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आज के युवा और सेक्स

आधुनिक समाज ने अनेक क्षेत्रों में प्रगति की है लेकिन प्रगति के नाम पर अनजाने में कुछ कुप्रवृत्तियां भी समाज में व्याप्त हो गई हैं। इन्हीं में एक है विवाह पूर्व उन्मुक्त यौन सम्बन्ध

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घरेलू हिंसा और महिलाओं की स्थिति

नारी के बिना किसी समाज की परिकल्पना करना दुःस्वप्न मात्र है। उसे अपमानित, उपेक्षित व प्रताड़ित करना अपने पैरों पर स्वयं ही कुल्हाड़ी मारने जैसा यत्न है।

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क्या वास्तव में रावण मर गया?

गौरतलब है कि रावणत्व का वृक्ष फल-फूल रहा है, इसका शिखर आकाश में व जड़ पाताल में है। केवल शाखाएं तोड़ देने या प्रांकुर काट देने से इसकी समाप्ति मुमकिन नहीं।

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रावण खुश हुआ मित्र

‘बस एक ही! देश की तरह रावण बनाने वाले भी जल्दी में थे क्या? आग लगे ऐसी जल्दी को जो, नाश का सत्यानाश करके रख दें।’ ‘महाशय आप तो दशानन थे न? फिर अब के.....’

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भगवान् का घर

उसे समझाया गया, “जयन्त को तो कोई शिकायत नहीं। तुझे प्यार करता है। सब ठीक हो जाएगा धीरे-धीरे। चिन्ता मत कर।” सब सुनने के बाद माता-पिता कहते “कैसे रखें ब्याही बेटी को घर।”

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आज के बच्चों को स्वतन्त्रता

अगर यूं कहा जाये कि बच्चों की स्वतंत्रता पूरी तरह उनके हित की या समाज और देश हितकारी है तो सरासर ग़लत होगा, क्योंकि अकेले फूल शायद ही कभी मिले हों कांटे भी साथ होते ही हैं।

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गृहलक्ष्मियां हिंसा की शिकार कब तक होती रहेंगी

भारत में शादीशुदा महिलाओं के विरुद्ध हिंसा लगातार बढ़ती जा रही है। पिछले कुछ दशकों में ऐसी महिलाओं की संख्या में काफ़ी इज़ाफ़ा हुआ है, जो अपने पतियों और ससुराल वालों के ख़िलाफ़ खुलकर शिकायत कर रही हैं।

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सुंदरता या ग्लैमर बदले मायने

कई बुद्धिजीवियों का मानना है सौंदर्य का क्षेत्र इतना संकुचित नहीं। यदि महिला देखने में सुंदर है किन्तु पढ़ी-लिखी न हो तो वह सुंदरता फीकी पड़ जाती है। सुंदरता तो देश-प्रदेश के साथ अपनी परिभाषा बदलती रहती है।

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मौसम के अनुसार लगाएं उबटन

प्राचीनकाल से चली आ रही उबटन परम्परा आज भी चलन में है। आदिकाल में महारानियां अपनी दासियों से उबटन लगवाकर, कमनीय बनने का प्रयोग करती थीं। उबटन से त्वचा में लचक व आकर्षण बना रहता है।

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