-नील
कमल (नीलू)

बड़े-बड़े कवियों ने भी औरत को त्याग की देवी का नाम दिया व उससे सिर्फ त्याग की ही अपेक्षा की पर वे यह भूल गए कि यदि त्या‍ग की देवी सीता वह है तो चंडी भी वही है व झांसी की रानी भी वही है।

औरत ने आज हर तरफ सफलता पा ली है, लेकिन इस सफलता के पीछे हज़ारों रुकावटों और उस के त्याग का एक लम्बा सफ़र है। क्या आपने कभी सोचा है कि खुले आसमान में बेखौफ उड़ते हुए भी कभी कभी यूं लगता है, जैसे ज़माना बेवजह ही कतर देना चाहता है, ऊंची उड़ान के पंख लेकिन वो यह नहीं जानता कि जितनी बार परों को कतरने की कोशिश की जाएगी, रुहानी पंख उतने ही मज़बूत हो जाएंगे। कुछ ऐसी ही कहानी है औरत की ।

औरत, जो कि समाज का एक महत्वपूर्ण परन्तु नाज़ुक हिस्सा है, को सदैव निम्न दर्जे का स्थान दिया गया है। वैसे तो प्राचीन धार्मिक ग्रंथों या कविताओं में बड़े-बड़े विद्वानों व लेखकों ने औरत को बहुत उच्च स्थान दिया है, किन्तु यूं लगता है-जैसे ये सब बातें सिर्फ किताबों के लिए हैं। रामायण कथा के सतयुग में भी यदि इस कथा के बारे में गौर से सोचें तो पता चलता है कि औरत का आदर सिर्फ दिखावे की बातें थीं। धोबी का अपनी पत्नीे को घर से निकालना, लंका से लौटने पर सीता जी की अग्नि परीक्षा व एक धोबी की बातों में आकर सीता जी को श्री राम द्वारा बनवास देना इत्यादि जैसी अनेक घटनाओं से साफ़ ज़ाहिर है कि औरत के साथ उस समय भी कैसा दुर्व्यवहार होता था। इस के अतिरिक्त यदि महाभारत के युग में झांक कर देखें तो हम देखेंगे कि औरत के साथ किस घटिया दर्जे का दुर्व्यवहार होता रहा है। पुरुष के द्वारा औरत के ऊपर अत्याचारों की इंतहा का अंदाज़ा द्रौपदी को उसके पति द्वारा जुए में दांव पर लगाने से ही लगाया जा सकता है। पहले एक पुरुष ने औरत को एक निर्जीव वस्‍तु मान कर दांव पर लगाया फिर दूसरा पुरुष जिसने वह बेजान वस्तु जीत ली थी, उस ने उसके साथ भरे दरबार में मनचाहा व्यावहार किया और अन्य महान पुरुष इसे राजनीति का खेल समझ कर चुपचाप देखते रहे, क्योंकि उनका दखलअंदाज़ी करना खेल के नियमों के विरुद्ध था। यह सही है कि बहुत सारे लोगों ने उस समय औरत को उच्च स्थान दिया व पूजा योग्य देवी माना। पर घटिया दुर्व्यवहार की उदाहरणें भी कम नहीं हैं।

वैदिक काल में ऐसी कई विद्वान औरतें सामने आई, जिन्होंने विद्वानों की दुनियां में अपना सिक्का जमाया। जिन में से गारगी का नाम विशेष तौर पर जाना जाता है। उस समय औरतों ने जो स्थान हासिल किया, उसे चंद शब्दों में समेटना नामुमकिन है।

फिर रजवाड़ाशाही व जागीरदारी प्रथा के विकास ने औरत को बुरी तरह पिछाड़ा। इस‍ विकास के साथ तानाशाह सरकारें अस्तित्त्व में आई, जिन्होंने औरत की बहुत बेकदरी की। उस समय औरत को ‘पैर की जूती’ या दासी समझा जाने लगा। उसको घर की चारदीवारी में कैद कर दिया गया। पर आधुनिक युग में औरत ने जो उपलब्धियां हासिल की हैं उनका शब्दों में ब्यान मुश्किल है। आज औरत घर की दहलीज़ से बाहर कदम रख चुकी है व बुर्के, घूंघट इत्यादि बंदिशों से आज़ाद हो कर खुले समाज में घूमती है। इस में कोई शक नहीं है कि औरत के अधिकारों की प्राप्‍ति के लिए कानून भी जिम्मेवार है जहां औरत को शिक्षा देना बुरा माना जाता था, वहां आज शिक्षा प्राप्‍त करना उसका कानूनी अधिकार है। कोई भी विभाग ऐसा नहीं, जिसमें औरत ने ऊंचा पद हासिल न किया हो। वही पुरुष जो औरत को कभी दासी समझता था, आज बड़े-बड़े दफ्तरों में उसकी जी-हजूरी करता है। किरन बेदी जैसी औरतों ने समाज में मिसाल कायम की है। मारग्रेट थैचर, इंदिरा गांधी, बेनज़ीर भुट्टो जैसी औरतों ने बड़े बड़े राष्ट्रों व लाखों-करोड़ों पुरुषों पर शासन कर दिखाया। कुछ लोगों का विचार है कि ऐसे नाम गिने चुने हैं। किंतु क्या इतने उच्च स्थानों पर पहुंचने वाले पुरुष भी उंगलियों पर गिनने लायक ही नहीं ? यह सही है कि औरतें पुरुषों के मुक़ाबले में ऊंचे पदों पर बहुत कम हैं। पर क्या यह भी सच नहीं कि इतनी पिछड़ी हालत से उठ के एकदम इतनी आगे आना भी बहुत बड़ी सफलता है ?

यह सही है कि बड़े-बड़े शहरों में दर्जा बढ़ाने की लालसा में कई औरतों ने अपनी नैतिकता गिरा दी। पर क्या पुरुष खुद बहुत बड़ी गिनती में नैतिकता गिरा के ऊपर नहीं उठते ? पर फिर भी औरत का दोष हमेशा बढ़ा चढ़ा कर आगे आता है। सैंकड़ों में कोई एक-दो पुरुष ही होंगे, जो कि नैतिक रूप से पूरी तरह अच्छे हैं, जब कि ऐसी बुरी औरतों की संख्या बहुत कम है। सच तो यह है कि पुरुष खुद तो राम होते नहीं, पर चाहते है कि प्रत्येक औरत सीता हो। यूं स्पष्‍ट है कि पुरुष का घटिया नज़रिया ही औरत को गिराता है।

औरत अत्याचारों के आगे झुक के स्वयं भी अपने पिछड़ेपन का कारण बन जाती है। पर वह झुकती है क्योंकि वह अपने ही घर को बिखरता नहीं देख सकती। बड़े बड़े कवियों ने भी उसे त्याग की देवी का नाम दिया व उस से सिर्फ त्याग की ही अपेक्षा की। पर वे भूल गए कि यदि त्याग की देवी सीता वह है, तो चंडी भी वही है व झांसी की रानी भी वही है। जिस तेज़ी से औरत ने आज उन्नति की है, आशा है कि शीघ्र ही वह सभी पड़ावों को पार कर के अपनी मंज़िल को हासिल करने में सफल होगी और उन्नति के रास्ते पर सब को पीछे छोड़ कर आगे आएगी- समाज का कल्याण भी इसी में है।

 

One comment

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