-रीना चेची ‘बेचैन’

क्या आपको भी कुछ-कुछ ऐसा लगता है कि आपको रोका जाता है, टोका जाता है। क्यों? क्योंकि आप लड़की हो। सारे बंधन, सारे क़ायदे-कानून और सारी पाबंदियां हमारे लिये ही क्यों? हम यानी लड़कियां अपने मन की क्यों नहीं कर सकती? हमसे कहा जाता है ऐसा करो, ऐसा मत करो, वहाँ जाओ, वहाँ नहीं जाओ। हम वह सब क्यों नहीं कर सकते, जो हम चाहते हैं? हर रोज़ इस बात पर बहस भी होती होगी कि आज पापा ने इस चीज़ के लिए टोक दिया, मम्मी ने पार्टी में नहीं जाने दिया। पड़ोसन कह रही थी कि मैंने बहुत टाइट टी-शर्ट पहनी है वग़ैरह, वग़ैरह।

रेनू अठारह साल की है। घर में सबसे छोटी लेकिन वह यह नहीं मानती कि वह छोटी है। पापा ने कॉलेज में एडमिशन लेने से मना क्या कर दिया, घर में वह इस बात पर झगड़ा कर बैठी कि उसे कॉलेज में एडमिशन लेना ही लेना है। चाहे कुछ हो जाए। पापा ने डांट दिया कि कॉलेज जाना ठीक नहीं। घर बैठकर पढ़ाई करो। रास्ते में कुछ हो जाएगा तो कौन इसकी ज़िम्मेदारी लेगा। घर बैठकर पढ़ाई करो। रेनू का मानना है कि वह अपनी ज़िम्मेदारी खुद उठा सकती है। और पापा ने इजाज़त दे दी कि खुद एडमिशन ले लो। बहुत मुसीबतों का सामना करते हुए रेनू ने कॉलेज में एडमिशन ले ही लिया। पूरा परिवार ही नहीं, उसके पापा भी हैरान हो गए, जब उसने कॉलेज जाना शुरू किया। प्रीति कॉलेज में पढ़ती है। पढ़ने के साथ-साथ उसे ग़ज़ल, कविता और कहानियाँ लिखने का भी बड़ा शौक़ है। अख़बार या पत्रिका में कई बार उसके इनाम निकले। लेकिन घरवालों ने उसे कोई प्रोत्साहन नहीं दिया। उल्टा उसके पापा ने उसे खूब डांटा। उसे महसूस होने लगा कि सचमुच ही लड़की का कोई अस्तित्त्व नहीं। प्रीति इस बात से भी नाराज़ है कि मम्मी उसके छोटे भाई को तो दोस्तों के साथ घूमने जाने देती हैं, लेकिन उसे मना कर देती है। प्रीति को लगता है कि जब वह अपना ख़्याल रख सकती है तो फिर मम्मी उसे क्यों वक़्त-बेवक़्त रोकती रहती है।

हर लड़की प्रीति की तरह यह चाहती है कि उसे वह सब करने की छूट मिलनी चाहिए, जो वह चाहती है। उसके कहीं भी आने-जाने पर कोई बंदिश न लगाए। कई बार माँ-बाप द्वारा बात-बात पर टोकने से लड़कियाँ भेद-भाव (लड़का-लड़की) की ग़लतफ़हमी का शिकार हो जाती हैं। और कई घरों में सचमुच ही उसके साथ भेद-भाव किया जाता है।

लेकिन कुछ हद तक यह बात ठीक भी है कि अकसर लड़कियों को कुछ करने के लिए ऐसे हालात से गुज़रना पड़ता है। लेकिन बात को सही तरह से समझने की आवश्यकता है कि ये रोक-टोक के पीछे असली कारण क्या है। पूजा जो कि कॉलेज की छात्रा है, कॉलेज के बारे में बता रही थी कि कैसे वह रो-रो कर कॉलेज आती है। रास्ते में खड़े लड़के कैसे-कैसे कमेंट उन पर कसते हैं। बसों में छेड़-छाड़ तो आम बात है पूजा कराटे जानती है और बोलने में भी उस्ताद है लेकिन एक अजीब-सा डर उसे हमेशा सताता रहता है। इसलिए इस बात को लेकर कॉम्पलेक्स मत पालो कि तुम्हें कुछ करने से रोका जा रहा है। बड़े ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें तुम्हारी परवाह है। बल्कि हमें तो खुश होना चाहिए कि हमारी देखभाल करने वाले इतने सारे लोग हैं।

हाँ, अगर तुम कुछ करना चाहती हो तो बड़ों की राय लेकर करो। कई बार तुम जो सोच नहीं पाती, वे सोच-समझ लेते हैं। कुछ घरों में माता-पिता बच्चों को लेकर ओवर–प्रोटेक्टिव होते हैं। वहाँ बच्चों को दिक़्क़त आती  है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे बच्चे घर में बग़ावत करें। अपनी बात स्पष्‍ट और सही ढंग से कह कर देखो। अगर तुम्हारी बात में दम है तो बड़े उसे ज़रूर मानेंगे। अगर तुम रोकर, चिल्लाकर या बिसूर कर अपनी माँग रखोगी तो बच्ची तो कहलाओगी ही।

अगर इस पर भी तुम्हारी बात नहीं मानी जा रही तो उसका भी उपाय है। उस माँग से ध्यान हटा लो। अपना ध्यान उस काम पर लगाओ जो तुम अच्छी तरह कर सकती हो। अपने मन का काम करने के लिए तो उम्र पड़ी है। लेकिन जहां बच्चों का फ़र्ज़ है हालात को समझना, अपने को उस मुताबिक़ ढालना। वहीं माँ-बाप का भी कर्त्तव्य बनता है कि बेटियों की योग्यता को नज़र-अंदाज़ न करते हुए उनको आगे आने का मौक़ा दें।   

 

 

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