छोटी कविता

ज्वलंत प्रश्न

चाहो तो पैसे से प्यार ख़रीद लो पैसे की ख़ातिर प्यार बिक जाता है किस पर करेंगे एतबार हम और तुम पैसे की चमक से एतबार बिक जाता है

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नई रीत

शादी के बाद बिटिया ने जब घर से विदा ली तो मां ने अपने आंसुओं से एक नज़म उसकी हथेली पर लिख दी

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पहचान

मैं पति के नाम से या…. फिर उसके जाये बच्चों के नाम से जानी पहचानी जाती हूं।

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औरत

औरत नुमाइश नहीं एक गहन सोच है दिलों की तहों से गुज़रती एक आग है औरत मज़हब नहीं खुद में खुदा है।

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बचपन

वह मुरझाया-सा चेहरा हाथों में पत्थर के दो टूकड़े लिए जिनसे मिटती सी प्रतीत हो रही थी उसकी भाग्य रेखा

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पेट

हमारा भगवान् एक बनिया, बेईमान कौन कहता है कि वो दाता है हमें वह मुफ़्त में नहीं बनाता है। वह अपना पूरा श्रम लेता है जब भी कोई जन्म लेता है।

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क्योंकि

जब शब्द ज़ुबान नहीं बनते तो आंसू बोलते हैं। मगर उनकी भाषा संवेदनाशुन्य मानव नहीं समझ पाता,

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चाहत

तेरा चेहरा मासूमियत से भरा दुनियां की छल-कपट से दूर हृदय में प्यार तमन्नाओं का सागर एक ऐसा व्यक्तित्व जो एक आकर्षण रखता है

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