जन्मने से पूर्व ही मुझे मत मारो न बजाओ शगुनी थाली न गाओ मंगल गीत न मनाओ जश्न बेशक मेरे जन्मने का पर आंखें खोलने से पूर्व ही
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नारी
न पूज्य बनो न पुजारी हो तुम नारी ही रहो, बस नारी हो तुम। सजधज न कुन्तल बिखराओ यह नयन चपल मत मटकाओ। फ़ैशन की होड़ को रोको तुम इस अंधी दौड़ को रोको तुम।
Read More »सिलसिला
कितनी बार टूटकर बिखरते हैं हम कितनी बार बिखर कर सिमटते हैं हम कि ये सिलसिला एक दिन नहीं दो दिन नहीं ताउम्र चलता है
Read More »युवाओं में आकर्षण का केन्द्र बनी आधुनिकता
क्या है आधुनिकता? जो युवाओं को आकर्षित करती है। आधुनिकता विभिन्न प्रकारों की होती है जैसे- आधुनिक व्यवहार, आधुनिक विचार, आधुनिक जीवन शैली, आदि।
Read More »अब तू डट जा नारी
द्रौपदी के बदले हुए तेवरों में ललकार थी, चुनौती थी, एक भयंकर गर्जना थी जो सिंहनी की भांति गर्ज उठी, “वह अपने बालों को गांठ नहीं लगायेगी
Read More »कबाड़ उठाती लड़कियां
पांच छ जन के समूह मेें जा रही हैैं वे लड़कियां राष्ट्रीय राजमार्ग के एक ओर रंग बिरंगे पुराने से कपड़े पहने
Read More »क़लम की व्यथा कलम की ज़ुबानी
मैं कल तक इसी मनुष्य की उंगलियों की गु़लाम थी। इसी के ईशारों पर नाचती रही। अतः जैसा यह नचाता रहा, वैसे मैं नाचती रही।
Read More »गणेश न मिले रे पूजन को गणेश
‘गणेश जी। आप यहाँ। मैं आप को मारा-मारा फिरता हुआ कहाँ-कहाँ नहीं ढूँढ रहा था। कम से कम मन्दिर में तो रहा करो नाथ।‘मन्दिर में? तुम रहने दो तब न।’
Read More »हक़ीक़त तलाशते स्वप्न
घर में आज क़ोहराम मचा हुआ था। रौशनी घर से भाग चुकी थी। अब रेखा को रौशनी की पिछले कल बताई गई हर बात का मतलब समझ आ चुका था।
Read More »सूरज की तलाश
नहीं जानती, उगा होगा, किसी अनजाने देश में, सतरंगी सूरज। इन्द्रधनुशी आभा से खिला होगा, प्रकृति का कण-कण।
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