सिमरन

कंटीली राहें

कितनी ही आंखें रोई होंगी। कुछ आंसू नज़र आए, कुछ चार दीवारियों में घुट के रह गए जिन को कोई न देख पाया।

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रिश्तों के रंग

कहते हैं इन्सान इसी दुनिया में स्वर्ग और नर्क के दर्शन कर लेता है और हमने यह दर्शन किए हैं अलग-अलग रिश्तों के रूप में। कभी मां की ममता के रूप में स्वर्ग देखा है तो कभी बहन-भाई के निश्छल प्यार के रूप में, कभी दोस्ती के निर्मल प्रेम के रूप में, तो कभी दो दिलों की पाकीज़ा मुहब्बत के ...

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नई भोर

लेकिन अपनी मंज़िल पाने के लिए, आगे बढ़ने के लिए दूसरों के रास्ते नहीं रोकने हैं। जो अपनी मंज़िल को पा गए वो जाने जाएंगे। लेकिन उस मंज़िल को दिलाने में जिन्होंने क़ुर्बानी दी, पूजे वही जाएंगे। इतिहास वही कहलाएंगे।

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अपना घर

इक्कीसवीं सदी की दहलीज़ पर ठिठक गया विश्‍व पुरानी परम्पराओं के नूतन नाम सोच निकालने की कशमकश में जकड़ा हुआ लगता है। अपने घर से बाहर क़दम रख चुकी भारतीय नारी इन परम्पराओं को बदलने के भ्रम में जी रही है। बाहर की दुनिया में जूझने को निकली ये नारी अभी तक अपने घर के बारे में ही भ्रमित है। ...

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साहित्‍य के सृजनहार

लेखकगण, कवि सीधा भगवान से मुकाबिल हो जाते हैं जब उन‍को अपनी कल्‍पना शक्‍ति पर ग़रूर होने लगता है। लेखक को लगता है कि जब वो दुनिया का तसव्‍वुर करता है तो बेहद खूबसूरत दुनिया की तस्‍वीर ज़ेहन में उभरती है। लेकिन यह संसार, यह वास्‍तविक दुनिया यदि वास्‍तव में भगवान की कल्‍पना का नतीजा है तो उसे भगवान की ...

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