अपने अपराधों से मत शरमाइए। आइए, आइए, आइए, अपने अपराधों के आधार पर हमारी पार्टी के थ्रू राजनीति में अपनी आदरणीय जगह बनाइए।
Read More »अशोक गौतम
रावण खुश हुआ मित्र
‘बस एक ही! देश की तरह रावण बनाने वाले भी जल्दी में थे क्या? आग लगे ऐसी जल्दी को जो, नाश का सत्यानाश करके रख दें।’ ‘महाशय आप तो दशानन थे न? फिर अब के.....’
Read More »गणेश न मिले रे पूजन को गणेश
‘गणेश जी। आप यहाँ। मैं आप को मारा-मारा फिरता हुआ कहाँ-कहाँ नहीं ढूँढ रहा था। कम से कम मन्दिर में तो रहा करो नाथ।‘मन्दिर में? तुम रहने दो तब न।’
Read More »हे पद तुझे सलाम
दरवाज़े के आगे तो बहुत कुछ है उल्लू! धेले में बिकता कानून है, दुराचार में डूबी राजनीति है, हर जगह मरता सच है, खून के प्यासे रिश्ते हैं।
Read More »रिश्वत दें, लें पर प्यार से
मैं तो नहीं पर अपने गांव के बोधराम शास्त्री का कहना है- रिश्वत लेने के बाद मंदिर जाने को मन करे तो हो आएं, इससे मन की शुद्धि तो नहीं होती पर शुद्धि का भ्रम ज़रूर होता है। रिश्वत देने व लेने को आदत न बनाएं, इसे शौक़ मानकर लें और दें।
Read More »वो पंडित भला किस काम का जो
देख... यजमान की दरियादिली... पंडित जी! ऊपर से नीचे तक मुस्काए, उनकी वीभत्स मुस्कुराहट देखकर नौ के नौ ग्रह घबराए... पंडित जी ने आव देखा न ताव... झोले से काग़ज़ पेन निकाला... ठीक की गले की मायावी माला... चौकड़ी मार... अपनी कंगाली झाड़... सामग्री लिखने लगे
Read More »साहबे भक्ति कलियुगे
'कमाल है यार, बड़े कम दिमाग़ के हो। वे दफ़्तर के साहब हैं, चपरासी नहीं। साहब का दुःख सभी का होना चाहिए। साहब बीमार तो क़ायदे से पूरा दफ़्तर बीमार होना चाहिए। साहब परेशान तो क़ायदे से पूरा दफ़्तर परेशान दिखना चाहिए। साहब छुट्टी तो...'
Read More »