छोटी कविता

चुनाव के बाद

नेताओं के शब्दों की झड़ी मुहावरों की लड़ी टूटती नहीं चुनाव से पहले लगते हैं वायदों के अंबार झांसे बेशुमार स्वास्थ्य सेवाओं के रोज़गार के, शिक्षा प्रसार के

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नव वर्ष मुबारक

नव वर्ष की पहली किरण चूमे जब धरती का शबाब उड़ जाए दुःखों की ओस महक उठें खुशियों के गुलाब मचल उठे हर कली का दिल भंवरा गाए कोई ऐसा राग थम जाए नफ़रत की आंधी टिम-टिमाएं मुहब्बत के चिराग

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नये साल की ग़ज़ल

दुआ हो कि हर कोई खुशहाल हो मुबारक सभी को नया साल हो खिलें फूल खुशियों के चारों तरफ़ शगुफ्ता चमन की हर एक डाल हो महल में भी खुशियों की गंगा बहे कोई झोपड़ी भी न पामाल हो

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समीक्षा

आइए गत वर्ष की समीक्षा करें क्या खोया क्या पाया या एक वर्ष आपने यूं ही गंवाया अगर अपने कोई प्रगति न की हो अपने कार्यों में

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दीवाली

आंगन में क़दम पड़ते ही ठिठक गये देख मां को बैठा बरामदे में लगा आज कड़ाही, नहीं चढ़ी खीर पूड़े नहीं बने मां ने बत्तियां नहीं बाटी भगवान नहीं नहलाए नये कपड़े नहीं पहनाये

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चिमटा

चिमटा ख़रीदने की सोच रही है मां पिछले कई दिनों से पर अक्सर ज़रूरतेंं बड़ी हो जाती हैं चिमटे से जलती हैं मां की अंगुलियां अक्सर रोटियों सेंकते हुए

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नये ज़माने के लोग

पिताजी अब या तो बोलते नहीं या फिर बहुत बोलते हैं तभी अखरते हैं इतना हमें लगता है या ऐसा है ही यक़ीनन हमारे बीच वर्षों का इतना अंतराल

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नेता जी

नेता जी दे रहे थे भाषण पर भाषण तभी भीड़ में से एक व्यक्ति उठ बोला प्रभु! भाषण ही सुनाओगे, या राशन भी दिलवाओगे?

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