समाज एवं सामाजिक समस्याएं

आओ विचारें आज मिलकर

-जसबीर चावला   सभी हिन्दु एक से नहीं होते, न एक से मुसलमान होते हैं। दरअसल एक जैसी कोई दो मूरतें भगवान् ने नहीं बनाई। एक ही पेड़ पर हर पत्ता अलग है। प्रकृति में सूक्ष्मता से वैज्ञानिकों ने अध्ययन कर पाया है, एक सा होते भी कुछ न कुछ फ़र्क़ रहता ही है। तभी तो लोकोक्‍तियां भी है- ‘‘पांचों ...

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वास्तुदोष के कारण होते रहेंगे प्रदेश विभाजित

   -कुलदीप सलूजा भारत सदियों से छोटे-छोटे राज्यों में ही विभाजित रहा है। यदि किसी सम्राट ने अपनी ताक़त के ज़ोर पर इसे एक कर भी लिया तो एकीकरण के कुछ समय पश्‍चात् ही पुन: विभाजन की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई। जो कि वर्तमान में भी निरंतर जारी है और आगे भी जारी रहेगी यह तय है। क्योंकि भारत की भौगोलिक ...

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टूटे संयुक्‍त परिवार पड़ी संस्कृति में दरार

-शैलेन्द्र सहगल संस्कारों के बिना संस्कृति उस कलेंडर की भांति है जो उस दीवार पर टंगा रह जाए जिस घर को पुश्तैनी सम्पत्ति के रूप में जाना तो जाए मगर रहने के लिए, जीने के लिए अपनाया न जाए उसे ताला लगाकर उसका वारिस नए और आधुनिक मकान में रहने चला जाए। कलेंडर बनी संस्कृति में उन तिथियों की भरमार ...

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वक़्त के साथ बदली है मर्द मानसिकता भी

-मंजुला दिनेश   आदिकाल से ही स्त्री-पुरुष संबंधों पर विभिन्न कोणों से विचार मंथन जारी है। यह एक ऐसी गुत्थी है जो समय परिवेश और परिस्थितियों के अनुरूप कभी उलझती और कभी सुलझती रही है। स्त्री को ऐसी अनबूझ पहेली के रूप में प्रस्तुत किया गया जिसे आम आदमी तो क्या देवता भी समझने में सक्षम नहीं। औरतों को शंका ...

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शून्य महाशून्य या परिपक्वता

जब नारी परिपक्वता की ओर क़दम बढ़ाती है यह पुरुष जाति शून्य की ओर क़दम बढ़ाती है।जब नारी परिपक्वता की तरफ़ अग्रसर होती है तब यह पुरुष जाति महाशून्य की ओर

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औरत पर अत्याचार आख़िर सच्चाई कितनी

-धर्मपाल साहिल भारतीय इतिहास के पृष्‍ठ महिलाओं की गौरवमयी कीर्ति से भरे पड़े हैं। शास्त्रानुसार जहां स्त्रियों की पूजा होती है, वहां देवता वास करते हैं। औरत को गृहलक्ष्मी, गृहशोभा, सुरोपमा आदि उपमाओं से सुशोभित किया गया है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में नारी ने पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिला कर साथ दिया तो कई बार उससे दो ...

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