साहित्य सागर

डबल रोल

कवि गोष्ठी का आयोजन बड़ी धूम-धाम से हुआ कवि थे पचास चांदनी रात का था उजास मंच था, माइक था, पत्र था, पुष्प था बस एक ही कमी थी श्रोता नहीं था।

Read More »

मायका

घर से कोसों दूर ब्याह दी गई थी बूढ़ी हो गई थी अब पर कभी-कभार हवा के झोंके की तरह उसे याद आती थी पीहर के हर इंसान की

Read More »

ज़ख़्म

देख सकते हो तुम मेरे बदन पर उसके शब्दों के दिए ज़ख़्म जो सिर्फ़ रिसते हैं रोते हैं, चीखते हैं पर उन्हें सहलाने वाला कोई नहीं।

Read More »

कब तक

शाम को हैंगर पर टंगे नए कपड़े पहन नव वर्ष के समारोह में जाना है बधाइयां देनी और लेनी हैं हंसना मुस्कुराना है धुनों पर थिरकना है।

Read More »

एक अक्स

एक महकता सा ख़याल इक खुशनुमा सी याद ख़्वाबों में एक अक्स तुम्हीं तुम होते हो जब तुम नहीं होते आईने में मुख़ातिब तसवीरों में रूबरू

Read More »

कौन करे कुछ

मैं, निहारा करता हूं चांद को...अपलक लेकिन माशूक का चांद सा चेहरा... नहीं मुझे नज़र आते हैं बूट पॉलिश करते वो बच्चे

Read More »

अनचाही बेटी

"कहो! क्या कहना चाहते हो?" मालती दीप की आंखों में पढ़ चुकी थी कि वह क्या कहना चाहता है लेकिन कई बार सुुनना भी कानों को प्रिय सा लगता है। यही मालती चाहती थी।

Read More »

हार

एक दिन उसके नन्हें बेटे अमित ने पूछ ही लिया, मां! जिनके पापा देश के लिए मर जाते हैं उन सब की मां, क्या दूसरों के घरों में बर्तन मांजती हैं?

Read More »

हाय मेरा जैकी

डॉक्टर ने बहादुर को कहा कि वह जैकी के मुंह पर कपड़ा डाल कर पकड़े ताकि झाग किसी के लग न जाए। घर भर में जैसे भुकम्प आया हुआ था। आगे-आगे जैकी और पीछे-पीछे हम सब लोग। किसी के हाथ में उसका पट्टा तो किसी के चेन और किसी के कपड़ा।

Read More »

बेबसी

हिचकिचाते हुये धीमे-धीमे मुस्कुराते हुये मैंने उसके सामने रख दी थी अपने हृदय की कोरी किताब कुछ भी लिख देने के लिए

Read More »