-निशान्त कौशल पठानकोट

प्रकृति ने सभ्य समाज के ढांचे में सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक परिवर्तन कर दिया है। ख़ास कर रूढ़ियों, अन्ध विश्वासों और परम्परागत फैली पुश्त दर पुश्त संकीर्णताओं में क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ है। अतीत की गरिमा अपनी अलग अहमियत रखती है। परन्तु वर्तमान के विकास में बाधा न बने इसलिए सदियों से चले आ रहे मिथ्या बंधनों को तोड़कर आज के स्त्री पुरुष को नई दिशा में आगे बढ़ने का सामर्थ्य प्राप्त हो गया है। प्रशस्त मार्ग की तलाश करना ही बुद्धिमता और किसी नई मंज़िल की खोज अपने आप में एक उपलब्धि कही जाती है। आज का जो ज्वलन्त विषय वैलेन्टाइन डे अच्छा है या बुरा। इस विषय पर अपनी-अपनी सोच है अपने-अपने तर्क हैं।

वैसे तो ग्लोबलाइज़ेशन के आधुनिक युग में अन्तर्राष्ट्रीय सम्पर्क के अभाव में किसी प्रकार की प्रगति के बारे में सोचना असंभव और असंगत लगता है। आज सारा संसार व्यापारिक और सांस्कृतिक चेतना और विश्वबन्धुत्व की कामना रखता है। इसलिए पूर्व पश्चिम का सम्मिश्रण और सहयोग प्रत्येक देश की संस्कृति पर अपनी छाप छोड़ रहा है।

वैलेन्टाइन डे पश्चिमी सभ्यता का प्रतीक माना जाता है। ज़्यादातर यह विदेशी मरुभूमि में उत्पन्न हुआ है। अमेरिका, कैनेडा, इंग्लैण्ड आदि देशों में प्रेमी-प्रेमिकाओं को अनादर की दृष्टि से नहीं देखा जाता। अपितु वहां अपने प्रेम सम्बंधों को बनाने की पूर्ण स्वतन्त्रता है। वैलेन्टाइन डे की निश्चित तिथि का प्रारम्भ कब हुआ यह कह पाना असम्भव है परन्तु पूरे विश्व में चौदह फरवरी का दिन प्रेमी-प्रेमिकाओं के दिन के रूप में मनाया जाता है। उस दिन प्रेमी-प्रेमिकाओं को सुगंधित फूल या उपहार देकर अपनी खुशी का इज़हार किया जाता है। यदि विश्लेषण किया जाए तो यह रिवाज़ या परम्परा विदेशी प्रतीत नहीं होती। हम अपने पुरातन काल के साहित्य का अध्ययन करें तो प्रेमी-प्रेमिकाओं के क़िस्से-कहानियां नल दम्पति से होते हुए मध्य युग के राज कुमारों के द्वारा राजकुमारियों से सुघड़ प्रेम के जुड़े प्रसंग कहीं न कहीं अवश्य दिखाई देंगे। शिंगार रस में लिखे युवक-युवतियों के उदाहरण भी उपलब्ध हो सकते हैं। हीर-रांझा, सस्सी-पुनूं, सोहनी-महीवाल, भारतीय युग्ल प्रेमी हैं। जिनका ज़िक्र इस रूप में किया जा सकता है। वास्तव में प्रत्येक युवक-युवती किसी न किसी रूप में किसी को चाहते हैं। चोरी छिपे रूमाल, अंगूठी, डायरी, माला, ग्रीटिंग कार्ड एक दूसरे को देना चाहते हैं। परन्तु समाज की मिथ्या और बेबुनियाद वर्जनाओं के भय से खुलकर सामने आना नहीं चाहते। बल्कि अपने मिलन का स्थान कोई सिनेमा घर, पार्क या धर्म स्थान और कभी-कभी मेले त्योहारों को चुनते हैं। समाज में ऐसी छूट थोड़ी बहुत लड़कों को हासिल है परन्तु लड़की अगर कहे कि अमुक लड़का उसका ब्यॅायफ्रेंड है तो उसकी जान की ख़ैर कहां है। आज के समय के साथ-साथ हालात बदलते जा रहे हैं। नर और नारी के सहयोग के बिना कुछ भी सम्भव नहीं है। नारी आज पुरुषों को हर क्षेत्र में चुनौती देने लगी है। नारी की इच्छाएं हैं, अभिलाषाएं हैं। किसी पुरुष का सहारा और सहयोग पाने की उसे भी ज़रूरत है। व्यवसायिक कारोबार या पवित्र मित्रता की भावना लेकर आज उसने नर के साथ-साथ चलने का साहस जुटाया है तो उसकी सराहना की जानी चाहिए। प्रेमी-प्रेमिकाओं को अपने सहयोगी रिश्तों को सुदृढ़ बनाकर वैलेन्टाइन डे पर एक दूसरे को शुभ कामनाएं देनी है तो इसमें कोई बुराई नहीं है। चिल्ड्रन डे, महिला दिवस की तरह वैलेन्टाइन डे यदि शुद्ध भावना और नैतिकता के साथ मनाया जाए तो यह दिन विशाल सुहृदयता का प्रतीक बन जायेगा। वास्तव में प्रत्येक नई शुरुआत का परिणाम अच्छा ही होता है बशर्ते वैलेन्टाइन डे मनाने या निभाने वाले की भावना उत्कृष्ट और मानसिकता स्नेही, उदार और उद्देश्य पूर्वक हो। यह भावना एक प्रेमी-प्रेमिका के अतिरिक्त मां-भाई, बहन, बहू, बेटी के प्रति भी वैलेन्टाइन डे के रूप में प्रकट हो सकती है। स्त्री पुरुष का संसर्ग और सहयोग संकुचित न हो कर यदि मार्मिक और अर्थसंगत हो तो वैलेन्टाइन डे का स्वागत है, अभिनन्दन है। और आने वाले युग्ल प्रेमिकाओं के लिए चौदह फरवरी को मेरी ओर से शुभकामनाएं हैं जिनके हृदय में नर-नारी के लिए जड़ता नहीं समता है।

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