-गोपाल शर्मा फिरोज़पुरी

बालिका रूप में कंजकों का पूजन इस बात को प्रमाणित करता है कि नारी शक्ति स्वरूपा, सृष्टि की कर्ता, सर्वगुण सम्पन्न और वरदान देने वाली है। वह मां दुर्गा है, काली माता है, सन्तोषी माता है, ज्वाला माता है, शारदा माता है और विभिन्न रूपों को धारण करती हुई जगतमाता है। सरस्वती के बिना ब्रह्मा का कोई मोल नहीं। लक्ष्मी के बिना विष्णु का कोई महत्त्व नहीं, पार्वती और शिव समरूप हैं। पार्वती शिव में विलीन है और शिव पार्वती का पर्याय है।

 नारी से नर उत्पन्न होता है और नर से नारायण बनता है। नारी संसार की संचालिका है। बिना नारी के जगत नरविहीन और शून्य की परिस्थिति का संताप भोगेगा। नारी प्रेम सुधा है, सहानुभूति और सहयोग की विशाल मूर्त है, राम और सीता, कृष्ण और राधा भिन्न नहीं समरूप हैं। नारी भगवान् से बड़ी क्यूं है, समाज को संभवत: यह बात पच नहीं पाएगी, अखरेगी और पीड़ित करेगी परन्तु यथार्थ तो यथार्थ है इससे मुंह नहीं मोड़ा जा सकता। सत्य को स्वीकारना ही पड़ेगा। भगवान् राम को जन्म किसने दिया कौशल्या माता ने यदि कौशल्या राम को जन्म न देती तो भगवान् राम नहीं मिलते। यह नारी का ही उपकार था कि उसने राम को धरती पर अवतरित किया यदि देवकी के गर्भ से कृष्ण का जन्म न होता तो भगवान् कृष्ण हमें प्राप्त नहीं होते। हमें गीता का ज्ञान उपलब्ध नहीं होता। देवकी महान है जिसने कृष्ण को जन्म दिया। कंस की काराग्रह की यातनाओं के बीच कृष्ण को जन्म देने वाली नारी धन्य है, इसलिए भगवान् और भगवती का संगम सृष्टि का आधार है। हमें यीशु मसीह प्रभु की उत्पत्ति मैरी की कोख से मिली है। मरियम को किसी भी रूप में भगवान् से कम नहीं आंका जा सकता।

 गौतम बुध की जननी धन्य है, राजा सुद्धोधन की पत्नी माया के गर्भधारण के कारण भगवान् बुध पैदा हुए हैं। नारी यानि बुद्ध भगवान् की जननी अवश्य ही उससे श्रेष्ठ हैं, पूज्य है, उससे बड़ी है।

 गुरु नानक की माता तृप्ता ने गुरु नानक को धरती पर अवतरित करके एक अति शोभनीय और पूजनीय कार्य ही तो किया है। माता-तृप्ता पूज्य है, भगवान् की उपाधि की हक़दार है।

 जैन-मुनि महावीर वर्धमान ने मां त्रिशला की कोख से जन्म ग्रहण किया है। यह वास्तविकता है कि नारी की देन को ठुकराया नहीं जा सकता। नारी ईश्वर प्रदत्त ऐसा नज़राना है जिसके भीतर यह चेतन जगत जगमगाता है। दुनियां का कोई पीर-पैगम्बर, दिगम्बर, सन्त-फकीर, ऋषि-मुनि धरती पर न मिलता यदि नारी इन्हें उत्पन्न न करती। मुसलमानों केे हजरत मुहम्मद भी अमिनाह बिन्त वहब् की औलाद होने केे कारण उन्हें पूज्य बनाते हैं। अत: ग्रन्थों में लिखा है ”यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्तेे तत्र देवता:।”

