-नीना मित्तल

निधि अस्पताल में भर्ती थी क्योंकि उसका हाल ही में ऑपरेशन हुआ था। अभी उसे दस-बारह दिन और अस्पताल में ही रहना था। अतः उसे देखने हर रोज़ कोई न कोई रिश्तेदार, उसकी सहेलियां या पास-पड़ोस वाले चले ही रहते थे। कभी निधि का मन होता कि वह अकेली लेट कर कोई पत्रिका पढ़े या कभी अत्यधिक कमज़ोरी के कारण उसे थकान-सी होने लगती और उसका मन सोने का करता, परंतु बार-बार आने वालों के चक्कर में न तो उसे एकान्त ही मिल पाता और आने वालों के साथ आए बच्चों की धमा-चौकड़ी की वजह से न ही दो घड़ी शान्ति का माहौल।

यह ठीक है कि आपसे अपने परिचित का दुःख देखकर रुका नहीं जाता और आप उसका हाल जानने व उसके शीघ्र स्वस्थ होने की दुआ देने की ग़रज़ से उसे देखने अस्पताल चले जाते हैं। पर इसका यह मतलब कत्तई नहीं है कि आप उसकी सहानुभूति अर्जित करने के नाम पर उसे और अधिक मानसिक कष्ट पहुंचाएं। यदि मरीज़ को देखने जाना ही चाहते हैं तो कुछ बातों को ध्यान में रख लें तो मरीज़ को असुविधा नहीं होगी और वह शीघ्र ही स्वास्थ्य लाभ करके खुशी-खुशी घर वापिस आ जाएगा-

. मरीज़ से उसकी बीमारी के बारे में बात न करके माहौल को हल्का-फुल्का बनाए रखने की कोशिश करें ताकि आपका सान्निध्य पाकर मरीज़ कुछ समय के लिए अपना दुःख भूल जाए।

. एक बार में कई लोग इकट्ठे अस्पताल न जाएं क्योंकि ज़्यादा शोर से मरीज़ को परेशानी हो लकती है। मरीज़ से धीमे स्वर में बात करें, चीख-चीख कर कत्तई न बोलें क्योंकि इससे आस-पास के मरीज़ों को भी परेशानी हो सकती है।

. बच्चों को कभी भी अस्पताल लेकर न जाएं क्योंकि जहां एक ओर बच्चों का कोमल शरीर वहां के सम्पर्क से जल्दी बीमार हो सकता है वहीं छोटे बच्चों की उछल-कूद से दवा की शीशी वग़ैरह गिर कर टूट सकती है। और फिर बच्चों की शरारतों के चक्कर में आप मरीज़ का हाल-चाल पूछने का काम भी ढंग से नहीं कर पाएंगे जिसके लिए आप विशेष तौर पर अस्पताल आएं हैं।

. यदि मरीज़ के लिए आप ताज़ा फूल ले जाएं तो खिले फूलों को देखकर उसका मन भीतर तक खिल उठेगा।

. मरीज़ के पास बैठकर अपने दुःखों का रोना न रोने लगें क्योंकि इससे मरीज़ के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और वह तनावग्रस्त हो जाएगा।

. मरीज़ के पास फुर्सत से न बैठें। थोड़ी देर बैठ कर उसका हाल-चाल पूछकर आ जाएं क्योंकि हो सकता है, आपकी उपस्थिति में वह ठीक से आराम न कर पाए।

. मरीज़ के परिवार वालों की हर सम्भव मदद करने का प्रयास करें। यदि दवाई वग़ैरह लानी हो तो फ़ौरन लाकर दें। मरीज़ के पास कुछ घन्टे रुक कर उसके परिवार के सदस्य को आराम करने के लिए घर भेज सकते हैं।

. अस्पताल की सेवाओं और साफ़-सफ़ाई के बारे में टीका-टिप्पणी न करें। न ही अपनी बातों से ऐसा ज़ाहिर होने दें कि यहां सस्ता होने की वजह से अच्छी देखभाल नहीं है। इससे मरीज़ व उसके परिजनों में हीन भावना आ सकती है। अस्पताल वैभव प्रदर्शन की जगह नहीं है।

. रोगी को ज़्यादा बोलने के लिए बाध्य न करें। वार्तालाप संक्षिप्त ही रखें।

. मरीज़ से निराशाजनक बातें कदापि न करें। जीवन को हंसते-खेलते जीने जैसी प्रेरणादायक बात करें उसे समझाएं कि सुख-दुःख जीवन के दो पहलू हैं। दुःख है तो सुख भी ज़रूर आएगा। आपकी आशावादी बातें मरीज़ के जीवन जीने के उत्साह को दुगना कर देंगी।

. और अन्त में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अस्पताल में कभी भी सज-धज कर न जाएं। सिंगार और जेवर का तो प्रश्न ही नहीं उठता।

. याद रखिए आप किसी के दुःख में शरीक होकर उसे किसी हद तक कम करने में सहायक होने जा रहे हैं न कि अपने वैभव का प्रदर्शन करके उस को आहत करने।

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