व्यंग्य

स्वर्ग जाएं हमारे दुश्मन

ज़रा सोच स्वर्ग में हमें क्या वे सुविधाएं मिल सकती हैं। जिन्हें हम इस लोक में पा रहे हैं। स्वर्ग से ज़्यादा सुविधाएं तो यहां मृत्युलोक में उपलब्ध हैं। दस-बीस हज़ार रुपयों की डिग्री लाओ। 25-30 हज़ार किसी नेता के माथे मारो, सरकारी नौकरी पाओ और सारी उम्र जी भर खाओ। स्वर्ग में तो वर्षों गुरुओं के आगे घुटने रगड़कर भी कोई मानद उपाधि तक नहीं मिलती

Read More »

बनो अच्छा पड़ोसी

मैं मिलनसार हूं। संकोच की छाया तो मैंने कभी अपने व्यक्तित्व पर पड़ने ही नहीं दी। पड़ोसियों के घर की चीज़ें मेरी ही हैं। पड़ोसी का अख़बार मैं पहले पढ़ता हूं। उनका हैंड पम्प हमारा ही है। उनका रेडियो, खुरपा, कुदाल, हथौड़ी बाल्टी आदि मेरे घर में हैं।

Read More »

एक कवि का साक्षात्कार

देखिए, मैं अब पचपन का हूं और बचपन से लिख रहा हूं। वैसे मैं जब पालने में था तब भी लय में रोता था, लय में हंसता था। इसे आप हमारी पहली कविता ही समझिए।

Read More »

कर्णधार मेरे देश के

-बलदेव राज भारतीय बॉलीवुड के एक प्रसिद्ध निर्माता-निर्देशक को अपनी देशभक्ति पूर्ण फ़िल्म ‘कर्णधार मेरे देश के’ के लिए नए कलाकार चाहिए थे। उसे कलाकार मिले भी। परन्तु वे नए किसी भी सूरत में नहीं थे। आज तक उन्होंने परदे के पीछे रह कर काम किया था और अब साक्षात् परदे पर आना चाहते थे। ये कलाकार आम और ख़ास ...

Read More »

बेगम फिर तो हो ली नौकरी

-डॉ. अशोक गौतम मैं जब भी दफ़्तर जाता हूं अंतरात्मा को घर ही छोड़ आता हूं। वह इसलिए कि दफ़्तर के गोरख धन्धों को देख आत्मा तो मर गई है अब कहीं अंतरात्मा भी मर गई फिर तो मैं कहीं का न रहूंगा। पर पता नहीं इस अंतरात्मा को कभी-कभी न जाने क्या हो जाता है कि दफ़्तर साथ जाने ...

Read More »

क्या कहूं तुम से सजन

-रेनू बाला अपने सजन को जब भी देखती हूं, यही सोचती हूं कि ऐसा नमूना मेरी सखियों को भी क्यों न मिला। यक़ीन मानिए, मेरे सजन ने मुझे बड़ा दुखी कर रखा है। न … न … ग़लत मत समझिए। जिस्मानी तकलीफ़ देने की बात तो यह सपने में भी नहीं सोच सकते। बस इनमें कुछ ऐसी बुराई है जो ...

Read More »

ऐ क्या बोलती तू

जब आप को सर्दी की सवेर में रेलवे यात्रा करनी पड़ जाए जबकि आपके पास कोई बुकिंग सीट का टिकट नहीं बल्कि एक साधारण टिकट हो तो आपको यह जान लेना चाहिए कि आपने पिछले जन्म में कोई अच्छा काम नहीं किया। आप जान ही गए होंगे कि मैंने क्या सोचा होगा जब ऐसी ही सवेर में मेरे कांपते बदन ...

Read More »

लेखक का दुखांत

-बिपन गोयल सुबह उठते ही वह बुक स्टॉल पर जा कर पंजाबी की अख़बार का एक-एक पन्ना टटोल मारता। शायद किसी संपादक ने उस की कहानी प्रकाशित कर के खुशी प्राप्त कर ली हो। सभी पंजाबी पत्र-पत्रिकाएं देखने के बाद वह अंग्रेज़ी के अख़बारों का पन्ना-पन्ना टटोलता। यही सोचता शायद किसी अक्ल के अन्धे लेखक या आलोचक ने किसी लेख ...

Read More »

ये शंटिग वटिंग क्या है मैं क्या जानू रे

-रिपुदमनजीत ‘दमन’ एक वह भी समय था जब यातायात का कोई साधन उपलब्ध नहीं था। व्यक्ति पैंया-पैंया चलते न जाने कितने दिनों बाद अपनी मंज़िल-ए-मक़सूद तक पहुंचता था। बेशक कुछ धनी व्यक्ति घोड़ों पर या रेगिस्तानों में ऊंटों पर भी सवारी करते थे परन्तु यह सुविधा एक आम आदमी की पहुंच के परे थी। धीरे-धीरे पहले बैलगाड़ियां और बाद में ...

Read More »