साहित्य सागर

समस्या

'ओफ़! ओह! अब एक और नयी समस्या। मां जी के पास टेलीग्राम करके कह दो कि अपना प्रोग्राम कैंसल कर दें, कह देना कि हम लोग नौ तारीख़ को पंद्रह दिन के टूर पर बाहर जा रहे हैं।'

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पागल

"मगर हमने तो सुना था कि वह बहुत आदर्शवादी है।" "हां, इसीलिए तो हम उसे पागल कहते हैं!"  "बहन जी, बात कुछ समझ में नहीं आई!"

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मेरा बड़प्पन

स्कूल के दिनों स्कूल से घर लौटते देखा करता था उस बुढ़िया को मैं जिसे अक्सर ताई कहकर बुलाता था सड़क के किनारे रोटियां सेंक रही होती थी

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सरहद का दर्द

कितना बदनसीब है वह ज़मीन का टुकड़ा जिसे सरहद का नाम मिला गिर रही हर रोज़ बेशुमार लाशें उन लाशों को गिनने का काम मिला

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सुविधाशुल्क चालीसा

ऐसे शब्दों को अब अपने शब्दकोष से बाहर फेंक दिया जाए। इन्हीं शब्दों का पर्यायवाची लेकिन मर्यादित और सुसभ्य शब्द सुविधाशुल्क (रिश्वत, घूस) आजकल प्रचलन में है।

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कुछ ऐसा भी होता है

कुछ ऐसे मंदिर होते हैं जहां घंटियों के नाद नदारद और नदारद दीप प्रज्वलित भक्तों की जहां भीड़ नहीं पर ईश्वर हैं वहां स्थापित एकाकी में पूजे जाते हैं कुछ ऐसे मंदिर होते हैं

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गीत

राहें मुहब्बत भी कैसा सफ़र है दूर है मंज़िल बहकी डगर है क़ुदरत ने पहले हमको मिलाया क़िस्मत ने ऐसा खेल खिलाया अपना पता है न तेरी ख़बर है राहें मुहब्बत भी कैसा सफ़र है

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काश! आप हमारे होते..

चांद मुट्ठी में, क़दमों में सितारे होते इस ज़मीं पर जन्नत के नज़ारे होते काश! आप हमारे होते उगता सूरज ड्योढ़ी पर राही अन्धेरों से हारे न होते

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