जगजीत ‘आज़ाद’

मुखौटा आधुनिकता का

आज हम इतने आधुनिक हो गए हैं कि टॉपलेस और स्कर्ट पहन रहे हैं, पॉप सुनने लगे हैं, उन्मुक्त प्रेम सम्बन्धों को समाज मूक स्वीकृति देने लगा है। आज आधुनिकता का अभिप्राय यही है।

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साज़िशें

मैं बच्चा नहीं था पर खिलौनों से बहलाया गया मुझे, कितनी साज़िशें करके रास्तों से भटकाया गया मुझे। अरमान था कब से कि इक सुकून की रात भी आएगी,

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औरत

बिख़र गई हूं पंक्ति बन कर मैं। अपने-अपने दृष्टिकोण पर, सबने परखा मुझको। मनचाहा अर्थ लगाया मेरा। कौन समझा सही अर्थ को ?

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आज के दौर का सच्चा प्यार

प्यार एक अहसास, एक जज़बात, एक भावना है। सुनने में छोटा-सा लगने वाला यह शब्द वास्तव में इतना विशाल है कि इसमें पूरा ब्रह्माण्ड समा सकता है, पूरी धरती इस पर टिकी है, हर कण-कण में यह समाया है।

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क्योंकि

जब शब्द ज़ुबान नहीं बनते तो आंसू बोलते हैं। मगर उनकी भाषा संवेदनाशुन्य मानव नहीं समझ पाता,

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किशोरावस्था- समय भटकने का या सम्भलने का?

  -जगजीत ‘आज़ाद’ बाल्यावस्था और युवावस्था के मध्य का समय जिसे किशोरावस्था कहा गया है हर इन्सान के जीवनकाल का क्रांतिकारी समय है। इसे अगर ज़िंदगी का चौराहा कहा जाए तो ग़लत नहीं होगा क्योंकि इस समय हर किशोर के सामने भावी मार्ग चुनने की उलझन होती है। यूं तो इस अवस्था में किशोर में बहुमुखी परिवर्तन आते हैं लेकिन ...

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