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नारी

न पूज्य बनो न पुजारी हो तुम नारी ही रहो, बस नारी हो तुम। सजधज न कुन्तल बिखराओ यह नयन चपल मत मटकाओ। फ़ैशन की होड़ को रोको तुम इस अंधी दौड़ को रोको तुम।

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सिलसिला

कितनी बार टूटकर बिखरते हैं हम कितनी बार बिखर कर सिमटते हैं हम कि ये सिलसिला एक दिन नहीं दो दिन नहीं ताउम्र चलता है

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तेरा चेहरा

दिल लुभाता है, बड़ा भाता है तेरा चेहरा। दिल में समाया है, समाया ही जाता है तेरा चेहरा।

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एक बार और

इसने कहा कि तुम सिर्फ़ बीवी बनकर रह गई हो इसीलिए सब गड़बड़ है। बस, फिर मैंने अपने आप को तोला तो मुझे लगा कि बात सही है। तब से मैंने अपने आपको बदलना शुरू कर दिया।

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गीले दस्ताने

एक आशंका और बलवती होती गई कि ... कहीं हरेश के साथ ही तो हादसा...? थोड़ी ही देर में मेरा अनुमान वास्तविकता में बदल गया जब परेश के बाऊजी ने हौले से मुझे पूछा

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लफ़्जे ब्यां

एक भौंरा गुलबदन को चूम कर फिर उड़ गया। एक भौंरा था जो ज़िद्दी गुलबदन पर अड़ गया।। हम भला रोने लगे क्यों इक मुसाफिर था गया। वो तो झोंका था हवा का आंख में कुछ पड़ गया।।

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सूरज की तलाश

नहीं जानती, उगा होगा, किसी अनजाने देश में, सतरंगी सूरज। इन्द्रधनुशी आभा से खिला होगा, प्रकृति का कण-कण।

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