उम्र के बदलते दौर

बच्चों के कपड़े कैसे हों?

ख़रीदारी करते समय अक्सर लोग इस बात को अनदेखा कर देते हैं कि क्या ये पोशाकें सुरक्षित हैं भी या नहीं? छोटे बच्चों के लिए तो इस बात पर ध्यान देना बहुत ज़रूरी होता है। छोटे बच्चे अक्सर मुंह में कपड़ा डालते हैं।

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बचपन यह प्यारा किधर जा रहा है

जागती आंखों में सदैव स्वप्न पला करते हैं। बालपन किसी भी समाज की नींव रहा है आज के दौर का अवलोकन करें तो बुद्धि विस्मित रह जाती है कि यह सब क्या हो रहा है।

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आवश्यक है सर्दियों में नवजात शिशु की देखभाल

शिशु को ठंड से बचाने का सबसे अनमोल व सरल उपाय है कि उसे खूब हंसाए या रोते हुए को कुछ देर तक चुप न कराएं। इन सब उपायों का प्रयोग करके आप अपने बच्चे को ठंड से बचा सकती हैं व भय मुक्त हो सकती हैं।

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बच्चों को अनुशासित करें

कुछ माता-पिता को इस बात की अधिक चिन्ता रहती है कि लोग उनके बच्चों के बारे में क्या सोचते हैं तथा वे ज़रूरत से अधिक चिन्तित होते हैं।बच्चे इस बात से शशोपंज में पड़ जाते हैं कि कभी जिस काम से मां-बाप उनको रोकते हैं कभी क्यों नहीं रोकते हैं।

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आख़िर किसे बनाएं युवा अपने जीवन का आधार

लड़कियां जब 14 से 18 वर्ष की आयु में होती हैं तो यह एक अति विशेष परिस्थितियों वाला समय होता है। हम केवल लड़कियों की बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि नारी जाति को ही गृहस्थ धर्म का आधार माना जाता है

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टी.वी देखकर बच्चों को हो सकती है भयंकर बीमारियां

बच्चे टी.वी. पर हिंसा व मार-धाड़ वाले दृश्य बड़े ही चाव से देखते हैं। लेकिन उनका दिमाग़ इतना मैच्योर नहीं होता कि वे ऐसे दृश्यों को पचा पाएं।

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रिश्तों की पुकार

यूं तो इन्सान का सम्बन्ध बचपन से ही किसी दूसरे के साथ होता है। जन्म के समय मां के साथ, बचपन में भाई बहन व साथियों के साथ परन्तु असली समझ का सम्बन्ध बनता है, जब वह किशोर अवस्था में होता है।

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बच्चों को खेलों द्वारा शिक्षा देने की आवश्यकता

एक अन्य ढंग जिस की ओर लोगों का रुझान बढ़ रहा है वह है बच्चों को खेलों द्वारा दी जाने वाली शिक्षा का ढंग। खेल-खेल में बच्चे अधिक सीख पाते हैं इसीलिए इस ढंग को अपनाया जा रहा है।

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चक्कर दोस्ती का

दोस्त अच्छा हुआ तो आप को बना सकता है, ख़राब हुआ तो बिगाड़ सकता है। यह बात लड़के-लड़कियों दोनों पर आधारित है और दोस्ती समलिंगी हो या विषम-लिंगी, दोनों में सच है।

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