साहित्य सागर

संदेश

क्यों तूने पुरुष से की गुहार खड़ी बेबस तुम थी रही पुकार क्यूं मांगा तूने पुरुष का सहारा पल में धुल गई स्वतंत्र छवि वो मैं जिसमें करता था तुम्हें निहारा।

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चाह मेरी

वो दिन कभी तो आएगा जब मैं सुनूंगी नदी के जल की छपछपाहट पक्षियों की चहचहाहट हवा के झोंकों की सनसनाहट जब मैं देखूंगी लाल सूरज को उगते हुए बादलों को गरजते हुए

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वो कौन थी

वो जो दे गई मुझे सर पर चमकते तार माथे पे चंद सिलवटें औ’ चेहरे पे कुछ झुर्रियां ग़रीबी थी वो जो दे गई मुझे वाक्पटुता

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तुम्हारी गंध

तुम्हारी गंध यहां पास से गुज़रती हवाओं में है तुम्हारी श्वास ध्वनि मधुरता से भरी इन सारी फ़िज़ाओं में है

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गारंटी

मां-बाप की सारी ज़िंदगी इस विश्वास के सहारे कट जाती है कि बेटा बड़ा होकर उनकी सेवा करेगा। क्या इस विश्वास की डोर इतनी कच्ची होती है कि मां-बाप को दो वक़्त की रोटी के लिए बेटों को लालच देना पड़े?

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आप कौन होते हैं?

अभिनव ने अपनी थर्मस में से कुछ जल थर्मस के ही गोलाकार ढक्कन में उड़ेल कर उस छोटे बच्चे के माता-पिता से निवेदन किया सुनिए आप अपने बच्चे को पानी पिला दें। पानी जूठा नहीं है। अगला स्टेशन अभी थोड़ी दूरी पर है। 'जी शुकिया।'

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इम्तिहान कैसे-कैसे

इतिहास का स्वर्णकाल उन्नीस सौ पचहत्तर का दशक था जब 'शोले' फ़िल्म हिट हुई थी। हम उनके इस आश्चर्यजनक शोध का लोहा मान गए। हमें बस एक ही दुःख था कि शायद परीक्षक इस खोज से सहमत न हो।

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सिसकता हथियार- बेलन

लेकिन दुर्भाग्य! बेलन आज सिसकता नज़र आ रहा है और हसबैण्डों का समाज ठहाके लगाता हुआ साफ़ नज़र आता है। यह स्थिति पत्नियों के लिए शर्मनाक है,

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इन्तज़ार

कितना दर्द बर्दाश्त किया था हमने तब...मगर...मगर...क्या अब मेरे माँ-बाप यह सहन कर लेंगे कि मैं...। नहीं...नहीं...कभी नहीं...

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