Writers

फ़िल्में समाज का दर्पण

फ़िल्में एक सशक्‍त सार्वजनिक माध्यम हैं मगर चूंकि व्यवसायिकता से जुड़ा है इसलिए इस के निर्माता-निर्देशकों पर आर्थिक हितों के लिए फ़िल्मों में अश्‍लीलता और नग्नता ठूंसने का आरोप निरन्तर लगता रहा है। इस बात से कोई असहमत नहीं हो सकता कि फ़िल्मों का समाज पर व्यापक प्रभाव है। फ़िल्मी सितारों की अपार की लोकप्रियता इस बात का प्रमाण भी ...

Read More »

शरत की कहानी पर फ़िल्में

                                                                                                                                                                                         -विद्युत प्रकाश मौर्य महान् उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय फ़िल्मकारों की हमेशा अच्छी पसंद में रहे हैं। विधु विनोद चोपड़ा उनके लोकप्रिय उपन्यास परिणिता पर इसी नाम से फ़िल्म लेकर आए। हालांकि परिणिता पर इससे पहले अलग-अलग नाम से दो फ़िल्में ...

Read More »

इतनों में से उठे दो शूरवीर

फ़िल्म जगत के इतिहास में मुझे वह दो शूरवीर मिले हैं जिन्होंने कड़ी मेहनत की है, लगातार लड़े हैं और विजयी होकर सामने आए हैं। इन दोनों शूरवीरों की कहानी- परी कहानी की भूमिका जैसी है।

Read More »

सौंदर्य प्रसाधन और विज्ञापनों का मायाजाल

        एक बार किसी अमेरिकी से पूछा गया कि आप सौंदर्य किसे कहेंगे तो तुरंत जवाब मिला कि सौंदर्य वह चीज़ है जिस पर केवल अमेरिकी कंपनियां करोड़ों डॉलर की पूंजी लगा कर व्यवसाय कर रही हैं और प्रत्येक वर्ष लाखों डॉलर का व्यापार करती हैं। हमारी पुरानी मान्यताओं को इससे गहरा सदमा पहुंचेगा क्योंकि हमारे कवियों ...

Read More »

विज्ञापन और नारी

   -पवन चौहान औद्योगिक क्रांति के कारण जैसे-जैसे एक ही वस्तु के विभिन्न रूपों का उत्पादन होने लगा और उपभोग के लिए नई-नई वस्तुएं पैदा की जाने लगीं वैसे-वैसे विज्ञापन का महत्त्व बढ़ता चला गया। उत्पादक के लिए यह ज़रूरी हो गया कि वह अपनी वस्तुओं की जानकारी उपभोगताओं तक पहुंचाए। इसका एकमात्र माध्यम विज्ञापन ही था। आरम्भ में विज्ञापन ...

Read More »

विज्ञापन कला की लेखन प्रकृति

काश! विज्ञापन का लेखन इतनी तेज़ सृष्‍टि कर सके। कोशिश कर रहा है। पर इससे सस्ता तरीक़ा पूंजी के पास है- बारंबार दिखाओ, बार-बार बताओ, बार-बार उसी इच्छा को उकसाओ।

Read More »

नेबर्स एनवी, ऑनर्स प्राईड’ के चक्रव्यूह में फंसा उपभोक्‍ता

मगर वक़्त और दुनिया के साथ चलने वाला, उपभोक्‍ता भेड़चाल में शामिल हो सिर्फ़ प्रचारित ब्राण्ड महंगा होने के बावजूद ख़रीदेगा। क्योंकि विज्ञापन द्वारा उसका माईण्ड ब्राण्ड माइन्डिड हो जाता है।

Read More »

जब तन महके तो मन बहके

–विजय रानी बंसल जहां एक ओर आज की नारी घर की चारदीवारी से बाहर निकल बाहर की दुनियां में ज़्यादा व्‍यस्‍त हो गयी है, वहीं अपने सौंदर्य तथा व्यक्तित्व के प्रति ज़्यादा जागरूक भी हो गयी है। अपने को अधिकाधिक सुन्दर दर्शाने के लिए वह तरह-तरह के ज़ेवर, कपड़े व सौन्दर्य प्रसाधनों का इस्‍तेमाल भी करने लगी है। जब इन ...

Read More »