उम्र के बदलते दौर

बच्चों के चरित्र-निर्माण में परिवार की भूमिका

बच्चों की स्थिति आज जैसी है, उसमें थोड़ा-बहुत हाथ भले ही संस्कारों का हो लेकिन अधिकांशतः उसके चरित्र पर माता-पिता, परिवार और समाज द्वारा डाला गया प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव प्रमुख होता है। बच्चा हमेशा वही सीखता है जो उसके घर या परिवार अथवा उसके आस-पड़ोस में घटित होता है। परिवार बच्चे का प्रथम सामाजिक वातावरण होता है। परिवार शांतिप्रिय ...

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बच्चे जब भगवान् के बारे में पूछें

-तेजप्रीत कौर कंग बच्चों के कुछ बेहद सीधे सवाल कई बार माता-पिता के लिए सबसे कठिन सवाल बन जाते है, जैसे कि बच्चों को यह बताना कि हम सबको ईश्‍वर ने बनाया है और वो हम सबसे बहुत प्यार करता है, बच्चों को अकसर यह पूछने पर मजबूर कर देता है कि ईश्‍वर कहां है, वो देखने में कैसा है, ...

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महत्वाकांक्षा का पलड़ा ममता पर भारी क्यूं?

 -विजय रानी बंसल प्राचीन काल में महिलाएं केवल घर की चारदीवारी तक ही सीमित थी। घर-गृहस्थी सँभालना ही उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य था। परन्तु वक़्त के साथ-साथ विचारधाराएँ बदलीं, मान्यताएं बदलीं। महिलाएं घर की चारदीवारी से निकल कर बाहर की दुनियां में आयीं और उन्हें मिला शिक्षा, आज़ादी और कुछ कर दिखाने वाली सम्भावनाओं का विस्तृत आकाश। इसमें सबसे ...

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किशोरावस्था- समय भटकने का या सम्भलने का?

  -जगजीत ‘आज़ाद’ बाल्यावस्था और युवावस्था के मध्य का समय जिसे किशोरावस्था कहा गया है हर इन्सान के जीवनकाल का क्रांतिकारी समय है। इसे अगर ज़िंदगी का चौराहा कहा जाए तो ग़लत नहीं होगा क्योंकि इस समय हर किशोर के सामने भावी मार्ग चुनने की उलझन होती है। यूं तो इस अवस्था में किशोर में बहुमुखी परिवर्तन आते हैं लेकिन ...

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बेटी की किताब में प्रेमपत्र

-कनु भारतीय   मेरे साथ वाले पड़ोसी के घर में शाम के पांच बजे चीखने-चिल्लाने व गाली-गलौच की तेज़-तेज़ आवाजें आ रही थीं। आस-पास की महिलाएं पहले तो उनके घर के बाहर इक्‍ट्ठी खड़ी रहीं फिर उनमें से अधिकतर यह कहकर बाहर से ही लौट गयीं कि यह उनके घर का मामला है। फिर भी चार-पांच औरतें हिम्मत करके अंदर ...

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