स्क्रीन र्व्लड

लिखना फ़िल्मों के लिए

फ़िल्म की शूटिंग पूरे ज़ोरों पर थी। फ़िल्म का सैट एक हवालात का था। हवालात में बंद मुलज़िम (सन्नी देयोल) खून से लथपथ हुआ सलाख़ों वाले दरवाज़े की तरफ़ चलता आता हुआ चीखता है, “मुझे तो तुमने ज़िंदा छोड़ दिया है इंस्पेक्टर, पर अब मैं तुम्हें ज़िंदा नहीं छोड़ूंगा।”     “कट।” निर्देशक की आवाज़ गूंजी, “राइटर कहां है?”      लेखक काग़ज़ों का ...

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विज़डम ट्री

-जसबीर भुल्लर   विज़डम ट्री अर्थात् बोध वृक्ष फ़िल्म एण्ड टेलिविज़न इंस्टीट्यूट ऑफ़ इन्डिया, पुणे के प्रभात स्टुडियो के नज़दीक खड़े उस वृक्ष का नाम ‘विज़डम ट्री’ पता नहीं किस समय पड़ गया था। विज़डम ट्री एक साधारण-सा आम का वृक्ष है परन्तु फिर भी वह साधारण नहीं। 1983 में मैं पहली बार फ़िल्म इंस्टीट्यूट गया था। उस समय तक ...

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संवेदनशील एक्ट्रेस और बेबाक व्यक्तित्व- कंगना राणावत

कंगना को स्पष्टवादिता के बारे में जाना जाता है। बेबाकी से अपनी हर बात को रख पाने में मशहूर कंगना हमेशा विवादों में घिरी रहती है। वो अपनी शर्तों पे जीती है और विवादों से प्रभावित नहीं होती। जब हर सवाल का सटीक जवाब देती है तो बहुत परिपक्व नज़र आती है।

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फ़िल्मी सितारों की ज़िन्दगी में ताक झांक

-सिमरन यूं तो मनोरंजन मीडिया का अहम हिस्सा है इस में कोई दो राय नहीं। लेकिन आज बाज़ारवाद के युग में मनोरंजन सर्वोपरि हो गया है। आज तो हर चीज़ पेश करते समय प्रतिस्पर्द्धा को ध्यान में रखा जाता है। जैसे ही न्यूज़ चैनल्ज़ का ज़माना आया समाचारों का रूप ही बदल गया। हर समाचार को मनोरंजक तरीक़े से पेश ...

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झूठे कहकहों का बोझ ढोती ये हसीनाएं

-सिमरन प्रत्यूषा की मौत … एक मासूम खिलखिलाहट का मौन हो जाना … यह महज़ एक ख़बर न थी। यह एक सदमा था तमाम लोगों के लिए। प्रत्यूषा यानी आनंदी यह वो नाम था जिसने हर दिल में अपनी एक अलग जगह बना रखी थी। एक वक़्त था जब वो हर घर का सदस्य हो गई थी। सभी की दुलारी ...

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टैलीवुड भी चल निकला बॉलीवुड की राह

बॉलीवुड सदैव ही दर्शकों के दिलों में समाया रहा है। फ़िल्मी सितारों का उन पर सर्वाधिक प्रभाव रहा है। पृथ्वी राज कपूर से लेकर रणबीर कपूर तक का फ़िल्मी सफ़र अपने आप में एक इतिहास को समेटे हुए है। पृथ्वी राज कपूर द्वारा अभिनीत मुग़ल-ए-आज़म आज भी सभी की पसंदीदा फ़िल्म है। पृथ्वी राज कपूर ने मुग़ल-ए-आज़म अकबर के रूप ...

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फ़िल्म इंडस्ट्री की परिवर्तित रूपरेखा

बदलते समय के साथ फ़िल्म इंडस्ट्री में भी परिवर्तन आने लाज़िम हैं। धीरे-धीरे लोगों की सोच बदलने के कारण उनका नज़रिया भी काफ़ी हद तक बदल गया। पर फिर भी 1950-60-70 की पुरानी फ़िल्मों की छवि जो लोगों के दिल पर बन गई थी उसे समय भी धो नहीं पाया। 1950-60-70 में ऐसी फ़िल्में बनीं जिन्होंने अपना एक अलग ही ...

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