रिश्ते

प्रेम पराकाष्‍ठा में नारी परमात्मा स्वरूप

–रमेश सोबती ढाई अक्षरों का शब्द प्रेम जितना सीमित है इस का अर्थ उतना ही विराट है। प्रेम की व्याख्या है-“जो प्रसन्नता प्रदान करे।” प्रेम में संतुष्‍टि का तत्व निहित है, यही संतुष्‍टि प्रेम अथवा प्रणय की प्रेरक शक्‍ति है। इस चरम तृप्‍ति-प्रद प्रेम भावना का मूल स्थान हमारी आत्मा में है, क्योंकि आत्मिक प्रेरणा के अभाव में कोई भी ...

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क्या आकर्षण ही प्रेम है

  –बलबीर बाली बात हमारे मित्र पंकज की है। मित्र क्या वो तो हमारे छोटे भाइयों की तरह है। शायद इसलिए ही वह हमसे कोई बात नहीं छिपाता था परन्तु उस दिन तो पंकज के रंग-ढंग ही बदले हुए थे। समय दोपहर लगभग 12 अथवा 12.30 का होगा। हम अपने ऑफ़िस के लिए तैयार हो रहे थे, कि अचानक हमारे ...

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न उम्र की सीमा हो

-आकाश पाठक जहां एक और संस्कृति बदलती जा रही है फैशन समय-दर-समय करवट बदलता जा रहा है, वहीं दूसरी ओर पुरुष एवं स्त्री की विचारधाराओं में व्यापक परिवर्तन होता जा रहा है जो कि लाज़िमी है। विवाह या शादी को उन्नीसवीं शताब्दी में ‘गुड्डे-गुड़ियों का खेल’ की भावना से लिया जाता था, यह कहा जाए तो ग़लत नहीं होगा, कारण-बीते ...

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गर्ल फ्रैण्ड से शादी,ना बाबा ना

  -नील कमल (नीलू) आज के भारतीय युवक जब बेमायने बंदिशों व भारतीय संस्कृति के पुराने व निरर्थक विचारों को पीछे छोड़ व अपने पूर्वजों द्वारा बनाई गई कड़ी ज़ंजीरों को तोड़ कर बेख़ौफ हो खुली हवा में उड़ने के लिए प्रयत्‍नशील हैं, वहीं यह भी सोचने लायक बात है कि क्या वास्तव में वे अपनी मानसिकता को बदलने में ...

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