नन्हीं दुनियां

टी.वी देखकर बच्चों को हो सकती है भयंकर बीमारियां

बच्चे टी.वी. पर हिंसा व मार-धाड़ वाले दृश्य बड़े ही चाव से देखते हैं। लेकिन उनका दिमाग़ इतना मैच्योर नहीं होता कि वे ऐसे दृश्यों को पचा पाएं।

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बच्चों को खेलों द्वारा शिक्षा देने की आवश्यकता

एक अन्य ढंग जिस की ओर लोगों का रुझान बढ़ रहा है वह है बच्चों को खेलों द्वारा दी जाने वाली शिक्षा का ढंग। खेल-खेल में बच्चे अधिक सीख पाते हैं इसीलिए इस ढंग को अपनाया जा रहा है।

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आप, आपके बच्चे और कुछ सत्य

कई अभिभावक मेरे पास आते हैं परन्तु इस समस्या का निदान जानने के बाद वे असहाय से दिखाई देते हैं। उनका कहना होता है, "ठीक है, हम मानते हैं कि हमने शुरू से ही ग़लती की है परन्तु अब इस समस्या का क्या हल हो सकता है?"

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बच्चों में शून्य होती संवेदनायें

भ्रमित हैं हम ये सोचकर कि आधुनिक भौतिक व्यवस्था हमारी जीवन-शैली को सुखी बना रही है, पर किस क़ीमत पर बना रही है हम यह नहीं देख पा रहे हैं। हमारे बच्चे नई जीवन शैली की जो क़ीमत चुका रहे हैं ये सोचने की किसी को फुर्सत ही कहां है?

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बच्चों को ज़िद्दी न बनाएं

दरअसल बच्चों की हर इच्छा पूरी करते जाना कालांतर में आपके बच्चे को ज़िद्दी बना सकता है। जब बच्चा बहुत छोटा हो तभी से उसे समझाने की आदत डालें।उसकी हर ज़िद्द को पूरा करना बाद में आपके लिए घातक हो सकता है। ज़िद्दी बच्चे समझदार नहीं हो पाते।

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बच्चे पढ़ने में क्यों पीछे रहते हैं?

-तेजप्रीत कंग 3-6 वर्ष की आयु में बच्चे में कई परिवर्तन आते हैं और वे शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप में विकसित होते हैं। प्रत्येक बच्चे में यह परिवर्तन अलग-अलग रफ़्तार से आते हैं- किसी में जल्दी तथा किसी में थोड़ी देर से। इसलिये यह जानना अतिआवश्यक है कि किस आयु के बच्चे स्कूल जाने के लिए तैयार हैं और ...

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अपने लाडले को बचाएं गर्मी के प्रकोप से

गर्मी का मौसम तो अपने साथ कई तरह की बीमारियां लेकर आता है और ख़ासतौर से बच्चे तो इस मौसम में तरह-तरह की बीमारियों के शिकार हो ही जाते हैं। अतः छोटे बच्चों का गर्मी से विशेष तौर पर बचाव किया जाना चाहिए।

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जब लें भाग फ़ैंसी ड्रैस प्रतियोगिता में

– नरेन्द्र देवांगन रिंकी ने स्कूल की फ़ैंसी ड्रैस प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। वह आदिवासी महिला बनी थी। एक आदिवासी महिला जो कुछ पहनती है, वह सब पहनकर वह स्टेज पर गई। लेकिन उससे एक बड़ी ग़लती हो गई। उसने साड़ी उस तरीक़े से पहनी थी, जिस तरह एक शहर की महिला पहनती है जबकि आदिवासी महिलाएं अलग तरीक़े से ...

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बाल विकास में प्रोत्साहन कितना ज़रूरी

-सरिता सैनी आज के प्रतियोगी विकास में हर माता-पिता अपने बच्चे को सफलता की चरमसीमा पर देखने के लिए लालायित हैं। इस अंधी दौड़ में वे इस तथ्य को नकार देते हैं कि प्रत्येक बच्चा बाक़ी बच्चों से भिन्न है और एक अलग व्यक्तित्व का मालिक है। जैसे नवीन बहुत ही मिलनसार, खुशमिजाज़, आत्मविश्वासी, उत्सुक, नेतृत्व (पहल) करने वाला तथा ...

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