अपने अपराधों से मत शरमाइए। आइए, आइए, आइए, अपने अपराधों के आधार पर हमारी पार्टी के थ्रू राजनीति में अपनी आदरणीय जगह बनाइए।
Read More »व्यंग्य
दाग अच्छे हैं और दाग़ी उससे भी अच्छे
चोर चोर तो फिर भी मौसेरे भाई होते हैं, पर दाग़ी दाग़ी सगेरे भाई होते हैं। लोकतंत्र की ख़ास बात यह होती है कि यहां संख्या का गणित चलता है
Read More »कैसे
क्रिकेट में बल्लेबाज़ को एक रनर मिलता है लेकिन कोई तोड़फोड़ व लूटपाट करनी हो तो केवल एक व्यक्ति को आगे बढ़ना होता है, हज़ारों की संख्या में रनर अपने आप साथ आ मिलते हैं।
Read More »बापू की भारत यात्रा
सुनो, चरखायान को वापस मोड़ लो मैं आगे नहीं जाना चाहता। जिस सत्याग्रह को मैंने अपना हथियार बनाया था। उसी सत्याग्रह हथियार बना लिया लोगों ने।
Read More »रावण खुश हुआ मित्र
‘बस एक ही! देश की तरह रावण बनाने वाले भी जल्दी में थे क्या? आग लगे ऐसी जल्दी को जो, नाश का सत्यानाश करके रख दें।’ ‘महाशय आप तो दशानन थे न? फिर अब के.....’
Read More »क़लम की व्यथा कलम की ज़ुबानी
मैं कल तक इसी मनुष्य की उंगलियों की गु़लाम थी। इसी के ईशारों पर नाचती रही। अतः जैसा यह नचाता रहा, वैसे मैं नाचती रही।
Read More »गणेश न मिले रे पूजन को गणेश
‘गणेश जी। आप यहाँ। मैं आप को मारा-मारा फिरता हुआ कहाँ-कहाँ नहीं ढूँढ रहा था। कम से कम मन्दिर में तो रहा करो नाथ।‘मन्दिर में? तुम रहने दो तब न।’
Read More »नए वर्ष का प्रवेश द्वार
जी हां, सबकी रग-रग में बस चुका, मैं हूं भ्रष्टाचार। नववर्ष में भी बढ़ेगा अभी मेरा परिवार। झट से खोलो द्वारपाल, मेरे लिए नववर्ष का द्वार।’
Read More »उत्तर आधुनिकता हई! शावा!!
आज लेखक अमीर है, अपनी खोटी नीयत के कारण खुद को ग़रीब दिखाता है। दो कनाल की कोठी का मालिक होने के बाद भी पांच हज़ारी इनामों के पीछे भागता फिरता है
Read More »योजना एक सीरियल बनाने की
मैं एक कॉमेडी सीरियल का निर्माण करने जा रहा हूं- ‘क्योंकि छाछ भी कभी दही थी।’ इसके लिए मुझे कलाकार चाहिए। यदि आप में से कोई
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