संपादकीय

पैग़ाम-ए-मुहब्बत

ज़िन्दगी एक इबादत है। पूज्य है इन्सानियत। आदमीयत के लिए दिलों में मुहब्बत ज़िन्दगी को जीने लायक़ बनाती है। दुनिया बनाने वाले ने कितनी खूबसूरत दुनिया का, कितनी हसीन ज़िन्दगियों का तसव्वुर किया होगा। जहां लोगों में एक दूसरे के लिए स्नेह हो, श्रद्धा हो, वहीं तो पूज्यस्थल है। स्नेेह, श्रद्धा और मुहब्बत का वास्ता समर्पण से है लेकिन आज ...

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सिसकते रिश्‍ते

‘ये कैसा दस्‍तूर है, कैसे रिवाज़ हैं। नाज़ों से पाली लाडो को यूं देस पराए दे देना।‘ मद्धम-मद्धम सी शहनाई की आवाज़ में रिश्‍ते सिसक कर रह जाते हैं। छूटते नज़र आते हैं सब अपने, तो भीगी आंखों से धुंधला-सा नज़र आता है वो बचपन का आंगन। काजल से बनी लकीर धो डालती है वो पुरानी बातें। अभी-अभी छलांगें लगाती ...

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समय के साथ-साथ

हर व्यक्‍ति कामना करता है कि आने वाला समय खूबसूरत हो। समय तो सदा एक जैसा ही रहता है उसे खूबसूरत बनाना पड़ता है। यदि हम आने वाले समय को अपनी कल्पनाओं के अनुरूप बनाना चाहते हैं, यदि हम अपनी अभिलाषाओं की पूर्ति करना चाहते हैं तो हमें खुद प्रयत्न करने होंगे। समय को अपनी कल्पनाओं, अपनी अभिलाषाओं के अनुरूप ...

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बदलते मौसम

परिवर्तन संसार की रीत है। इतिहास साक्षी है जब-जब भी परिवर्तन हुए हैं इनके आगे रुकावटें भी आती रही हैं, तोहमतें भी लगती रही हैं पर परिवर्तन तो हो कर ही रहे हैं। कोई खोज अंतिम नहीं, कोई सच अंतिम नहीं। प्रयत्न भी होते रहेंगे, परिवर्तन भी होते रहेंगे। थके-हारे व्यक्ति ही पुराने विचारों के साथ जुड़े रहते हैं। कमज़ोर ...

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रास्ते और मंज़िल

रास्ते मंज़िल का निशां होते हैं। आमतौर पर हमें अपनी ज़िन्दगी के रास्ते वैसे नहीं मिलते जिन पर हम चलना चाहते हैं। बहुत कुछ करना है, बहुत कुछ सीखना है, इसी ख़्याल से हम उन्हीं रास्तों पर सफ़र शुरू कर देते हैं जो भी रास्ते हमारा नसीब होते हैं।  ज़िन्दगी एक ऐसे रास्ते की तरह है जिसमें जगह-जगह मोड़ हैं, ...

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टूटती ज़ंजीरें

जो लिखा है वही होना है तो फिर किस बात का रोना है। क़िस्मत का रोना कमज़ोर आदमी की अलामतें हैं। यदि उस लिखने वाले के ज़िम्मेे ही सब कुछ छोड़ दिया जाए तो हमारे करने को तो कुछ बचेगा ही नहीं। तदबीर से तक़दीर बनती है हमेशा, इक बार आगे तो बढ़ के देख। आज़मा ले इक बार अपने ...

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कंटीली राहें

कितनी ही आंखें रोई होंगी। कुछ आंसू नज़र आए, कुछ चार दीवारियों में घुट के रह गए जिन को कोई न देख पाया।

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रिश्तों के रंग

कहते हैं इन्सान इसी दुनिया में स्वर्ग और नर्क के दर्शन कर लेता है और हमने यह दर्शन किए हैं अलग-अलग रिश्तों के रूप में। कभी मां की ममता के रूप में स्वर्ग देखा है तो कभी बहन-भाई के निश्छल प्यार के रूप में, कभी दोस्ती के निर्मल प्रेम के रूप में, तो कभी दो दिलों की पाकीज़ा मुहब्बत के ...

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नई भोर

लेकिन अपनी मंज़िल पाने के लिए, आगे बढ़ने के लिए दूसरों के रास्ते नहीं रोकने हैं। जो अपनी मंज़िल को पा गए वो जाने जाएंगे। लेकिन उस मंज़िल को दिलाने में जिन्होंने क़ुर्बानी दी, पूजे वही जाएंगे। इतिहास वही कहलाएंगे।

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अपना घर

इक्कीसवीं सदी की दहलीज़ पर ठिठक गया विश्‍व पुरानी परम्पराओं के नूतन नाम सोच निकालने की कशमकश में जकड़ा हुआ लगता है। अपने घर से बाहर क़दम रख चुकी भारतीय नारी इन परम्पराओं को बदलने के भ्रम में जी रही है। बाहर की दुनिया में जूझने को निकली ये नारी अभी तक अपने घर के बारे में ही भ्रमित है। ...

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