-जगजीत ‘आज़ाद’, चम्बा
प्यार एक अहसास, एक जज़बात, एक भावना है। सुनने में छोटा-सा लगने वाला यह शब्द वास्तव में इतना विशाल है कि इसमें पूरा ब्रह्माण्ड समा सकता है, पूरी धरती इस पर टिकी हुई है, हर कण-कण में यह समाया हुआ है।
सच्चा प्यार, अपने आपको किसी के लिए क़ुर्बान कर देना है। किसी के लिए अपने आप को मिटा देना ही सच्चे प्यार की परिभाषा है। इसमें स्वार्थ, लोभ, अहम् का कोई स्थान नहीं। सच्चा प्यार तो वह अनुभूति है जो इन्सान को भगवान् का दर्जा दिलाती है।
जिस प्रकार एक पतंगा शमा के लिए खुद को जला देता है, एक नदी समन्दर के लिए अपने अस्तित्तव अस्तित्त्व को समाप्त कर देती है, धरती अपना सर्वस्व मानव को अर्पित कर देती है, सूर्य खुद जल कर दूसरों को रोशनी देता है, यही सच्चा प्यार है। किसी के लिए अपना सब कुछ मिटा देना लेकिन बदले में किसी भी चीज़ की कामना न करना ही सच्चा प्यार है।
लेकिन आज के दौर में इसका रूप बदल गया है। बेशक प्यार तो जैसा पहले होता था वैसा ही आज भी है लेकिन हमने उसमें स्वार्थ का समावेश कर दिया है। आज मनुष्य केवल सच्चे प्यार का ढोंग करता है लेकिन वक़्त निकल जाने पर वह सब रिश्तेे-नातों से मुंह फेर लेता है।
प्रेमी-प्रेमिका का प्यार महज़ शारीरिक भूख मिटाने का साधन रह गया है, सन्तान और मां-बाप के रिश्तों में स्वार्थ झलकता है। सच्चे प्यार को तन तथा धन के लिए मिटाया जा रहा है। रेत के सहरा में जिस प्रकार पानी की एक बूंद के लिए तरसना पड़ता है उसी प्रकार आज के दौर में सच्चे प्यार को तरसना पड़ रहा है। हर इन्सान ने दो चेहरे पाल रखे हैंं। दूसरों को दिखाने के लिए अलग तथा एक वो जोकि उसका वास्तविक चेहरा है। नकली चेहरे से इन्सान सच्चे प्यार का नाटक खेल रहा है तथा जब उसका स्वार्थ, अहम्, मनोरथ पूरा हो जाता है तो उसका असली चेहरा सामने आता है जो कि बहुत भयानक है।
ऐसा नहीं है कि सच्चा प्यार इस संसार से समाप्त हो गया है लेकिन अधिकांश लोग इसका केवल ढोंग करते हैं, जिससे प्यार जैसी पवित्र आत्मा बदनाम हो रही है।