शैलेन्द्र सहगल

धर्म और राजनीति

धर्म को अगर राजनीति से जोड़ कर देखा जाए तो चहूं ओर राजनीति का बोलबाला ही नज़र आता है और आज की राजनीति का कोई धर्म नज़र नहीं आता।

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गुड्डी कहां है

बचपन मेरी ज़िंदगी से तो निकल गया था, मगर बचपन दिल से नहीं निकला था- जिसकी वजह से दिनभर मां की टोका-टाकी झेलनी पड़ रही थी। खुल कर हंस भी लेती तो मां की टोक उसे सांप की तरह डसती थी- “गुड्डी, न जाने तेरा बचपना कब जाएगा, यह सब ससुराल में तो नहीं चलेगा।” कभी दिन में देर तक ...

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जनता का चालान समारोह

-शैलेन्द्र सहगल मैं एक पुलिस नाके से बोल रहा हूं। आज यहां पर ए.एस.आई – सरदार सिंह अपने पूरे तामझाम सहित मौजूद हैं और कोटा पूरा करने के लिए अर्थात् रिकॉर्ड पूरा करने के लिए चालान समारोह का आयोजन हो रहा है। मैं पत्रकार हूं मुझे पूर्व निमन्त्रण भेज कर तो बुलाया नहीं गया था। आम परिस्थितियों में तो पत्रकारों ...

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ईश्‍वर की मुस्कान

”पापा मेरी बांहों में दुबक जाना चाहते थे, कुछ कहना चाह रहे थे मगर शब्दों को ध्वनि नहीं मिल रही थी। पापा का तड़पना उनके अन्तिम पलों का संकेत दे रहा था। “हाय मेरी मां यह सब कैसे सहन करेगी?”

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टैलीवुड भी चल निकला बॉलीवुड की राह

बॉलीवुड सदैव ही दर्शकों के दिलों में समाया रहा है। फ़िल्मी सितारों का उन पर सर्वाधिक प्रभाव रहा है। पृथ्वी राज कपूर से लेकर रणबीर कपूर तक का फ़िल्मी सफ़र अपने आप में एक इतिहास को समेटे हुए है। पृथ्वी राज कपूर द्वारा अभिनीत मुग़ल-ए-आज़म आज भी सभी की पसंदीदा फ़िल्म है। पृथ्वी राज कपूर ने मुग़ल-ए-आज़म अकबर के रूप ...

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भावी पति-पत्‍नी में डेटिंग कितनी आवश्यक

विवाह जीवन का एक ऐसा अटल मोड़ है जो प्रत्येक व्यक्‍ति के जीवन में देर या सवेर आकर रहता है। वैवाहिक बन्धन में बन्धने से पूर्व सगाई की रस्म निभाई जाती है। सगाई से लेकर विवाह तक का अन्तराल एक ऐसा नाज़ुक दौर है जिस पर वैवाहिक जीवन की क़ामयाबी या नाक़ामयाबी टिकी होती है। सगाई की रस्म के साथ ...

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फ़िल्में समाज का दर्पण

फ़िल्में एक सशक्‍त सार्वजनिक माध्यम हैं मगर चूंकि व्यवसायिकता से जुड़ा है इसलिए इस के निर्माता-निर्देशकों पर आर्थिक हितों के लिए फ़िल्मों में अश्‍लीलता और नग्नता ठूंसने का आरोप निरन्तर लगता रहा है। इस बात से कोई असहमत नहीं हो सकता कि फ़िल्मों का समाज पर व्यापक प्रभाव है। फ़िल्मी सितारों की अपार की लोकप्रियता इस बात का प्रमाण भी ...

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