धर्म, अध्यात्म

धर्म और राजनीति

धर्म को अगर राजनीति से जोड़ कर देखा जाए तो चहूं ओर राजनीति का बोलबाला ही नज़र आता है और आज की राजनीति का कोई धर्म नज़र नहीं आता।

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जीवन आनंद

                                                         –शिवनंदन भारद्वाज जीवन का मूल तत्‍व आनंद ही है। यदि हमारा जीवन आनंदभरा संगीत नहीं तो इस के कई कारण होने चाहिए। वह है ईर्ष्‍या, भय, क्रोध, लोभ, निराशा आदि। इन दोषों से विमुक्‍त जीवन आनंदभरा, प्रेमभरा, निष्‍काम सेवा भरा और सुन्‍दरता भरा होगा। स्‍वस्‍थ जीवन यह है कि हम वर्तमान में प्रसन्‍न रहें। पर लोभी व्‍यक्‍ति वर्तमान में ...

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मानव जीवन में धर्म का महत्त्व

                                                                                                                                                                          -प्रेम प्रकाश शर्मा सृष्‍टि-यो‍जना में किसी भी तत्व, पदार्थ, स्थिति, कृत्ति, भाव आदि के ठीक–ठीक मूल्यांकन कर सकने से पूर्व उसके मर्म को समझ लेना अनिवार्य होना चाहिए । इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए यह स्पष्‍ट है कि ‘धर्म’ क्या है, यह निश्चित किया जाए। कहा गया है ‘धारयति इति धर्म:।’ अर्थात् जो धारण करें, वही धर्म ...

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आध्‍यात्मिकता के प्रयोग: व्यर्थ की निवृत्ति

 -प्रो: हरदीप सिंह आध्यात्मिकता शब्द यदि कुछ व्यक्तियों का ध्यान अपनी ओर खींचता है तो वहीं आध्यात्मिकता के नाम पर नाक-भौं सिकोड़ने वाले व्यक्तियों की भी कमी नहीं है। आध्यात्मिकता को पसंद और नापसंद करने वालों की काफ़ी तादाद है। इसका कारण यह है कि हमें ऐसे व्यक्ति बहुत कम संख्या में मिलते हैं। जिनके जीवन में हमें रूहानियत की ...

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आध्‍या‍त्‍मिकता के प्रयोग

-प्रो.हरदीप सिंह आत्म-सुख में सन्तुष्ट रहना सभी सुखों सें श्रेष्ठ है और संतुष्टता सर्वगुणों में ‍शि‍रोमणि है। सभी मानवीय गुणों का सरताज है सन्तोष, क्योंकि सन्तुष्ट व्यक्ति राजा के समान सुखी रहता है। यह तो संभव है कि कोई राजा भरपूर खज़ाना होने के बावजूद भी खुश न हो परन्तु संतुष्ट व्यक्ति ऐसा बेताज बादशाह होता है जिसके पास सदा ...

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