छुआ तक नहीं, हे री सीता, पाई सज़ा! हर साल, खुलेआम, रावण-दहन तमाशा, जनता देखती, ताली पीटती।
Read More »छोटी कविता
तुम थी
तुम थी तो सब कुछ था तुम नहीं हो तो कुछ भी नहीं है सब सूना-सूना है व्यर्थ सा है, निरर्थक है। तुम थी
Read More »सानिध्य
जी चाहता है, प्यार की सफ़ेद कम्बली ओढ़कर, छिपा लो मुझे अपने अन्तस्तल में, छिप जाऊं तुम्हारे विशाल वक्ष में जी भर के सो लूं,
Read More »साज़िशें
मैं बच्चा नहीं था पर खिलौनों से बहलाया गया मुझे, कितनी साज़िशें करके रास्तों से भटकाया गया मुझे। अरमान था कब से कि इक सुकून की रात भी आएगी,
Read More »काश उस सफ़र पर
काश….उस सफ़र पर तुम चले न होते। काश…. तुमने अपनी उंगलियों के पोरों से मेरे आंचल को न छुआ होता तुम मेरे लिये गंगाजल होते।
Read More »एहसास
सौंप कर अपने दिल का टुकड़ा तुम्हें, मैं निश्चिन्त हो गई, पर कैसे? उग गये मेरे हदय पटल पर एक की जगह दो पौधे जिन्हें साथ-साथ बढ़ता, लहराता देखना चाहती।
Read More »पोटली
बड़े नाज़ों से पाल पोस मैंने पकड़ा दी अपने प्राणों की डोर किसी अनजान पथिक को, देना चाहती हूं समस्त संसार की खुशियां
Read More »गांव मुझे पहचानता नहीं
बरसों बाद वहीं पगडंडी वहीं आंखें ढूंढ़ती जामुन, आम, पीपल, बड़ के वृक्षों की छाया कुएं से पानी लाती बन्तो चौपाल के बुज़ुर्ग
Read More »आसमां पर पांव हम धरते रहे
कब सहर हो और कब दीदार हो, रात सौ-सौ बार हम मरते रहे। रात हो बरसात हो कुछ बात हो, क्या-क्या आरज़ू करते रहे।
Read More »बाकी सवाल
रात के इस पहर के बाद, रात और कितनी बाकी है। वक़्त के इस पड़ाव के बाद, ज़िदगी और कितनी बाकी है।
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