धर्म एवं संस्कृति

ये मन, क्यों बने कुंठाओं का मालगोदाम?

-दीप ज़ीरवी श्रीमती ‘क’ जहां कहीं भी जाती हैं अपने उन की नौकरी, बंगले, कम्पनी वग़ैरह की तारीफ़ों के पुल बांधती नहीं थकती। श्रीमती ‘ख’ हर समय अपने आप को कोसती मिलती हैं। श्रीमती ‘ग’ को अपने स्टेटॅस को दिखाने का कोई मौक़ा मिलना चाहिए वो चूकती नहीं। इसी तरह की एक नहीं अनेक उदाहरणें हमें हमारे आस-पास देखने को ...

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स्‍वतन्‍त्रता संग्राम में पंजाब का साहित्‍य एवं साहित्‍यकार

किसी भी जाति की उन्नति के लिए उच्च कोटि के साहित्य की ज़रूरत होती है। ज्यों-ज्यों साहित्य ऊंचा उठता है, त्यों-त्यों देश की तरक्‍क़ी होती है-भगत सिंह पंजाब की ज़रखेज भूमि ने जहां गुरू गोबिन्द जैसे तलवार के धनी शूरवीरों को जन्म दिया, वहीं उस ने महान चिन्तकों, विचारकों, सिद्धान्तकारों कलाकारों, साहित्यकारों की जननी होने का गौरव भी प्राप्‍त किया ...

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दसूहा बनाम विराट नगरी

                                                                                                                          -धर्मपाल साहिल (प्रिंसीपल) एक तरफ़ शिवालिक की रमणीक पहाड़ियां और दूसरी ओर कल कल बहता ब्यास दरिया। बीचों-बीच विभाजन रेखा सी खींचता जाता जालन्धर-पठानकोट राष्ट्रीय मार्ग। जालन्धर से 62 किलोमीटर की दूरी पर जी. टी. रोड के दोनों तरफ़ बसी पंजाब के जिला होशियारपुर की तहसील दसूहा। यहां से केवल 59 कि. मी. के फासले पर बसा है प्रसिद्ध ...

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जीवन आनंद

                                                         –शिवनंदन भारद्वाज जीवन का मूल तत्‍व आनंद ही है। यदि हमारा जीवन आनंदभरा संगीत नहीं तो इस के कई कारण होने चाहिए। वह है ईर्ष्‍या, भय, क्रोध, लोभ, निराशा आदि। इन दोषों से विमुक्‍त जीवन आनंदभरा, प्रेमभरा, निष्‍काम सेवा भरा और सुन्‍दरता भरा होगा। स्‍वस्‍थ जीवन यह है कि हम वर्तमान में प्रसन्‍न रहें। पर लोभी व्‍यक्‍ति वर्तमान में ...

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दीपावली सप्‍त दीपों का प्रकाश पुंज है।

                             –चित्रेश दीपावली अपने आदि रूप में सात अनुषंगिक पर्वों का प्रकाश-पुंज था। समय के साथ जीवन में आई व्यस्तता ने हमें अपने पर्वों और उत्सवों को लघु आकार देने के लिए विवश किया, जिसके फलस्वरूप विभिन्न पर्वों से जुड़े कई कर्मकांड और अनुष्ठान लोक-जीवन में अपनी ...

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होली के रंग और रंगों की दुनियां

-चित्रेश सैंकड़ों साल पहले आदमी का जीवन पूरी तरह प्रकृति से जुड़़ा था। कृत्रिमता का हल्का-सा स्पर्श भी नहीं था उसके कार्य-व्यापार में यही वह वक्‍़त था, जब उसने ऋतु परिवर्तनों का धूमधाम से स्वागत करने की परम्परा क़ायम की और इसी की एक पुरातन कड़़ी है-होली ! यह ऋतु संधि का-सर्दी के जाने और गर्मी के आने का पर्व ...

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मानव जीवन में धर्म का महत्त्व

                                                                                                                                                                          -प्रेम प्रकाश शर्मा सृष्‍टि-यो‍जना में किसी भी तत्व, पदार्थ, स्थिति, कृत्ति, भाव आदि के ठीक–ठीक मूल्यांकन कर सकने से पूर्व उसके मर्म को समझ लेना अनिवार्य होना चाहिए । इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए यह स्पष्‍ट है कि ‘धर्म’ क्या है, यह निश्चित किया जाए। कहा गया है ‘धारयति इति धर्म:।’ अर्थात् जो धारण करें, वही धर्म ...

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आध्‍यात्मिकता के प्रयोग: व्यर्थ की निवृत्ति

 -प्रो: हरदीप सिंह आध्यात्मिकता शब्द यदि कुछ व्यक्तियों का ध्यान अपनी ओर खींचता है तो वहीं आध्यात्मिकता के नाम पर नाक-भौं सिकोड़ने वाले व्यक्तियों की भी कमी नहीं है। आध्यात्मिकता को पसंद और नापसंद करने वालों की काफ़ी तादाद है। इसका कारण यह है कि हमें ऐसे व्यक्ति बहुत कम संख्या में मिलते हैं। जिनके जीवन में हमें रूहानियत की ...

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आध्‍या‍त्‍मिकता के प्रयोग

-प्रो.हरदीप सिंह आत्म-सुख में सन्तुष्ट रहना सभी सुखों सें श्रेष्ठ है और संतुष्टता सर्वगुणों में ‍शि‍रोमणि है। सभी मानवीय गुणों का सरताज है सन्तोष, क्योंकि सन्तुष्ट व्यक्ति राजा के समान सुखी रहता है। यह तो संभव है कि कोई राजा भरपूर खज़ाना होने के बावजूद भी खुश न हो परन्तु संतुष्ट व्यक्ति ऐसा बेताज बादशाह होता है जिसके पास सदा ...

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