कहानियां

खारा बादल

खुशख़बरी सुनते ही डॉक्टर दीपा ने सोचा कि डॉक्टर स्वराज को फ़ोन किया जाए, “अस्पताल जल्दी पहुंचो, तुम्हारे साथ एक बहुत बड़ी खुशी बांटनी है।” उसे पता था, वह आगे से कहेगा, “खुशियां तो होती ही बांटने के लिए हैं, पर थोड़ा सा पता तो लगे?” “बस तुम जल्दी आ जाओ, यह खुशी मिल कर ही बताई जा सकती है।” ...

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ईश्‍वर की मुस्कान

”पापा मेरी बांहों में दुबक जाना चाहते थे, कुछ कहना चाह रहे थे मगर शब्दों को ध्वनि नहीं मिल रही थी। पापा का तड़पना उनके अन्तिम पलों का संकेत दे रहा था। “हाय मेरी मां यह सब कैसे सहन करेगी?”

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बहता पानी

“इस बार का जन्म दिन हम पाली के साथ नहीं किसी अन्य के साथ मिलकर मनायेंगे।” मनिन्दर मुझसे कह रही है। मैं हैरानी के साथ उसके चेहरे की तरफ़ देखता हुआ सोचता हूं कि यह त्रिकोण की चौथी कोण कौन हो सकता है? “बस यह तुम्हारे लिए सरप्राइज़ होगा- तुम पैसों वाले तोहफ़े पसंद नहीं न करते, इसलिए मैंने सब से ...

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देवता की मौत

जंगल में लगी आग की तरह यह ख़बर गली-मोहल्ले में फैलती चली गई कि ‘देवता चल बसे।’ कैसे ….? कब ….? क्या हुआ था? …. आदि प्रश्न लोगों के चेहरों पर तांडव-नृत्य कर रहे थे। हर कोई अपना काम अधूरा छोड़कर ‘देवता’ के घर की तरफ़ भाग रहा था। चेहरे पर बदहवासी व घबराहट …. उस परिवार के बारे में ...

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जीने का सहारा

-डॉ.प्रेमपाल सिंह वाल्यान एक चर्मकार था- जूता बनाने वाला। उसका नाम साइमन था। उसका न अपना मकान था न अपनी ज़मीन। वह अपनी पत्‍नी के साथ एक किसान के घर में रहता था। जूते बनाने से उसकी इतनी ही आय होती थी कि दोनों का शाम का भोजन चल जाए। रोटी महंगी थी। काम सस्ता था। साइमन के पास भेड़ ...

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भाभी

  “मैं उसके बिना नहीं रह सकती चाचू। मैं उसे बहुत प्यार करती हूं। आप प्लीज़ मुझे उससे दूर मत करिये। चाचू आप मुझे ज़हर लाकर दे दो। मैं मर जाऊंगी मगर उसके बिना नहीं रह पाऊंगी। प्लीज़ चाचू प्लीज़” कहकर वह मेरे गले में बाहें डालकर रोने लगी थी। दरअसल मैं ही उसका चाचा हूं और मैं ही उसकी ...

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मरी हुई तितलियां

जब हम चले तो बहुत से लोग थे। तब जंगल अभी इतना घना नहीं था। एक-दूसरे के साथ हँसी मज़ाक करते हुये हम ज़ोर-ज़ोर से हँसते रहे। पेड़-पौधों की फूल-पत्तियां तोड़ते, उंगलियों में मसलते हुये हम चलते रहे। लगता था हमने सारी उम्र इसी तरह चलना है। जंगल धीरे-धीरे घना होता गया। हम एक-एक करके गुम होते रहे। उन में ...

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जीरांद

मुझे बहुत खुशी है कि तुम इस राह पर नहीं चले और कभी चलना भी न। यही बहादुरी है। कई बार ऐसी घटनाओं के बाद आदमी तनावग्रस्त होकर अपने मार्ग से विचलित हो जाता है और भटका हुआ आदमी चाहे बाहरी रूप में सही सलामत नज़र आए, पर वास्तव में होता नहीं।

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परिक्रमा

“रवि, तुम्हारा जो भी मेरे पास था मैं गंवाना नहीं चाहती थी, अब तुम सब नये सिरे से भी तो बना सकते हो।”

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सावित्री

  घर में शादी की चहल-पहल थी। सावित्री की नज़रें रास्ते पर लगी थी। ‘सुनो जी, मानव, मधु और बच्चे अभी तक नहीं पहुँचे। उन्हें फ़ोन करके पूछ तो लो, कहाँ हैं अब तक?’ सावित्री ने अपने पति दीनानाथ की ओर मुड़ते हुए कहा। ‘दादी जी, मैंने अभी फ़ोन किया था, वे रास्ते में हैं – बस पहुंचने ही वाले ...

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