नारी भगवान् से बड़ी है। जो नारी से प्रेम नहीं कर सकता है, वह अभागा है, बदक़िस्मत है। नारी के कारण ही तो नर का अस्तित्व है, नारी की पूजा भगवान् की पूजा है, नारी की अवहेलना नर्क के द्वार खोलती है, नारी को क्यूं भगवान् से बढ़कर माना गया है क्योंकि भगवान् और नारी दोनों सृष्टि को चलाते हैं। भगवान् तो नारी को अपना जामा पहनाकर कार्यमुक्त हो गया है, उसने सारा भार नारी पर छोड़ दिया है। यदि अवलोकन किया जाए तो भगवान् ज़मीन पर आकर प्रकट नहीं होता। केवल नारी ही अपनी प्रकृति दत्त शक्ति से नर की उत्पत्ति करके मां कहलाती है। मां के गर्भ में शिशु पलकर और जन्म लेकर ब्रह्म स्वरूप बन जाता है। यह नारी की ही देन है कि बड़े तपस्वी, योद्धा, राजा और वज़ीर पैदा होते हैं। लक्ष्मी, पार्वती, सीता, राधा की भक्ति भावना, तपस्या और योग हठ तप बल के कारण मनोरम सृष्टि का निर्माण हुआ। मां किसी भी रूप में हो साक्षात् देवी है, मां का कर्ज़ मनुष्य सात जन्मों तक नहीं चुका सकता। क्योंकि माता को भूमि माना गया है, धरती मां सब की मां है। वह ममतामयी है, दयालुु और कृपालुु है, मां जिसे प्राप्त हो जाये, उसे संसार की दौलत मिल जाती है। उसकी करुणामय दृष्टि जीवन को संवार देती है।

 मां पालक भी है, और संहारकर्त्ता और हरता भी है, मां का रौद्र रूप दुर्जनों का नाश कर देता है। जब वह दुर्गा और काली मां बनती है तो राक्षसों के सर काट लेती है। जब द्रौपदी बनती है तो दुशासन और दुर्योधन को सबक सिखाने का प्रण लेती है। धरती पर केवल अवतारी माताएं ही पूजनीय नहीं है अपितु रानी झांसी, सरोजिनी नायडू, पन्ना धाय आदि वीरांगनाएं भगवान् तुल्य हैं, जिन्होंने शत्रुओं से लोहा लिया है। माता गुजरी, माता तृप्ता वे वीर माताएं है जिन्होंने अपने रक्त और पुरुषार्थ से इस धरा को चार-चांद लगाये हैं। संक्षेय में हम कह सकते हैं कि नारी त्रिलोकी शान है।

 लेकिन बेहद चिंतनीय है कि आधुनिक नवीन युग में माताओं देवियों का पूजन तो क्या होना है बल्कि उन्हें वृद्ध आश्रमों में धकेला जा रहा है। आजकल श्रवण कुमार जैसे बेटे कहां दिखाई देते हैं जो मातृ-पितृ भक्त हों। अब तो मां, बेटी और नारी का तिरस्कार हो रहा है। रेप-हत्या और अपहरण आम हो गया है। निर्भया कांड के बाद यौन शोषण और नारी उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ती ही जा रही हैं। विधायक ही नारी की इज़्ज़त तार-तार कर रहे हैं। अमरमणि त्रिपाठी ने मधुमिता को बरबाद किया। भंवरी देवी जो संसद की सांसद थी उसकी मौत के बाद कई राजनीतिक चेहरे नंगे हुए। अभी-अभी कुलदीप-सेंगर ने जो कांड किया उससे सारा उन्नाव तो क्या पूरा भारत वर्ष हिल गया है। ऐसी घटनाएं दुर्भाग्यपूर्ण हैं। यदि समाज और देश ने उन्नति करनी है तो नारी को भगवती देवी मानकर उसकी आराधना करनी होगी। जो समाज मां की, नारी रूप की अवहेेलना करेगा वो नष्ट हो जाएगा। जो नारी का तिरस्कार करेगा वो पछताएगा। कोई भी देश, समाज तभी यश प्राप्त कर सकता है यदि वहां की महिलाएं कंधे से कंधा मिला कर साथ चलेंगी। अत: सारांश में हम कह सकते हैं कि नारी ही युगद्रष्टा है जो समाज की दशा और दिशा को बदल सकती है।

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