“मम्मी! आप मेरी मदद क्यों नहीं करतीं? आप तो अच्छी तरह जानती हैं कि मुझे पढ़ाई का कितना शौक़ है। इसी तरह चलता रहा तो मैं सिनॉपसिस कैसे तैयार करूंगी?” उसकी आंखों में आंसू आ गए। “मैं तेरे भइया से आगे नहीं चल सकती।” मां ने सपाट स्वर में कहा।
Read More »साहित्य सागर
मौनी महाराज
अपुन को सिद्ध योगी बनने का रे…. मतलब…. ? अपुन को योग, निरोग और भोग को साधने का रे….। मैं समझा नहीं मुन्ना भाई….। तेरे को समझाने की नईं रे कुछ करने का। क्या करने का भाई….? प्रचार। ये आचार तो कई दफ़ा सुना था म-ग-र…. प्रचार…. ?
Read More »बनो अच्छा पड़ोसी
मैं मिलनसार हूं। संकोच की छाया तो मैंने कभी अपने व्यक्तित्व पर पड़ने ही नहीं दी। पड़ोसियों के घर की चीज़ें मेरी ही हैं। पड़ोसी का अख़बार मैं पहले पढ़ता हूं। उनका हैंड पम्प हमारा ही है। उनका रेडियो, खुरपा, कुदाल, हथौड़ी बाल्टी आदि मेरे घर में हैं।
Read More »ख़र्च
मां की मौत की वजह से सारे घर में मातम छाया हुआ था। संस्कार की रस्म के तीन चार दिन बाद ही ख़र्चे के नाम पर दोनों भाइयों में बहस हो गई। मगर लोक लज्जा का उन्हें फिर भी ध्यान था।
Read More »बंदूकें और कंटीली तार
आज की इस सरहद के पास ही था मेरा घर कभी बेशक था छोटा सा मगर था, थे कुछ खेत और खलिहान बसता था एक खुशहाल गांव भी
Read More »मां
मैंने प्रथम बार जब स्वयं में तुम्हारे होने के संकेत पाए तो लगा मैं आकाश हो गई हूं
Read More »चिट्ठियां
आज भी संजोये हुए हूं वो पुरानी चिट्ठियां धुंधले पड़ गए हैं शब्द नर्म पड़ चुके और गले हुए काग़ज़ बचाए हुए हैं अपना वजूद जैसे-तैसे
Read More »जब सिर पर मौत खड़ी हो
जगते ने तेजे के कन्धे पर धौल जमाई फिर अंधेरे में ही बोला, ‘हां, तो क्या कहा था उस लड़की ने जिसके साथ तेरा रिश्ता होते-होते बीच में ही रह गया था।’ ‘छोड़ो यार! जाने दो किसकी बात लेकर बैठ गए।’ तेजा इस विषय पर बात करने के मूड में नहीं था पर जगता कहां छोड़ने वाला था। झट से ...
Read More »औरत
औरत नुमाइश नहीं एक गहन सोच है दिलों की तहों से गुज़रती एक आग है औरत मज़हब नहीं खुद में खुदा है।
Read More »पात्र
मां! का तू बापू को छोड़ सकी थी? दारू की पूरी बोतल पेट में उतार कर आता तो तुझे मारता-पीटता था। सारी ज़िन्दगी उसी से बंधी रही थी। बोल मां? चुप क्यों है?
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