-गोबिन्द सिंह साढौरा
सुबह होते ही सोनू ने पैर दर्द होने का बहाना लगाते हुए रोना शुरू कर दिया। स्कूल जाने का समय निकलते ही उसका पैर ठीक होने लगा और वह गली में खेलने चला गया। एक दिन, दो दिन आख़िर उसके हर रोज़ के बहानों से तंग आकर उसकी माँ उसे ज़बरदस्ती स्कूल भेजने लगी। सोनू ऐसे क्यों करता है? यह वास्तव में सोचने की बात है। यह केवल सोनू की ही बात नहीं बल्कि अन्य दूसरे भी बहुत सारे ऐसे बच्चे हैं, जो स्कूल जाने से डरते हैं।
बच्चों के स्कूल जाने से डरने का एक कारण तो स्कूल से मिले होमवर्क का करना होता है। कई बच्चे स्कूल से मिला होमवर्क पूरा नहीं करते और अध्यापक की मार के डर से कई बहाने बनाकर घर बैठ जाते हैं। कई बच्चे ऐसे होते हैं जो सिफ़ारिश से अगली क्लास में प्रवेश कर जाते हैं। ऐसे बच्चों की नींव बहुत ही कमज़ोर होती है। वे अध्यापक द्वारा करवाए गए काम को अच्छी तरह नहीं समझ सकने के कारण दूसरे बच्चों के साथ नहीं चल सकते और उनको हर रोज़ हर क़दम पर अध्यापक के ग़ुस्से और मार को सहना पड़ता है। हर रोज़ की मारपीट से बचने के लिए वे स्कूल जाने से डरने लगते हैं।
बस्ते का बोझ और पाठ्यक्रम का अधिक होना भी बच्चों में डर का कारण बन जाता है। हर रोज़ हाय इतना काम, के डर से बच्चे स्कूल जाने से डरते हैं।
कई माता-पिता आजकल देखा-देखी बच्चों को कॉन्वेंट या अन्य उच्च स्तर के स्कूलों में दाख़िल करवा देते हैं। बच्चों की मातृभाषा तो पंजाबी या हिंदी होती है, लेकिन इन स्कूलों में अंग्रेज़ी बोली जाती है, जिसे छोटे बच्चों के लिए समझना बड़ा मुश्किल होता है। एक-एक विषय की कई-कई किताबें, अंग्रेज़ी माध्यम और ऊपर से बहुत-सा होमवर्क बच्चों के लिए घबराहट का कारण बन जाते हैं।
कई बच्चे तो अध्यापक की मार से घबराकर भी स्कूल नहीं जाते और अगर कभी चले भी जाते हैं तो रास्ते में ही रह जाते हैं। अध्यापक द्वारा दिया गया सख़्त शारीरिक दंड वास्तव में ही बच्चों के लिए डर का कारण होता है। जिन नन्हें-मुन्ने बच्चों ने इस क्षेत्र में अभी क़दम ही रखा है तो अधिक मारने वाला अध्यापक उनके लिए डर का कारण बन जाता है। कई बच्चे तो बीमारी का बहाना करके ही स्कूल जाने से बचते हैं। बच्चों का स्कूल में जाने से मन हटने का एक यह भी कारण है कि अगर अध्यापक स्कूल में शराब पीकर आता है, धूम्रपान करता है, कक्षा में बैठकर अख़बार पढ़ता है या फिर अपना ही कोई काम करता है तो इन सब बातों का मासूम बच्चों के मन पर गहरा असर पड़ता है। काम ध्यान से न करने वाला अध्यापक बच्चे को अधिक पीटेगा या झिड़केगा तो बच्चों के मन में डर पैदा हो जाता है और इस डर के कारण बच्चा कई क़िस्म के बहाने लगाता है ताकि किसी भी तरह उसे स्कूल जाने से छुटकारा मिल सके।
स्कूल का लंबा समय भी बच्चों में डर का कारण होता है। उनको कम से कम 5-6 घंटे तो स्कूल में बैठना ही पड़ता है जो बच्चा आज़ाद स्वभाव का हो उसके लिए तो ऐसी स्थिति बहुत ही भयानक बन जाती है।
वास्तव में बच्चे स्कूल जाने से क्यों डरते हैं? यह समस्या एक बहुत ही गंभीर समस्या है। अगर बच्चे की इस आदत को समय पर न सुधारा जाए तो यह बच्चे की शिक्षा प्राप्ति के लिए घातक सिद्ध हो सकती है।
अब प्रश्न यह उठता है कि बच्चों में स्कूल जाने के लिए रुचि कैसे पैदा की जाए? इसके लिए यह ज़रूरी है कि माता-पिता बच्चे को स्कूल से मिला होमवर्क स्वयं समय पर करवाएं। इसके अतिरिक्त बच्चे के लिए विद्यालय भी आकर्षण का केन्द्र हो। बच्चे की घर से स्कूल जाने की यात्रा भी थकावट रहित होनी चाहिए।
बच्चे के पढ़ाई का माध्यम भी वही होना चाहिए जो वह आसानी से समझ सके। बस्ते और होमवर्क का बोझ भी कम होना चाहिए। छोटे बच्चों के लिए स्कूल में विशेष तौर पर खेलने का उचित प्रबन्ध होना चाहिए जैसे गेंद, फ़ुटबाल, गुब्बारे, कुछ अन्य क़िस्म के खिलौने, वर्णमाला के प्लास्टिक के नमूने आदि। इनके साथ बच्चा व्यस्त रहता है और स्कूल जाने का उसका मन भी करता है। बड़े बच्चों के लिए स्कूल में खेल का मैदान व कुछ अच्छे खेल बहुत ज़रूरी हैं। इसके अलावा कोई खेल या अन्य काम बच्चे पर ज़बरदस्ती नहीं थोपनेे चाहिए। अध्यापक को चाहिए कि बच्चे को वही खेल खेलने या काम करने के लिए कहा जाए जिसमें उसकी रुचि हो। इस तरह अगर माता-पिता व अध्यापक दोनों ही सहयोग दें तो बच्चे के मन में आसानी से स्कूल जाने के लिए अच्छी भावनाएं पैदा की जा सकती हैं।