साहित्य सागर

वृक्ष

हवा के झोंके से उसकी ज़ुल्फ़-सी लहराई तपती दोपहरी में मुझे राहत-सी आई सबके दिलों पर वो करते हैं राज़ पंछी भी करते हैं उन पर नाज़

Read More »

उपहार

मां! तुम भी एक बात ध्यान से सुन लो। तुम उसकी मार सह सकती हो.... परन्तु मैं नहीं। उन्हें यह बात अच्छे ढंग से समझा देना कि मेरे ऊपर हाथ न उठाएं। नहीं तो अच्छा नहीं होगा। तुम अपने बापू के लिए ऐसा कह रही हो! क्या कर लोगी तुम?

Read More »

हर बार नहीं

तुम तो चाहते हो कि तुम मेरे जज़बातों से बलात्कार करो और मैं हर बार अपने वजूद के टुकड़ों को समेट कर पुनः तुम्हारे कदमों में फूलों की तरह विछ जाऊं

Read More »

डूबते सूरज के साथ

मां के हाथों का बना एक सफ़ेद मेज़पोश है जिस पर मां ने हरे रंग के धागे से कश्मीरी कढ़ाई की थी। मैंने झुक कर उसे उठा लिया और शिव पार्वती वाली तसवीर उसमें लपेट ली। तभी डोंगे का ध्यान आया। रसोईघर में पहुंची और डोंगे को वहीं पड़ा देख मेरी जान में जान आई।

Read More »

रिश्वत दें, लें पर प्यार से

मैं तो नहीं पर अपने गांव के बोधराम शास्त्री का कहना है- रिश्वत लेने के बाद मंदिर जाने को मन करे तो हो आएं, इससे मन की शुद्धि तो नहीं होती पर शुद्धि का भ्रम ज़रूर होता है। रिश्वत देने व लेने को आदत न बनाएं, इसे शौक़ मानकर लें और दें।

Read More »

इस बार दीवाली पर

इस बार दीवाली पर हसरतों की ख़ाक आंसुओं में गूंथ मन के चाक पर चढ़ा आहों की भट्टी में तपा दिल के दिये बनाएंगे विश्वास के तेल में भिगो कर प्रेम की बाती

Read More »

दीवाली

आंगन में क़दम पड़ते ही ठिठक गये देख मां को बैठा बरामदे में लगा आज कड़ाही, नहीं चढ़ी खीर पूड़े नहीं बने मां ने बत्तियां नहीं बाटी भगवान नहीं नहलाए नये कपड़े नहीं पहनाये

Read More »

पलायन

अम्मी जान तुम ही बताओ- दहशतर्गदों की वजह से कारखानेदार अपने कारखाने बंद कर घाटी से पलायन कर गए हैं। रोज़गार के जो छोटे-छोटे मौक़े मिल जाते थे, वे भी ख़त्म हो चले हैं। अब तो यही ठीक रहेगा कि हम भी घाटी को छोड़कर कहीं और चले जाएं।

Read More »

आंच

'पापा! पापा! अलमारी में से पटाखों के पैकेट निकाल दो न।' बच्चों ने मुझे झंझोड़ते हुए कहा। मैं मौन रहा। 'आख़िर ऐसा क्या है उन पटाखों में जो उन्हें साल भर से रखे बैठे हो।' मुझे चुप देख कर पत्नी ग़ुस्से में बोली।

Read More »