साहित्य सागर

हे प्रकृति मां

अपनी तृष्णा की चाह में मैंने भेंट चढ़ा दिए हैं, विशालकाय पहाड़ ताकि मैं सीमेंट निर्माण कर बना सकूं, एक मज़बूत और टिकाऊं घर, अपने लिए

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राजा साहिब

बुढ़िया की खांसी रुकने का नाम नहीं ले रही थी। उसकी निगाहें दरवाज़े की दहलीज़ पर टिकी हुईं थी। परन्तु उसके घरवाले की वापसी का कहीं नामोनिशान तक नहीं था। उसका घरवाला काफ़ी बूढ़ा हो चुका था मगर उसके चेहरे पर झुर्रियों का निशान तक नहीं था। हाथ में लम्बा बांस का डण्डा, फटा हुआ कुर्ता, सटिट्यों वाला गर्म पट्टू ...

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भावुक लोग

इस प्रजाति के लोग हर कस्बे में मिल जाते हैं ये लोग बड़े भावुक होते जल्दी ही पसीज जाते हैं

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बचपन

वह मुरझाया-सा चेहरा हाथों में पत्थर के दो टूकड़े लिए जिनसे मिटती सी प्रतीत हो रही थी उसकी भाग्य रेखा

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प्रेम का प्रतिशोध

मैंने तुमसे मिलने की बहुत कोशिशें की मगर कोई रास्ता नज़र नहीं आया। तुमने भी पुलिस में रपट लिखाकर बड़ी भूल की। मैंने पता लगा लिया है, उसकी मियाद कम से कम पांच वर्ष तक है। उससे पहले मैं तुमसे मिलूंगा, तो पुलिस द्वारा गिरफ़्तार कर लिया जाऊंगा।’

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पेट

हमारा भगवान् एक बनिया, बेईमान कौन कहता है कि वो दाता है हमें वह मुफ़्त में नहीं बनाता है। वह अपना पूरा श्रम लेता है जब भी कोई जन्म लेता है।

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चोरी की सज़ा

'किन्तु थानेदार साहब! आप तो कह रहे थे कि पांच जोड़ी पैंट-शर्ट चोरी हुई हैं और मैं दुकान संभाल कर आया हूं। पांच जोड़ी ही चोरी हुई है।' दुकानदार ने आश्चर्य भरे स्वर में पूछा, 'फिर मैं दस जोड़ी चोरी हुए क्यों लिखूं?'

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पल दो पल

पल दो पल रुक जाएं चलते-चलते मुड़कर देखें.... लगे किसी ने पुकारा है....!

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चांदनी का प्रतिशोध

हर इंसान के जीवन में कुछ घटनाएं ऐसी घटती हैं जिन्हें लाख चाह कर भी हृदय से निकाला नहीं जा सकता फिर वो घटना जो किसी के बहुत अपने व्यक्ति की हो तो जिस्म का अंग-अंग कट कर गिरता सा लगता है वो इंसान ऊपर से नीचे तक खून से लथपथ होकर भी चिल्ला नहीं सकता, रो नहीं सकता। यादों ...

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