-मुनीष भाटिया

स्वतंत्रता के अड़सठ वर्ष बाद जब देश की महिलाओं की दशा पर दृष्‍ट‍ि डाली जाती है तो सहसा सामने वह रोगी आ खड़ा होता है जिसे शुरू में तो कोई एकाध रोग ही था किन्तु परिचारकों के प्रसाद एवं समीचीन औषधि के अभाव में रोग उत्तरोत्तर बढ़ता ही गया। जिस राष्‍ट्र में कभी नारी की साड़ी उतारने का प्रयास करने से महाभारत हो गया था उसी नारी की अस्मिता, स्वाभिमान व सम्मान को आज तार-तार किया जा रहा है। ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यते, रमन्ते तत्र देवता’ का मंत्र झूठा-सा लगने लगा है जब चारों ओर अनैतिकता का बोलबाला होना आरंभ हो गया है। यह अफ़सोस की बात है कि नारी अत्याचार में न केवल अशिक्षित वर्ग बल्कि तथाकथित कुलीन वर्ग भी प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से नारी शोषण में संलिप्‍त है।

आज नारी की हालत यह है कि वह जहां एक ओर घरेलू हिंसा का शिकार हो रही है वहीं दूसरी ओर समाज में भूखे भेड़ियों के लिए छेड़छाड़ व दुष्कर्म की वस्तु बन रही है। इसका एकमात्र कारण समाज के प्रत्येक वर्ग में शिक्षा का अभाव है। आज की महिला न तो अपने अधिकारों के प्रति सजग है और न ही वह स्वयं में इन अत्याचारों से लड़ पाने की निजी शक्‍त‍ि जुटा पा रही है। जहां नारी से किसी प्रकार की छेड़छाड़ होती है या तो वह चुपचाप सहन कर जाती है और यदि प्रतिकार करती है तो आस-पास की व्यंग्यपूर्ण नज़रों से वह अपने को अकेला पाती है। यहां तक कि अन्य महिलाएं भी आवाज़ उठाने में हिचक महसूस करती हैं। उन्हें डर रहता है कि कहीं उन्हें भी इसी तरह की हिंसा का पात्र नहीं बना दिया जाए। लेकिन वास्तव में यह ज़रूरी है कि बजाए तमाशा बनने के अपनी आवाज़ को बुलंद किया जाए। अपने को कमज़ोर समझने की अपेक्षा मन को मज़बूत किया जाए। इसकी शुरूआत समाज की प्रथम इकाई परिवार से ही की जाए। शुरू से बालिका के मन में सामाजिक अत्याचारों से लड़ने की शक्‍त‍ि का संचार किया जाए। इस तरह वह भविष्य में न तो अत्याचार सहन करेगी और न ही अत्याचार होते देख सकेगी।

आज यदि हम समाज पर दृष्‍ट‍ि डालें तो यत्र-तत्र सर्वत्र महिलाओं से छेड़छाड़ की घटनाएं सुनने-देखने को मिल जाएंगी। समाज में इस तरह के व्यभिचार को बढ़ाने में विदेशी टी.वी. चैनल व बहुराष्‍ट्रीय कम्पनियां भी पीछे नहीं हैं। नारी को उपभोग की वस्तु बनाकर एक ‘ब्रांड’ की तरह पेश किया जा रहा है। त्याग व ममता की प्रतिमूर्ति को बाज़ारू वस्तु बनाकर, अश्‍लीलता का नंगा नाच किया जा रहा है जिससे समाज में चारित्र्य व नैतिकता का हृास हो चुका है। यह सर्वविदित है कि ‘ज़रा से रिन’ की तरह ज़रा-सी अश्‍लीलता भी समाज को कामुक बनाने में सर्वथा समर्थ है। यही कारण है कि समाज में महिलाओं के प्रति शारीरिक हिंसा के मामलों में बढ़ोतरी हो रही है। आए दिन समाचारों में छः वर्ष की बाला से लेकर साठ वर्ष की वृद्धा तक के साथ यौन उत्पीड़न की ख़बरें सुनने को मिलती रहती हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार राजधानी दिल्ली में पिछले कई वर्षों में प्रति वर्ष सैंकड़ों मामले बलात्कार के और सैंकड़ों ही मामलों में महिलाओं के साथ ज़्यादतियों के तथा उससे भी अधिक मामले महिलाओं के साथ छेड़छाड़ के दर्ज़ हुए। इसी दौरान महिलाओं के अपहरण के भी मामले सैंकड़ों में दर्ज़ हुए। यदि देश की राजधानी की यह स्थिति है तो पूरे देश में महिलाओं की क्या स्थिति होगी? इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। आज समय की यह मांग है कि कड़े कानून बनाकर समाज की इन नकारात्मक प्रवृत्तियों पर लगाम कसी जाए।

अतः बेहद ज़रूरी है कि सर्वप्रथम घर-घर फैल रही अश्‍लीलता का विरोध किया जाए। नारी को उपभोग की वस्तु न मानकर उसे समाज में उचित सम्मान दिलाने में सार्थक क़दम उठाए जाएं। महिलाओं को भी अपने में ऐसा साहस उत्पन्न करना होगा कि जहां कहीं भी घर, गली-मुहल्ले, बस एवं संस्थान में कहीं भी नारी के साथ छेड़छाड़ हो तो उन अपराधियों के ख़िलाफ़ सामूहिक कार्रवाई की जाए। अपने अधिकारों के प्रति सजगता व अपनी कमज़ोरी की भावना को तिलांजलि देनी होगी तभी नारी पर होने वाले घरेलू व सामाजिक अत्याचारों पर अंकुश लग सकेगा।

 

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