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कब तक

शाम को हैंगर पर टंगे नए कपड़े पहन नव वर्ष के समारोह में जाना है बधाइयां देनी और लेनी हैं हंसना मुस्कुराना है धुनों पर थिरकना है।

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एक अक्स

एक महकता सा ख़याल इक खुशनुमा सी याद ख़्वाबों में एक अक्स तुम्हीं तुम होते हो जब तुम नहीं होते आईने में मुख़ातिब तसवीरों में रूबरू

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कौन करे कुछ

मैं, निहारा करता हूं चांद को...अपलक लेकिन माशूक का चांद सा चेहरा... नहीं मुझे नज़र आते हैं बूट पॉलिश करते वो बच्चे

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आपका और उनका दिन मैरिज एनवर्सरी

दाम्पत्य में सामंजस्य के लिए या कुछ कमियों को दूर करने के लिए संकल्प का दोहराव सुखद मोड़ लाता है। कुल मिलाकर अगर यूं माना जाए कि पति-पत्नी के बीच 'मैरिज एनवर्सरी' वाले रोज़ सिर्फ़ स्पर्श हो बातों का, यादों का।

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नारी फूल भी चिंगारी भी

नारी का नारीत्व उसका परम् सौंदर्य है और उसका यह सौंदर्य अपनी शक्तिरूपी सुरभि से संपूर्ण विश्व को प्रकाशित करता है। यदि उसकी शक्ति सुरभि को शक्तिविहीन करने की कोशिश की गई तो न केवल भारत को अपितु संपूर्ण विश्व को इसका अच्छा ख़ासा खामियाज़ा भुगतना ही पड़ेगा।

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अनचाही बेटी

"कहो! क्या कहना चाहते हो?" मालती दीप की आंखों में पढ़ चुकी थी कि वह क्या कहना चाहता है लेकिन कई बार सुुनना भी कानों को प्रिय सा लगता है। यही मालती चाहती थी।

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एक कदम आगे

क्योंकि ये हमारी भावनाएं ही हैं जो अपनी सीमा को तोड़ती हैं, उल्लंघन करती हैं और शुरू कर देती हैं ऐसा खेल जहां उल्लंघन होता है नीतियों का,

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हार

एक दिन उसके नन्हें बेटे अमित ने पूछ ही लिया, मां! जिनके पापा देश के लिए मर जाते हैं उन सब की मां, क्या दूसरों के घरों में बर्तन मांजती हैं?

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रुको मधुमास

जूं-जूं बूंदे परे, जिया लरज़े/छतियां मोरी तकरार करें। उदास आंगन में नीम तले, खटिया पे बैठ, प्रिय को संदेश लिखने बैठती है पर मन है कि अधजल गगरी-सा छलक-छलक पड़ता है- पत्तिया मैं कैसे लिखूं/लिखयो न जाय क़लम गहे मोरे, कर कांपत हैं, सखी! नयन रहे झरलाय।

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कैसी-कैसी नैतिकता

प्रत्येक पीढ़ी कुछ परम्परागत मूल्यों को स्वीकार कर लेती है। किसी को व्यर्थ कह कर नकार देती है। वह अपने से पहली पीढ़ी को परम्परागत तथा दक़ियानूसी कह देती है और स्वयं को आधुनिक की श्रेणी में मानती है।

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