भारत-वर्ष एक ऐसा देश है जिसमें सैंकड़ों दिवस मनाए जाते हैं। राष्ट्रीय शहीदी दिवस और त्योहारों के अतिरिक्त स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र-दिवस बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। कोई दिन ऐसा नहीं गुज़रता जब किसी न किसी विषय को लेकर कोई दिन न मनाया जाये जैसे मातृ-दिवस, पितृ दिवस, महिला दिवस, स्वच्छता दिवस, भ्रष्टाचार मुक्त दिवस, नशामुक्ति दिवस तथा मज़दूर दिवस आदि।
क्या वह दिन भी आयेगा जब हम रेप मुक्ति दिवस मनायेंगे? क्या हमारे देश की नारियां स्वतन्त्रता से खुलकर जी सकेंगी? लगता तो नहीं कि सम्भव हो पायेगा क्योंकि दिल्ली की निर्भया त्रास्दी के बाद जिस गति से प्रतिदिन रेप-कांड की घटनायें बढ़ी हैं और रेप चौक में हो रहे हैं कोई समाधान हो पायेगा। क्योंकि कई राज्यों के मंत्री अपमानजनिक और व्यंग्यात्मक टिप्णियाँ करते हैं कि रेप तो आधुनिक फ़ैशन है। कई नेता यह कहते सुने गये हैं कि लड़कियां अपनी पोशाक ठीक ढंग से नहीं पहनतीं। कोई उनके अंग प्रदर्शन पर अंगुली उठाता है तो कोई कहता है कि लड़कों से ग़ल्ती हो जाती है। कोई यह पूछे कि लड़कों से अपनी मां-बहन के साथ ग़ल्ती क्यों नहीं होती। वास्तव में कुछ लोगों की मानसिकता या तो रेप-अपराधियों से जुड़ी हुई है या इनको अपनी मां बेटियों की सुरक्षा की चिंता नहीं सताती। क्योंकि लीडरों के परिवारों के साथ सुरक्षाबल नियत होते हैं।
ज़रा सोचिए कि अश्लीलता और नग्नता के आरोप लगाना बड़ा आसान है। क्या नारी वातानुकूल है जिसको सर्दी-गर्मी कुछ नहीं लगती। वह सलीवलैस ब्लाउज़ या खुला-खुला जम्पर क्यों नहीं पहन सकती। उसके जीन पहनने पर क्यों पाबन्दी है? क्या लोकतन्त्र में, उसको स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार नहीं मिला? यह दकियानूसी विचारधारा नारी प्रकरण में, उसकी प्रगति में बाधक है। आज उसने बास्कट बॉल, हॉकी, कबड्डी, कुश्ती, तैराकी और जिमनेज़ियम का हिस्सा बनना है तो क्या ये प्रतिस्पर्द्धायें घूंघट या बुरका पहनकर जीती जायेंगी? क्या नृत्य और अभिनय के समय वह अपने कोमल अंगों को समेटती फिरे? पुरुष लंगोट पहन कर नंगा घूम सकता है तो नारी पर यह आरोप क्यूं? नारी के कोमल अंगों को देखकर पुरुष को जलन क्यों होती है? उसकी मनोवृत्ति में कामुक उत्तेजना क्यों उमड़ती है। जिस मां की कोख से उसने जन्म लिया है, उसी कोख को क्यों उजाड़ता है? नारी तो भगवान का रूप है। उसने नर भी पैदा किया है और नारायण भी। यदि देवकी न होती तो क्या कृष्ण भगवान का जन्म होता? यदि कौशलया नहीं होती तो भगवान राम कहां से आते। गुरू-नानक-बुद्ध जैसे अवतारी पुरुष नारी ने ही हमें दिये हैं।
यह बड़े खेद की बात है कि अपराधी लड़कियों पर तेज़ाब फैंक कर भाग जाते हैं, उनको ज़िन्दा जला देते हैं, गैंगरेप करते हैं। परन्तु सत्ता-धारियों और समाज के कानों तक जूं नहीं रेंगती। क्योंकि जिसके पांव न फटी बिवाई वह क्या जाने पीर पराई। ‘अपनी लड़कियों को आदेश दीजिए कि वह अन्धेरे में बाहर न निकलें।’ भला यह भी कोई रेप से बचने का फ़ारमूला है। अपराधी तो किसी बुज़ुर्ग की बेटी को दिन-दिहाड़े छीन कर ले जाते हैं। घर में सोई हुई लड़की को उठाकर ले जाते हैं, तो क्या सावधानी ही इसका हल है? नहीं यह सकारात्मक हल नहीं है। सार्थक हल यह है कि समाज के सभ्य पुरुष साधु-सन्यासी इकट्ठे होकर इस बीमारी के विरुद्ध आवाज़ उठायें। परन्तु साधु और नेता जो बाहुबली हैं, महात्मा, योगी और सन्यासी तो स्वयं रेप करते हैं। नारी-उत्पीड़न और यौन शोषण की घटनायें धार्मिक स्थलों पर होती हैं, यह भी आश्चर्य की बात है कि समाज-सुधारक संस्थायें क्यूं खामोश हैं? क्या उनका कर्तव्य नहीं बनता कि नारी को बचाने के लिये आगे आयें। बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ के खोखले नारों से क्या होता है। हां कभी-कभी उनकी आवाज़ सुनाई देती है जब ऐसी कोई दुर्घटना घट जाती है। पुलिस और अदालतें उन अपराधों को रोक नहीं सकती तो कौन रोकेगा। यह कितनी शर्म की बात है कि अपराधी पकड़े जाते हैं और पुलिस उनसे मिल जाती है। अदालती प्रक्रिया लम्बी होने के कारण इन्साफ़ की उम्मीद करना व्यर्थ है। अपराधी की फांसी पर हो-हल्ला मचता है। अंग काटने का प्रवधान नहीं हो सकता क्योंकि मानव आयोग इसके विरुद्ध है। तब रेप कैसे रोके जायें?
इसका सीधा और सपाट उत्तर यह है कि नारी को जूडो-कराटे, मार्शल-आर्ट आदि सिखाये जायें। ताकि मुसीबत के समय वे अपने आत्म-बल से लड़ सके। दूसरा विकल्प यह है कि जब तक नारी समाज रेप के खिलाफ़ खड़ा नहीं होगा पुरुषों की मानसिकता नहीं बदलेगी। मैं यह नहीं कहता कि सारे पुरुष बुरे हैं, अच्छे चरित्रवान पुरुषों की कमी नहीं है परन्तु पराई आग में कौन कूदता है। ये मुसीबत नारियों पर बनी है उन्होंने ही इसका समाधान करना है। समय आ गया है कि नारियों को एक जुट होकर इस घातक बीमारी का इलाज करना होगा। अपने आन्दोलन से प्रशासन को कुम्भकरणी नींद से जगाना होगा। जब तक प्रशासन जाग न जाये हर बलिदान देने के लिए तैयार रहना होगा। क्योंकि घी सीधी अंगुली से नहीं निकलता। रेप की समस्या जिन पर बनी है उन्होंने ही हल करनी है। परमात्मा भी उनकी मदद करता है जो अपनी मदद खुद करते हैं।
तुम्हारी संवेदनशीलता, धैर्य और संकल्प ही काम आयेगा। नारी सशक्तिकरण तब ही पूर्ण होगा, जब रेप जैसे जघन्य अपराध मिट जायेंगे। रेप मुक्ति दिवस मनाने के लिए पुरुष वर्ग को साथ देना होगा और लोकतन्त्र को बचाना होगा।
nice thought