छोटी कविता

उसकी आंखें

उसकी शर्माती आंखों में है अदम्भ साहस भी क्योंकि उसने कभी नहीं माना कि शर्म का पर्यायवाची डर होता है उसकी सकुचाती आंखों में अधूरापन भी है

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वो कौन थी

वो जो दे गई मुझे सर पर चमकते तार माथे पे चंद सिलवटें औ’ चेहरे पे कुछ झुर्रियां ग़रीबी थी वो जो दे गई मुझे वाक्पटुता

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तुम्हारी गंध

तुम्हारी गंध यहां पास से गुज़रती हवाओं में है तुम्हारी श्वास ध्वनि मधुरता से भरी इन सारी फ़िज़ाओं में है

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रुख़सत

उसे रुख़सत करके लौटा तो आंगन के फूल हो चुके थे बदरंग हवा थी बोझिल तस्वीरें उदास

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कब तक

शाम को हैंगर पर टंगे नए कपड़े पहन नव वर्ष के समारोह में जाना है बधाइयां देनी और लेनी हैं हंसना मुस्कुराना है धुनों पर थिरकना है।

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एक अक्स

एक महकता सा ख़याल इक खुशनुमा सी याद ख़्वाबों में एक अक्स तुम्हीं तुम होते हो जब तुम नहीं होते आईने में मुख़ातिब तसवीरों में रूबरू

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तसवीर

एक तसवीर जो मैंने बनाई उसमें रंग नहीं थे आकृतियां नहीं थी जज़बात नहीं थे इस लिए वह मूक थी

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किसी को उदास देखकर

मैं जानता हूं बहुत ही उदास-उदास हो तुम वफूरे-रब्ज में डूबी हो वक़्फ़े यास हो तुम वो ज़ख़्म क्या है जो दिल में छुपाए बैठी हो

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सिंदूरी हो गए गाल

होली का रंग तन मन पर तुम बरसाओ भी फाल्गुन का मौसम आया साजन तुम आ जाओ भी आंखें सूनी दिल है उदास, रही न कोई आस है गली-गली में धूम मची है आंगन मेरा उदास है सबके चेहरे खिले-खिले

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होली का गीत

मैं बहुत देर से खड़ा हूं अपनी गली के मोड़ पर अपने मन की उमंग को अपने तन से जोड़ कर लोग निकल पड़े हैं अपने घरों से होली-दुलहन के चेहरे को सजाने-हंसाने प्रकृति-मां का प्यार और दुलार लुटाने मैं इस उम्मीद में खड़ा हूं

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