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संदेश

क्यों तूने पुरुष से की गुहार खड़ी बेबस तुम थी रही पुकार क्यूं मांगा तूने पुरुष का सहारा पल में धुल गई स्वतंत्र छवि वो मैं जिसमें करता था तुम्हें निहारा।

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ग़ुस्सा उफ़! ये ग़ुस्सा

कुछ लोग ग़ुस्से में मौन ले लेते हैं, कुछ लोग खाना नहीं खाते, कुछ लोग उस जगह से कुछ देर के लिए दूर चले जाते हैं तो कुछ उस वस्तु या व्यक्ति को ही त्याग देते हैं जो ग़ुस्से का कारण हो।

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चाह मेरी

वो दिन कभी तो आएगा जब मैं सुनूंगी नदी के जल की छपछपाहट पक्षियों की चहचहाहट हवा के झोंकों की सनसनाहट जब मैं देखूंगी लाल सूरज को उगते हुए बादलों को गरजते हुए

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वो कौन थी

वो जो दे गई मुझे सर पर चमकते तार माथे पे चंद सिलवटें औ’ चेहरे पे कुछ झुर्रियां ग़रीबी थी वो जो दे गई मुझे वाक्पटुता

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तुम्हारी गंध

तुम्हारी गंध यहां पास से गुज़रती हवाओं में है तुम्हारी श्वास ध्वनि मधुरता से भरी इन सारी फ़िज़ाओं में है

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गारंटी

मां-बाप की सारी ज़िंदगी इस विश्वास के सहारे कट जाती है कि बेटा बड़ा होकर उनकी सेवा करेगा। क्या इस विश्वास की डोर इतनी कच्ची होती है कि मां-बाप को दो वक़्त की रोटी के लिए बेटों को लालच देना पड़े?

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