महिला विमर्श

शादी के बाद क्यों महत्त्व देती हैं महिलाएं नौकरी को

-आकाश पाठक आधुनिक समाज में क़दम-दर-क़दम हो रही प्रगति से जहां महिलाओं को विचारों में, घूमने-फिरने में आज़ादी मिली है, वहीं यह तथ्य भी स्पष्‍ट होता जा रहा है कि महिलाएं शादी के बाद भी नौकरी को प्राथमिकता देती हैं या दे रही हैं। भले ही उनके पतियों की मासिक आय एवं पारिवारिक परिस्थितियां सुदृढ़ क्यों न हों। मगर आधुनिक ...

Read More »

अकेले हैं तो क्या गम है

-माधवी रंजना बदलते समाज में कई तरह की पुरानी मान्यताएं टूट रही हैं। किसी ज़माने में औरत को हमेशा किसी पुरुष के साथ ही संरक्षण की ज़रूरत होती थी। अब वह ज़माना नहीं रहा। इक्कीसवीं सदी में नारी की छवि मज़बूत होकर उभरी है। रोज़गार के कई नए क्षेत्रों में प्रवेश ने उसके आत्मसम्मान को बढ़ाया है। ऐसे में समाज ...

Read More »

अधिकारों के प्रति सजगता से ही थमेगा नारी का अग्नि परीक्षा का दौर

-मुनीष भाटिया स्वतंत्रता के अड़सठ वर्ष बाद जब देश की महिलाओं की दशा पर दृष्‍ट‍ि डाली जाती है तो सहसा सामने वह रोगी आ खड़ा होता है जिसे शुरू में तो कोई एकाध रोग ही था किन्तु परिचारकों के प्रसाद एवं समीचीन औषधि के अभाव में रोग उत्तरोत्तर बढ़ता ही गया। जिस राष्‍ट्र में कभी नारी की साड़ी उतारने का ...

Read More »

औरत पर अत्याचारों का सिलसिला कब ख़त्म होगा

-रीना चेची ‘बेचैन’ हर रात के बाद सवेरा होता है। ग़म के बाद खुशियां ज़रूर आती हैं। अंधेरे में गुम ज़िन्दगी का सामना एक दिन उजाले से होकर रहता है। मगर आज के माहौल को देखते हुए यह कुछ बेमतलब-सा लगता है। रात के बाद सुबह होती है तो सामना रक्‍तरंजित-ख़बरों से होता है – ख़ासकर महिलाओं के संबंध में। ...

Read More »

जगाया है नारी को विदेशी संस्कृति ने

– मुनीष भाटिया भारतीय संस्कृति की विशालता की दुहाई देकर, आज बुद्धिजीवी वर्ग चिंतित है। उनकी दृष्‍ट‍ि में भारतीय संस्कृति मज़बूत व विशाल तो है पर फिर भी विदेशी प्रचार माध्यमों के हमले का डर उन्हें हिलाए हुए है। कैसी विडम्बना है, एक तरफ़ तो यह वर्ग भारतीय संस्कृति को विशाल व महान की संज्ञा देता है व दूसरी तरफ़ इसके ...

Read More »