छोटी कविता

पुनर्स्थापना

खुजराहो के किसी मंदिर की भित्ति से चुरा कर एक ऋषि ने मंत्र-सिद्ध कर तुम्हें साकार कर दिया मेरे लिए

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जोंक

सता की कुर्सी के पैरों में जनता का लहू बहता है उस पर सवार नेता उसे जोंक की तरह चूसता रहता है छुटभैये भी मच्छर की तरह भिनभिनाते रहते हैं मौक़ा लगते ही चूस कर उड़ जाते हैं

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थोड़ी ही देर सही

थोड़ी ही देर सही मौसम खुशगवार हुआ तो था। थोड़ी ही देर सही तुझको प्यार हुआ तो था। कहां गया वह पौधा जिसे लगाने पर बूटा-बूटा चमन का

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पानी से मत बहो

पानी-से मत बहो पूर्व-निर्मित सड़को पर। नई पगडंडियां विकसित करो। आलोचना का गरल तो मिलेगा इस राह में

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आवाज़

देख मैं तेरे शहर में भी आ गया क़लम को अपने दर्द की ज़ुबान बना गया तुम और तेरा प्यार सदा रहे सलामत

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रात भर

जब सितारों से बात होती है। बड़ी लम्बी सी रात होती है।। चांदनी से भरे उजालों में। एक परछाईं साथ होती है।। रात भर बोलते है सन्नाटे। रात भर किससे बात होती है।।

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चांद के मुक़ाबिल

न जाने अपनी यादों में कब धूप-सा वो बिखर गया इक आहट तक न हुई और वो दिल में उतर गया इन्हीं रास्तों पे मुझसे इक बार वो मिला था यही सोचकर मैं उस मोड़ पर ठहर गया

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सूरज की तलाश

नहीं जानती, उगा होगा, किसी अनजाने देश में, सतरंगी सूरज। इन्द्रधनुशी आभा से खिला होगा, प्रकृति का कण-कण।

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