहने देने लगा था।” “अच्छा मेरी बात सुनो और देखो ज़िद्द मत करना।” वे एक उंगली उठाकर मुझे समझाने लगी थी। “हां बताओ मेरी अम्मा जी” दरअसल जब कभी मैं उन्हें मनाना चाहता या वे मुझे कुछ समझाती तो मैं उन्हें अम्मा जी ही कहता था। “मैं तुम्हारे साथ नहीं रहूंगी। हां मेरी जो संतान हो चाहे बेटा या बेटी। तुम अपने पास रख लेना उसे पालना पोसना, बड़ा करना और उसी में मुझे देखते रहना। इससे मेरा भी धर्म रह जाएगा और तुम्हारा भी दायित्व निभ जाएगा। तुम उस बच्चे को ऐसे पालना जैसे वह तुम्हारा ही हो। देखो न कितनी चालाक हूं। मैंने यहां पर भी तुमसे सौदेबाज़ी कर ली न। अब तो खुश हो और देखो अब ज़िद्द मत करना नहीं तो ……” “नहीं तो क्या ……. सारी बात तो अपनी रखी और उल्लू बना रही हो।” मैं गुस्सा होने लगा था “अच्छा एक बात और तुम्हारे खाने, पहनने, रहने आदि की ज़िम्मेदारी भी मेरी रहेगी।”
“चलो मान ली तुम्हारी बात” इतना कहकर वे चुप हो गई थी और अगले दिन मैं दिल्ली चला आया था। तुम पैदा हुई। एक साल तक भाभी ने तुम्हें अपने पास रखा। मैं भाभी को लगातार पैसे भेजता रहा और इसी दौरान मेरे घरवालों ने मेरी शादी कर दी। उन्हें डर था कि कहीं मैं भाभी के साथ ही न रहने लगूं क्योंकि मेरे घर वाले मेरी ज़िद्द के आगे कुछ भी नहीं कर सकते थे। मैं ज़िद्दी था। आज भी हूं। शादी की पहली रात को ही मैंने सारी बातें तुम्हारी चाची को बता दीं। तुम्हारी चाची अच्छी महिला है। उन्होंने सहर्ष तुम्हें स्वीकार कर लिया और यह तो तुम भी जानती हो कि उन्होंने तुम्हें कभी मां की कमी महसूस होने नहीं दी। ख़ैर छोड़ो।
एक दिन पता चला कि भाभी लाला के यहां काम पर जाने लगी। मैंने मना किया। नहीं मानी। उम्र ज़्यादा नहीं थी लेकिन बिना पति की औरत समाज की नज़रों में अपराधी होती है। काम करते समय आलुओं से भरे कई बोरे उनके ऊपर आकर गिर पड़े जिससे उनकी पस्लियां टूट गईं उनमें इन्फेक्शन हो गया और कुछ दिनों बाद वे हमें छोड़ कर चली गई।”
“अम्मा-पिताजी के मरने पर मैं अनाथ नहीं हुआ था। भाभी के चले जाने पर मैं अनाथ हो गया था। आज जब भी मैं परेशान होता हूं तो उन्हीं से हल पूछता हूं। वे जहां भी हैं, स्वर्ग, नर्क तो मैं नहीं मानता, वहीं से मुझे सही राह दिखाती है। आज उससे पूछूंगा कि तुम्हारी बेटी को पालने में मुझसे कहां भूल हो गई? क्यों उसके लिए मेरा प्यार कम पड़ गया जो उसे अपने चाहने वाले का प्यार ज़्यादा दिखाई देने लगा। तुम तो मेरी हर बात मानती थी तुम ही तो कहती थी मेरी बेटी में तुम मुझे देख लिया करो। तुमने अपना धर्म निभाने के लिए मुझे राह दिखाई और तुम्हारी बेटी …… मेरी लाडली …… मेरे भाभी-भईया की अमानत …… मैं क्या करूं? कहते-कहते मैं रुआंसा हो गया था।”
“चाचू मुझे माफ़ कर दो …… जैसी आपकी भाभी थी वैसी ही आपकी बेटी है। मैं बहक गई थी। मैं कभी भी आपको नीचा नहीं गिरने दूंगी। मेरी मां ने आपको हमेशा ऊंचा और बड़ा आदमी बनते देखना चाहा था। मैं मां की तरह तो नहीं हूं। मैं शायद उनके पांव की धूल भी नहीं हूं चाचू लेकिन प्रॉमिस करती हूं जीवन की आख़िरी सांस तक अपने चाचू की हर बात मेरे लिए भगवान् का आदेश होगा। मेरी मां आपका गुरूर थी तो मैं आपकी शान बनकर दिखाऊंगी।” इतना कहकर वह मेरे गले लगकर खूब रोयी थी मैंने उसे बहुत प्यार किया था। तभी फ़ोन की घंटी बजने लगी थी फ़ोन उसने ही उठाया। फ़ोन पर दूसरी तरफ़ उसका बॉय फ्रेंड था। “हैलो, रौंग नंबर” कहकर उसने फ़ोन काट दिया था।